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सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका

आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका

रामशंकर
शोधार्थी- पीएच.डी. जनसंचार एवं ICSSR डॉक्टोरल रिसर्च फ़ेलो
म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा (महाराष्ट्र)ईमेल- ramshankarbarabanki@gmail.com
  


            आपदा एक बहुत विषयक क्षेत्र है जिसमें बड़े पैमाने पर निगरानी मूल्यांकन, खोजबीन और बचाव, राहत, पुर्नवास आदि मुद्दे/पहलू शामिल होते है। आपदा को एक बड़ी एकाएक आने वाली मुसीबत के रूप में परिभाषित किया जा जाता है। अनेक सरकारी, गैरसरकारी संगठन, निजी संगठन इस मुसीबत का मुकाबला करने के लिए तैयारी करते है। वे इसकी मार कम करने, आपदा पूर्व की स्थिति में लाकर लोगों का कष्ट घटाने और उन्हें काम-धंधे से लगाने की कोशिश करते है। इन्हीं तीनों कार्यों को इकट्ठा कर दे तो इसे आपदा प्रबंधन कहते है।
आपदा प्रबंधन का पहला सिद्धान्त है आपदा निवारण, आपदा प्रबंधन के अन्तर्गत पीड़ित लोगों  की निगरानी, बचाव, भोजन तथा पुर्नवास शामिल है। इसमें बहुउद्देशीय शासन व्यवस्था, वैज्ञानिक, नियोजन और मीडिया क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आपदा प्रबंधन के अन्तर्गत पीड़ित लोगो की निगरानी, बचाव भोजन तथा पुर्नवास शमिल है। इसमें बहुद्देशीय शासन व्यवस्था, वैज्ञानिक, नियोजन और मीडिया, क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आपदा प्रबंधन अपने आप में कुछ नहीं यह तो आपदाओं  के नियंत्रण का कौशल पूर्ण, मार्ग, तरीका, युक्ति तथा पद्धति है, जब लोगों को आपदाओं के बारे में शिक्षित या जागरूक बनाया जाता है, तो यह कार्य आसान हो जाता है। एक गरीब और विकास शील देश होने के कारण भारत में आपदाओं के बारे में जनरक्षा एवं बचाव की जानकारी अधूरी है। आपदा प्रबंधन की प्रणालियाँ और तकनीक देश के बारे में मीडिया लोगों केा जागरूक आपदाओं के प्रति अपनी सक्रिय भूमिका निभाती है। मीडिया आपदा प्रबंधन के विभिन्न विषयों को लेकर प्रशासन तथा स्त्थनीय लोगों में सामंजस्य की भूमिका निभाती है।
आपदा प्रबंधन के लिए जरूरी है। समय से जानकारी और सफल समन्वय अक्सर छोटी या बड़ी आपदाओं में कमी रह जाती है, जिसकी वजह से मदद व्यक्ति के पास समय पर नहीं पहुँच पाती है। भुज और अजार में आये भूकंम्प से भारी क्षति हुई। मीडिया की खबरों के बावजूद राहत सामग्री सहित विभिन्न एजेंसियां भुज के आगे कच्छ पहुँचने में दो दिन से ज्यादा समय लग गया। इस समय मीडिया को अधिक  सक्रियता से अपना काम करना चाहिए। इन प्राकृतिक आपदाओं में देखा गया है कि सार्वजनिक सूचना तंत्र पहले प्रभावित होता है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों और मीडिया में सम्पर्क प्रभावित रहता है, ऐसे में आपदा प्रंबधन में मीडिया का रोल और अधिक बढ़ जाता है। मीडिया लोगों को खूब जागरूक कर सकती है।  आपदायिक घटनाओं के समय मीडिया का रोल बढ़ जाता है, चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो चाहे इलेक्ट्रोनिक मीडिया हो।
