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शनिवार, 1 दिसंबर 2018

तुम लौट आना ...


साथी, हृदयसंगिनी रीता 'मन्दाकिनी' के अहसासों को समर्पित मनाभिव्यक्ति...  
तुम लौट आना ...
तुम जाओ, पर लौट आना सांझ की वेला तक
बैरी चाँद चिढ़ाता है रात भर
तुम तो जानती हो इस अँधियारे कुटुंब में
सूनापन और डरावनी अहसास में टूट न जाए सांस कहीं

कैसे समझाऊँ तुम्हें, इन हल्की और तेज सी साँसों का
है कितना भारी मन
कौन सहारा देगा मुझको दर्द और दाह में बोलो
जाओ पर लौट आना निर्झर आंसुओं संग
याद के अहसासों से बीत न जाय रात कहीं

छीन न सकी तुम मेरे तन की तपन कभी
हर न सकी मेरे साँसों की ठिठुरन कभी
कंटक की माला पहना नहीं जाना तुम
वसंत नहीं जीतता मुस्कान कभी।
 लौटाती है तुम्हारी मुस्कान
जीतता नहीं मन तुम्हारे माधुर्य पाश से
जाओ पर लौट आना पतझड़ के संग
सिकुड़न की शूल चुभन दुलारते न बीत जाय रात कभी।  

 धुंध भरे मौसम में बजती गीतों पर शहनाई
टूटती नहीं यादों की अमराई
देर नहीं करना तुम गिनती की घड़ियाँ हैं
चली जाओ लेकिन सपने में लौट आना
भीगते नैनो से ख्वाब धूल जाए न कभी

लौट आना जरूर मन में गुबार है
आज चढ़ी आँधी से मन में उभार है
बह न जाए जीवन इन आँचल की लहरों में
जाओ पर लौट आना पुरवा बयार में
सेज की शिकन संवारते न बीत जाय रात कहीं  
रामशंकर विद्यार्थी

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