मीडिया शोध में पाद टिप्पणी की प्रासंगिकता
-रामशंकर विद्यार्थी
मौलिक शोध आद्यंत ऋण पर निर्भर करता है, जिसे शोधार्थी को विविध संदर्भ-ग्रंथों से उद्धरणों के रूप
में लेना पड़ता है। शोध कार्य मात्र उद्धरण डाल देने से ही पूरा नहीं होता बल्कि
इसके लिए उद्धरण ऋण भी जरूरी होता है। यह ऋण किसी पुस्तक से, किसी ग्रंथ अथवा खंड से लिया गया है, आदि का विवरण शोधार्थी को एकत्रित करना पड़ता है। शोध, ज्ञान के पहलू-विशेष के स्पष्टीकरण और अभिवर्धन की दिशा में
एक महत्त्वपूर्ण कदम होता है। शोधार्थी का शोधगत उद्देश्य अपने शोध को संप्रेषित
करना होता है, लेकिन
शोधार्थी की स्थापनाएं उद्धरणों के आलोक में स्फुटित होती रहतीं हैं। जब भी कोई
जिज्ञासु व्यक्ति किसी शोध को पढ़ता है तो शोधार्थी की स्थापनाओं और तार्किक
खंडन-मंडन से ही जिज्ञासा शांत नहीं कर लेता। उसके मन में जिज्ञासा रहती है कि
शोधार्थी द्वारा प्रयुक्त शोध संदर्भों का अवलोकन किया जाय।
शोधार्थी द्वारा अपने शोध में प्रयुक्त उद्धरणों की प्रमाणिकता की सिद्धि के
लिए स्रोत-ग्रंथो को जुटाना अनिवार्य हो जाता है। पाद टिप्पणी लगाते समय यह प्रश्न
बार-बार उठता है कि क्या पाद टिप्पणियों के प्रयोग के मात्र से ही शोध की मौलिकता
स्पष्ट हो जाती है। शोध में पाद टिप्पणी डालने से पहले यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि
वह वांछित है या नहीं। कोई भी तथ्य, तर्क, सूचना या विचार कभी भी अपुष्ट रूप में स्वीकार्य नहीं होता।
शोध को उच्च स्तरीय दिखाने के लिए वांछित-अवांछित उद्धरणों और पाद टिप्पणियों से
बोझिल बनाना न केवल अनुचित होता है बल्कि शोध की मौलिकता पर प्रभाव डालते
हैं।