समाज की कार्यात्मकता में गम्भीर रूकावट, व्यापक पैमाने पर मानवीय और पर्यावरणीय क्षति, जो कि प्रभावित समाज द्वारा उसके पास उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करते हुए भी उस आपदायिक घटना से निपटना समाज की क्षमता से बाहर की बात हो जाय,आपदा कहलाती है। आपदाऐं सामान्य जन-जीवन से लेकर विकास प्रक्रिया में भी बाधा पैदा करती है और अचानक हमें ऐसी हिंसा का मुंह देखना पड़ता है, जो न केवल जिन्दगियां और ढांचो को तबाह कर देती है, बल्कि परिवारों को भी एक-दूसरे से अलग कर देती है। आपदाओं के कारण जिन्दगियां की औसत वार्षिक हानि की दृष्टि से सर्वोच्च दस देशों में आस्ट्रेलिया को छोड़कर विकासशील देश शामिल है। इन राष्ट्रों में से प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से भारत अधिक संवेदनशील है। इसकी भौगोलिक स्थिति, जलवायु और परिस्थतिकीय व्यवस्था के कारण भारत को हर वर्ष प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। भारत में प्राकृतिक आपदाएं हर साल बड़ी संख्या में जनसंख्या को अपना शिकार बनाती है।
देश की ढाँचागत तथा जलवायुगत परिस्थितियाँ लगभग देश के 56-60 प्रतिशत भाग को भूकम्प, बाढ, चक्रवात, के प्रति संवेदनशील है। फिर भी आपदा प्रबंधन को विकास योजनाओं तथा गरीबी उन्मूलन रणनीति में अनिवार्य रूप से शामिल नहीं किया गया है। आपदा को एकाएक आने वाली एक बडी मुसीबत के रूप  मे परिभाषित किया जाता है। अनेक सरकारी तथा गैर सरकारी संगठन इस मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार रहते है। आपदा की मार को कम करने, आपदापूर्व स्थिति में लाने उन्हें ,काम धन्धे से लगाने, पुर्नवास आदि आपदा प्रबंधन के अर्न्तगत निहित है। और फिर आपदा प्रबंधन जैसे बडे  कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यकता होती है, सशक्त संचार तंत्र की अर्थात मीडिया की। यह शोध आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका पर अध्ययन है। भारत में अनेक प्राकृतिक आपदायें  आयी चाहे वह गुजरात, महाराष्ट्र उत्तराखंड के भूकंप, सुनामी हो चाहे नेपाल की कोसी नदी से छोडे गए जल से बिहार ,उत्तरी भारत का, जल मग्न वीभत्स मंजर या भागीरथी नदी का कहर। भारत में आपदा प्रबंधन के नाम पर होता है, तो केवल यह कि आपदा ग्रस्त समुदायों को राहत पहुचाँना और उसका पुर्नवास कराना, लेकिन इससे आर्थिक और वैकासिक क्षति की भरपाई नहीं हो सकती है। गुजरात के भूकम्प से ज्यादा वीभत्स अमेरिका और  जापान के भूकम्प थे, लेकिन वहाँ नुकसान कम हुआ क्योंकि वहाँ मीडिया के द्वारा लोगों को समय- समय पर आपदा के प्रबंधन के प्रति जागरूक कराया जाता है। उसके ठीक विपरीत है हमारे यहाँ की मीडिया। मीडिया जो कि चौथे स्तम्भ के रूप में परिलच्छित है, उसकी क्या भूमिका है। क्या मीडिया लोगों को सजग एवं जागरूक कर रही है
साहित्य का पुनरावलोकन
1.      आपदा प्रबंधन आधारित प्रमुख साहित्य, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के मीडिया आधारित शोध पत्र- पत्रिकाएं,
2.      आपदा से जुड़े चर्चित ख्यातिलब्ध विद्वानों एवं साहित्यकारों द्वारा आपदा प्रबंधन और मीडिया  आलोक में रचित आधारित संस्थागत, विभागीय एवं अकादमिक साहित्य,
3.      आपदा प्रबंधन के समाचार पर आधारित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अध्ययन, एवं पुस्तक आदि। 
अध्ययन के उद्देश्य
            प्रस्तुत अध्ययन विषय आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका के विशद अध्ययन हेतु निम्नलिखित उद्देश्य  बिंदुवत् है -
·       आपदा के समय मीडिया की स्थिति का विश्लेषण।
·       आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूकता फैलाने में मीडिया के प्रभाव का अध्ययन।
