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मंगलवार, 12 मार्च 2019

श्रेष्ठ संचारक के रूप में महात्मा गांधी

 श्रेष्ठ संचारक के रूप में महात्मा गांधी
लेखक- डॉ रामशंकर विद्यार्थी
महात्मा गांधी न केवल एक राजनीतिज्ञ थे बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनका अच्छा खासा हस्तक्षेप था। वे एक सफल नीति निर्धारकअच्छे समाज सुधारककुशल अर्थशास्त्री तो थे हीउनका विशेष गुण थाउनका उत्कृष्ट जन संचारक होना। विख्यात मास कम्युनिकेटर मार्शल मैकलूहान ने कहा कि माध्यम ही संदेश है। इस संदेश को उन्होंने कभी गर्म कहा तो कभी संदेश को ही सर्वोपरि बताया। उनके बाद के संचार विशेषज्ञों ने जन आवश्यकता की इस प्रक्रिया पर काफी काम किया। लेकिन भारत के संदर्भ में एक व्यक्ति ऐसा हुआजो जनमत बनाने और एक विचार को देश में प्रसारित करने में सफल रहा। आजादी का मसीहाअहिंसा का पुजारी जो समाजवाद की अवधारणा नहीं जानता था। ऐसा व्यक्तित्व जिसने किसी सिद्धांत को नहीं बनाया लेकिन दुनिया ने उनके विचारों और मान्यताओं को एक महत्वपूर्ण सूचना माना। दुनिया की तमाम अवधारणाओं में जिनकी कई विषयों पर अवधारणा शिक्षा पद्धति में सम्मिलित हो गई।
वहीं सत्य आधारित दुनिया के लिए जनता को जागृत करने वाले महात्मा गाँधी एक उच्च कोटि के संचालक थे। जनमत बनाने वाले आज के अखबार जिस तरह संपादकीय और विचारों की श्रृंखला पाठकों के सामने पेश कर रहे हैंयह अवधारणा नई नहीं है सिर्फ इनके लक्ष्य बदल गए हैं। ब्रांड एम्बेसेडर और आईकॉन जैसी नई बातें संदेश के संदर्भ में पुरानी हैं। आजादीसत्याग्रह और गाँधी के साथ एक शब्द बड़ी शक्ति बनकर उभरावह था-पत्रकारिता। गाँधीजी ने उस समय सूचनाओं के माध्यम से देश में क्रांतिकारी परिवर्तन लायाजबकि माध्यमों की कमी से जनसंचार जूझ रहा था। उस समय जनसंचार की कोई अधोसंरचना नहीं थी। दुनिया में सूचनाओं का संप्रेषण एक जटिल प्रक्रिया थी। आज सूचनाओं को भेजने के लिए माध्यमों की कोई कमी नहीं है। वैश्वीकरण की अवधारणा और उसकी सर्वमान्यता के कारण दुनिया एक हो गई और इसमें संचार माध्यमों ने बड़ी अहम भूमिका निभाई है। इस दौर में उस समय की कल्पना की जानी चाहिए जबकि संसाधनों का अभाव था और आवश्यकताओं की कोई कमी नहीं थी।
गाँधीजी ने कहा कि मैं पत्रकारिता सिर्फ पत्रकारिता करने के लिए नहीं करतामेरा लक्ष्य है सेवा करना। उन्होंने 2 जुलाई 1925 के 'यंग इंडियामें लिखा- 'मेरा लक्ष्य धन कमाना नहीं है। समाचार-पत्र एक सामाजिक संस्था है। उस दौर में गाँधीजी ने कहा कि मैं पत्रकारिता सिर्फ पत्रकारिता करने के लिए नहीं करतामेरा लक्ष्य है सेवा करना। उन्होंने 2 जुलाई 1925 के 'यंग इंडियामें लिखा- मेरा लक्ष्य धन कमाना नहीं है। समाचार-पत्र एक सामाजिक संस्था है।” पाठकों को शिक्षित करने में ही इसकी सफलता है। मैंने पत्रकारिता को पत्रकारिता के लिए नहींबल्कि अपने जीवन में एक मिशन के तौर पर लिया है। मेरा मिशन उदाहरणों द्वारा जनता को शिक्षित करना है। नीति वाचनसेवा करना और सत्याग्रह के समान कोई अस्त्र नहीं हैजो सीधे ही अहिंसा तथा सत्य की उपसिद्धि है।
सूचना जगत स्टिंग ऑपरेशन के साथ खोजी पत्रकारिता के साथ हाथ मिलाकर चल निकला हैजहाँ खबर में सच के साथ मिलावट की कोई कमी नहीं है। सच जो कि किसी रंगीन पुड़िया में बँधा हुआ है उसमें आदमी के मनोभावों के साथ खेलने की योग्यता के अलावा और कोई गुण नहीं है। सत्य के साथ त्रुटियों की भरमार है। आज संपादकीय जनमत निर्धारण और दिशा-निर्देशन जैसा कार्य नहीं कर रहे। जिनकी अपेक्षा की जाती है वे बाजार और सत्ता के सहयोगी हो गए हैं। वहीं गाँधीजी ने संपादकीय के साथ एक ऐसी नींव रखीजो उन्हें दुनिया का अच्छा संपादक साबित करता है। वे एक ऐसे पत्रकार थेजिनकी ग्रामीण और शहरी जनता पर एक साथ पकड़ थी। वे एक अच्छे सत्याग्रही होने के साथ एक उत्तम संचारक थे।
उनका कहना था कि पत्रकारिता लोगों की भावनाओं को समझने और उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति देना है। अभिव्यक्ति देने में सफल आदमी ही सफल संचारक हो सकता है। इस अवधारणा को आज संचार के सभी माध्यम और प्रकार भलीभाँति अपना रहे हैं। लेकिन आज प्रेस की आजादी और उसके आचरण पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। उससे किस प्रकार से सही सूचना की अपेक्षा की जा सकती हैइस पर गाँधीजी ने प्रेस को गैरजिम्मेदार और अशुद्ध माना कि उसमें ऐसे व्यक्ति की गलत तस्वीर पेश की जा रही है। सही और न्याय देखने वाले को सिर्फ गलतराह दिखाई जा रही है। आधुनिकता की चपेट में पत्रकारिता एक ऐसे मोड़ पर है जिसमें सही-गलत का भेद समाप्त हो गया है। 

