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शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

आंतरिक एवं बाह्य स्वच्छता का अंतरसंबंध


लेखक- रामशंकर 
बहुत पुरानी कहावत है- जैसा खाओ अन्न वैसा रहे मन यहां हम एक बात और जोडना चाहेंगे स्वच्छ साफ रहेगा तन, तो निर्मल पावन रहेगा मन।  अर्थात् यदि आपका शरीर साफ-सुथरा व स्वस्थ है तो उसमें निश्चित रूप से निर्मल व पवित्र विचार रहेंगे और इस प्रकार आपकी आत्मा भी विशुद्ध होती जायेगी। यहां निर्मल व पावन मन से तात्पर्य ऐसे मन से है जिसमें किसी के लिए भी बुरे विचार, स्वार्थ, लोभ, वासना आदि के लिए कोई स्थान ना हो तथा व्यक्ति मन से परोपकार की भावना में आसक्त रहे, तो हमारे इस उद्देश्य वसुधैव कुटुम्बकम् को प्राप्त कर लेंगे। स्वच्छता जीवन का वह गुण है, जो व्यक्ति को अधिक समय तक जीवित रहने, सुखी रहने तथा सर्वोत्तम प्रकार से सेवा करने योग्य बनाता है।

लेकिन स्वच्छता के वर्तमान पटल पर दृष्टि डालते हैं तो देखते हैं कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 53.1 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं है। ग्रामीण इलाकों में यह संख्या 69.3 प्रतिशत  है। बदायूं में हाल ही में हुए दोहरे बलात्कार कांड के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन (एनएचआरसी) ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि अगर देश में ज्यादा शौचालय होंगे तो बलात्कार जैसी घटनाओं पर अंकुश लगेगा। कमिशन ने कहा, ‘एनएचआरसी का जोर इस बात पर है कि हर घर में शौचालय हो। खैर शौचालय बन जाएंगे तो ऐसी घटनाएँ रुक जाएंगी यह तो सभी बातें को शौचालय की पूरी उपलब्धता के बाद ही जाना जा सकता है। लेकिन यह बलात्कार, तेजाब हमला या अन्य प्रताड़ना ये घटनाएँ नहीं हैं, ये आंतरिक गंदगियाँ हैं ये परिचायक हैं अस्वच्छता की इनको कैसे हम कम कर सकते हैं इस पर भी विचार की जरूरत है।  इन गंदगियों से निपटने के लिए हमें अपने आप को नहीं अपने को मिले उत्तरदायित्व को समझना है। हम कौन हैं या हमें क्या करना है इसको भी जानना जरूरी है।  
(लेखक संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के जनसंचार विषय में पीएच.डी. शोधार्थी हैं।)