·       आपदा के समय पीड़ित समाज तक मीडिया की पहुँच अध्ययन।
न्यादर्श का चयन
प्रस्तुत शोध कार्य के लिए उत्तर प्रदेश में बहराइच तथा बाराबंकी जिले के आपदाग्रस्त  लोग तथा आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका के प्रभाव को जानने के लिए आमजन को चयनित किया गया है। आमजन में बाढ़ से आपदाग्रस्त महिलाएं व पुरुष तथा कुछ विद्यार्थी शामिल हैं।   
शोध का महत्व
·       आपदा प्रबंधन और मीडिया संबंधों का सूक्ष्म विश्लेषण  संभव हो पायेगा,
·       आपदा पीड़ित समाज और मीडिया की पारदर्शी भूमिका संभव हो पायेगा,
·       आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को सामने लाने में मीडिया के जनमानस तक पहुँच व उसके प्रभाव का अध्ययन हो पायेगा ।
 अध्ययन प्रविधि
प्रस्तुत शोध के लिए सर्वेक्षण व अवलोकन विधि का चयन किया गया है ।
प्राथमिक  स्रोत : प्रश्नावली,साक्षात्कार
द्वितीयक स्रोत: संबंधित साहित्य का अध्ययन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, आलेखों, चर्चित ख्यातिलब्ध विद्वानों एवं साहित्यकारों के द्वारा प्रस्तुत शोध के आलोक में प्रस्तुत विचार इत्यादि।
अध्ययन की तकनीक
              प्रस्तुत अध्ययन में साक्षात्कार और प्रश्नावली तकनीक का प्रयोग किया गया है ।
प्रदत संकलन-
शोध के लिये चयनित समग्र क्षेत्र में 50 प्रश्नावली का वितरण किया गया। प्रश्नावली में कुल 10 प्रश्न ऐसे थे जो उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनये गए थे। मीडिया की विवेचना, वर्तमान में आपदा के समय मीडिया का  स्वरूप, मीडिया का जनमानस पर प्रभाव व आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका आदि से संबंधित प्रश्न सम्मिलित किए गए थे। तथ्य के संकलन के लिए  आपदा प्रबंधन से जुड़े समाजसेवी संघठन एवं मीडिया से जुड़े लोगों से  साक्षात्कार भी लिया गया।
प्रदत्त विश्लेषण व विवेचना
प्रश्नावली से प्राप्त आकड़ों के विश्लेषण से जो महत्वपूर्ण परिणाम उभर कर आये हैं उनका वर्णन निष्कर्ष के रूप में निम्नलिखित है –
  अध्ययन में सहभागी उत्तरदाताओं का सामान्य परिचय -
·       प्रस्तुत अध्ययन में उत्तरदाता आपदा पीड़ित क्षेत्र के हैं ।
·       अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाता 20 वर्ष से 60 वर्ष के मध्य आयु के हैं ।
·       अध्ययन में 40 प्रतिशत उत्तरदाता महिला 60 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष है ।   
अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाताओं में सर्वाधिक 60 प्रतिशत उत्तरदाता ने माना की आपदा प्रबंधन के बारे जरूरी जानकारी रखते है। 40 प्रतिशत लोगों ने नहीं में अपना मत प्रदान किया । निष्कर्षतः आपदा क्षेत्र में रहने वाले अधिकतर उत्तरदाता आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूक हैं।
अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाताओं में क्या आपदाओं का प्रबंधन जरूरी है के प्रश्न पर 94 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ, शून्य प्रतिशत लोगों ने नहीं तथा 6 प्रतिशत लोगों ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रदान किया। निष्कर्षतः आपदाओं का प्रबंधन जरूरी है।
आपदा प्रबंधन और प्रभावी संचार माध्यम के सवाल पर 16 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने प्रिंट मीडिया, 20 प्रतिशत इलेक्ट्रोनिक मीडिया, 4 प्रतिशत लोग वेब मीडिया तथा 60 प्रतिशत लोगों ने सभी संचार माध्यमों पर आपदा प्रबंधन से संबंधित समाचार प्रभावी ढंग से प्रसारित व प्रकाशित होने का मत व्यक्त किया है। निष्कर्षतः आपदा के प्रबंधन  के लिए सभी संचार माध्यम प्रभावी हैं।