होलिका प्रश्न


होलिका प्रश्न

कई दिनों बाद आज फिर होलिका जलने बैठ गयी,
गोद में लेकर प्रहलाद को अभिमान से ऐंठ गयी।

धरा कुपित होकर बोली क्यों ऐंठन में जलना स्वीकार किया,
पाप कर्म का साथ देकर क्यों नारी को शर्मसार किया।

छोटे से बालक को लेकर जलाने में क्यों तेरी छाती न काँप गई,
लाड़ प्यार के समय क्यों उसे मारने की चिंता व्याप गई।

होलिका बोली
नारी हूँ, नारी इच्छा सम्मान है,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , फिर क्यों मेरा अपमान है।

एक भातृ प्रतिज्ञा के चक्कर में मैंने अपना सर्वस्व लुटा डाला,
मैंने उसके अभिमानों सहित खुद खुद आज जला डाला।

लेकिन पुरुषों को देख जरा, क्या अपना दोहरा चरित्र मिटाया है,
रंगों और सम्बन्धों के बदले क्या उसने नारी का हवस नहीं बनाया है।   
करके सदा व्यंग्य मुझपर, क्यों लांछन सदा लगाया है,  
खुद की कुंठा को चिपकाकर क्यों कपड़ों पर दोष मढ़ाया है।

खुदकों संसार खेवइया बन, क्यों मुझको पतवार बनाया है,
छह माह की बच्ची से वृदधा तक को शिकार बनाया है।  

मुझे जलाने वालों इस शैतान को कब जलावोगे,
जलाकर इसकी राख का मुझ पर गुलाल उड़ावोगे। 
डॉ रामशंकर विद्यार्थी

सोमवार, 4 मार्च 2019

नहीं पढ़ना है...


बेटी के नाम चिट्ठी
नहीं पढ़ना है...
सुबह उठकर जब भी
मैं तुम्हें देखता हूँ
तुम मेरी परी,
मेरी पहचान लगती हो
तुम्हारी तोतले शब्द
अनकहे इतिहास गढ़ते हैं।
तुम्हारी शिक्षा से जुड़े मेरे अरमां  
सामाजिक भय को पनाह देती है।
तुम जब भी स्कूल जाना
तुम पढ़कर आना, ,
संस्कार और सदाचार को
बलिदानों के उपहार को।
तुम पढ़ना इतिहास को
मगर अपने इतिहास को भी जानना,
तुम पढ़ना भूगोल को
लेकिन यथार्थ के भूगोल को समझने के लिए।
तुम संस्कृत को पढ़ना
पर अपनी संस्कृति सहेजने के लिए,
अर्थशास्त्र भी तुम्हें पढ़ना है
पर अपने अर्थशास्त्र को समझकर ।
तुम्हें सब कुछ पढ़ना है
हुनर पाने के लिए,
पर नहीं पढ़ना है
१०० अंक  लाने के लिए।

डॉ रामशंकर विद्यार्थी