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गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

अजोध्या कै मेला

अजोध्या कै मेला  










उठिकइ भिनसारे बांधि कै रोटी, पहुंचेन टेशन दरियाबाद।
पहुँचि कै टेशन पूंछेन भइया, कब आयी रेल हमार।
इक दादा बोले लेन मा लागौ, तब बइठे का पइहऔ।
लेन मा लगिकई भीड़ का देखेन, अउर ओनायेन रेल।
सुनि कै छुक-छुक रेल कै, होइएगा रेलम-ठेल।
देख कै डेब्बन मा भीड़-भाड़, उड़िगे होश हमार।
मचिगा हल्ला, उधर चढ़ाओ इधर उतारौ।
तनिक से आपन गोड उठाऔ।
ओतनने मा हवे कोई समझावत
अपनी लंबी चौड़ी बाते हवे उ बतावत। 
उधर धक्का-मुक्की इधर गुस्सा गरमी
कोई बैठई का दईकै बनाए है नरमी।
घंटन के जैसे टंगा जात कोइ,
दबा जात कोई गिरा जात कोई।
झोरन के बीचन फंसा जात कोई।
कोउ कुहनी मारे, कोइ लाल पेर आंखिन से निहारै।
वहिम लडिका कसकै, वहिम बुढ़वा कहरै
वहिम चना चूरन पानी वाले टहरै।
वहीं मा बैठे चलाये हैं चरचा,
पढ़ाई कै चरचा, लिखाइ के चरचा
फलनवा के नईकी दुल्हनियाँ कै चरचा।
नेता से साथ बतावत हवे कोइ,
पटवारी कै बदली करावत हवे कोइ।
ननदी कै चक्कर है कोइ चरचा,
सासु कै नखरा गिनावत हवे कोइ।
लड़की से टांका कोइ है भिड़ाये,
मिनटय मा सरकार बनावत हवे कोइ,
मिनटय मा परधानी हटावत है कोइ।
लग्गी से पानी पियावत है कोइ।
कोइ पानी पी-पी लगाए है चक्कर
कोइ चिलम खैंचे उड़ावत धुआँ धक्कर।
वतनेन मा गाड़ी है हारन मारिस,
जोर कै धक्का उ अपनेन से मारिस
तिसरे चौथे घंटा मा अजोध्या उतारिस।
राम नाम कहिकै उतारेन है झोरा
चलेन धीरे-धीरे सरजू की ओरा।

रामशंकर विद्यार्थी