अध्ययन में आपदा प्रबंधन में मीडिया की सकारात्मक भूमिका पर 72 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ, 06 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रकट किया है। निष्कर्षतः आपदा प्रबंधन में में की सकारात्मक भूमिका होती है।
अध्ययन में आपदा प्रबंधन और पसंदीदा अख़बार के पप्रश्न पर 50 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हिंदुस्तान, 36 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने दैनिक जागरण,04 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अमर उजाला तथा 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अन्य अख़बार पढ़ने का मत प्रदान किया है। निष्कर्षतः आपदा के समय अधिकतर उत्तरदाता हिदुस्तान एवं दैनिक जागरण अखबार पढ़ना पसंद करते हैं।
अध्ययन में मीडिया का आपदा के समय सेवा की लिए जनजागरूकता करने के सवाल पर 90 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ, 02 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 08 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रदान किया है। निष्कर्षतः आपदा के समय मीडिया द्वारा जनजागरूकता कार्यक्रम चलाया जाता है।
अध्ययन में आपदा के समय बचाव दल और मीडिया में समन्वय होना आवश्यक है, के सवाल पर 98 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ शून्य प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 02 प्रतिशत उत्तरदाताओं कुछ कह नहीं सकते का मत प्रकट किया। निष्कर्षतः आपदा के समय बचाव दल और मीडिया में समन्वय होना अत्यंत आवश्यक है।
प्राकृतिक आपदा के समय मौसम विभाग की भूमिका सकारात्मक होती है, सवाल पर 52 प्रतिशत लोगों ने हाँ, 26 प्रतिशत नहीं तथा 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रकट किया है। निष्कर्षतः भले ही हम नतीजों से यह कह सकते है कि मौसम विभाग की भूमिका सकारात्मक होती है, लेकिन प्राप्त आंकड़ों से स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
अध्ययन में आपदाओं के बार-बार आने पर विकास प्रक्रिया में बाधा पहुँचती है, के सवाल पर 60 प्रतिशत लोगों ने हाँ, 20 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 20 प्रतिशत उत्तरदाता कुछ कह पाने में असमर्थ नजर आए। निष्कर्षतः आंकड़ों के नतीजों से स्थिति स्पष्ट है की आपदाओं से विकास प्रक्रिया बाधित होती है।  
अध्ययन में विशेष मत के सवाल पर कई मत मिले जो निम्न हैं – सर्वेक्षण में प्राप्त मतों के अनुसार आपदा प्रबंधन निभा सकती है। हैती में आए भूकंप व उत्तराखंड में बारिश का कहर में मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की लेकिन वह इससे कहीं अधिक भी कर सकती थी। कम संसाधन तथा प्रौद्योगिकी का अभाव भी यहाँ के प्रबंधा की मजबूरी है। मीडिया को समाज में उच्चस्तरीय समन्वय के साथ काम करना चाहिए, जिससे समाज में मीडिया की भ्रामक स्थिति समाप्त हो सके। आकाशवाणी द्वारा दी जाने वाली मौसम की जानकारी को और अधिक प्रभावी एवं स्पष्ट होनी चाहिए, जिससे मीडिया आपदा प्रबंधन को और अधिक मजबूत कर सके ।    
निष्कर्ष
प्रस्तुत शोध ’’प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका’’ को ध्यान में रखते हुए अनुसांगिक शोध प्रविधि के सर्वेक्षण माध्यम से प्राप्त तथ्यों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं  कि 72 प्रतिशत उत्तरदाताओं के अनुसार प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में मीडिया की सकारात्मक भूमिका को स्वीकार किया तथा 6 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नकारात्मक तथा 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं  से कुछ भी न कहने के परिणाम प्राप्त हुए है। मीडिया जन जागरण का एक सशक्त माध्यम है। अपने प्रसारण के माध्यम से इसने आज समाज में आपदा प्रबंधन में योगदान कर प्रबंधन में नयी दिशा की नींव रखी है। हालांकि यह बात सर्वेक्षण से सामने आयी है कि मीडिया प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में भरपूर योगदान कर रही है। लेकिन हाल ही में उत्तराखंड में भीषण बारिश के कारण आई प्राकृतिक आपदा में जहां सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए हैं, वहीं सैकड़ों लाशें अभी भी मलबे में दबी हुई हैं। केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम पूरी तरह से तबाह हो गए और समूचा रुद्रप्रयाग जिला मलबे के ढेर में तब्दिल हो गया। इससे एक बार फिर से यह सिद्ध हुआ की भारत के पास प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।आपदा रिपोर्टर को अलग-अलग हालात में काम करना होता है। इन हालात को समझना जरूरी है और ये हालात आपदा की किस्म पर निर्भर है। प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य और अन्य जीवों को बहुत प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक आपदा को कई रूपों में देखा जाता है। हरिकेन, सुनामी, सूखा, बाढ़, टायफून, बवंडर, चक्रवात आदि मौसम से सम्बन्धित प्राकृतिक आपदा हैं। भूस्खलन और अवघाव या हिमघाव (बर्फ की सरकती हुई चट्टान) ऐसी प्राकृतिक आपदा हैं जिनके कारण प्रभावित स्थल का आकार बदल जाया करता है। भूकम्प और ज्वालामुखी भी कमोबेश इसी तरह की आपदा हैं। ज्वालामुखी के कारण अग्निकांड अथवा दावानल जैसे परिणाम आते हैं। ऐसा टेक्टोनिक प्लेट के कारण हुआ करता है। टिड्डी दल का हमला, कीटों के प्रकोप को भी प्राकृतिक आपदा में शामिल किया गया है। ज्वालामुखी, भूकम्प, सुनामी, बाढ़, दावानल, टायफून, बवंडर, चक्रवात, भूस्खलन तेज गति वाली आपदाएं हैं। दूसरी ओर सूखा, कीटों का प्रकोप और अग्निकांड धीमी गति वाली आपदाओं में शामिल की जाती हैं।
ग्रंथ सहायक संदर्भ
भूकम्प - सुदर्शन कुमार भाटिया
आपदा प्रबंधन: जरूरी है इच्छाशक्ति- सतीश चन्द्र सक्सेना
पत्रिकाऐं-  
 योजना जून 2009
कुरूक्षेत्र  फरवरी  2005
कुरूक्षेत्र  अगस्त 2009
इडियान्यूज-2009
डायलाग इन्डिया नवम्बर 2009
सिविल सर्विसेज टाइम्स अक्टूबर 2005
समाचार  पत्र
हिन्दुस्तान, सोमवार, 2 नवम्बर 2010
रोजगार समाचार, अक्टूबर 2010

अमर उजाला- 10 अक्टूबर






1 टिप्पणी:

  1. वर्ष 2013 में आपदा ने केदारनाथ क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया और कई लोगों की जान गई किंतु बदरीनाथ और रुद्रप्रयाग जिला तबाह नहीं हुआ। आपदा केदारनाथ से प्रवाहित होने वाले मंदाकिनी नदी के उद्गम से शुरू हुआ और मंदाकिनी नदी रुद्रप्रयाग में अलकनंदा से मिले ही उसमें समा गई। इसलिए बदरीनाथ, रुद्रप्रयाग जिला तबाह हो गया यह लिखना उचित नहीं है। संभव हो तो इसमें संसोधन की आवश्यकता है।

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