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रविवार, 27 सितंबर 2015

कुपोषण एवं गरीबी उन्मूलन का एक सशक्त प्रयास: खाद्य सुरक्षा योजना

कुपोषण एवं गरीबी उन्मूलन का एक सशक्त प्रयास: खाद्य सुरक्षा योजना
            हमारे देश की 74 प्रतिशत जनसंख्या गाँव में निवास करती है । ग्रामीण जनसंख्या को विकास की उत्तम व्यवस्था के लिए सरकार द्वारा समय-समय नित नए-नए पर प्रयोग होते रहते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 2009 में लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुये कहा था कि हमारी सरकार भारत की पूरी जनता को उनकी मूलभूत सुविधाएं जैसे रोटी कपड़ा और मकान देने पर अमादा है और इस कार्य के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहेगी । ग्रामीण जनसमान्य को ध्यान में रखकर सरकार ने भोजन की मूलभूत जरूरत को पूरा करने के लिए समय समय पर महत्वपूर्ण कदम उठाये है। सरकार की विभिन्न विकासपरक योजनाओं जैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना, अन्नत्योदय योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना आदि अनेक योजनाएँ हैं, जो मूल रूप में रोजगार व स्वास्थ्य से लेकर स्वस्थ भोजन तक के लिए प्रतिबद्ध हैं। उसी कड़ी में मूलरूप से ग्रामीण सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है, खाद्य सुरक्षा योजना। ग्रामीण जनता के लिए सरकार ने कुपोषण और भुखमरी से निपटने के लिए इस योजना के रूप सम्मान जनक व ठोस कदम उठाया है ।
            खाद्य सुरक्षा योजना से लाखों परिवार को सुकून से एक सम्पूर्ण भोजन संभव हो रहा है। पहले के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा का अर्थ भरपेट भोजन था, परंतु आज के संदर्भ में जिस प्रकार विकास के नए प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं।  यह कहना गलत नहीं होगा कि खाद्य सुरक्षा का आशय भौतिक आर्थिक और सामाजिक पहुँच के अलावा संतुलित आहार, साफ पानी, स्वच्छ वातावरण व प्राथमिक स्वस्थ्य तक जा पहुंचा है। भारत सरकार खाद्य सुरक्षा के लिए हमेशा से प्रयासरत रही है। खाद्यान्न तथा इससे संबधित क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार ने अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया ताकि कृषि व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव दिखे।
            भारत में कुपोषण और गरीबी एक सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे खत्म करने के लिए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून तैयार किया है। इस योजना से भारत के प्रत्येक नागरिक को भरपेट भोजन का कानूनी हक प्राप्त हो गया है। इसके लिए विधेयक में कारगर प्रावधान किए गए हैं, ताकि बिना अतिरिक्त बोझ के यह योजना निर्बाध रूप से चल सके। इस योजना में सरकार पर आर्थिक खर्च के बारे में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा, जी ने लिखा है कि इस बिल के तहत तीन योजनाएं पहले ही चालू हैं, जिन पर सरकार पैसे खर्च कर रही है। इस विधेयक द्वारा सरकार पर जो खर्च बढ़ेगा वह केवल 30 हज़ार करोड़ का है, यही सरकार पाँच लाख करोड़ रूपये का टैक्स माफ करती है। अगर यह टैक्स माफी अगर बंद  कर दी जाय तो आसानी से यह खर्च निकाल सकता है।  
योजना के निर्माण के समय ऐसा माना जा रहा था कि इस विधेयक से किसानों, विशेष तौर पर छोटे और मझौले किसानों की खेती करने में कम रूचि कम होगी, लेकिन अब योजना किसानों को वरदान के रूप में साबित हो रही है, क्योंकि खाद्यान्नों का उत्पादन किसानों के लिए आजीविका का एक माध्यम है, जिसके लिए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की पंहुच हर वर्ष बढ़ रही है और विधेयक के लागू होने के फलस्वरूप आवश्यकता बढ़ने के कारण ज्यादा से ज्यादा किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आएंगे। इसलिए किसानों को हतोत्साहित करने के बजाय विधेयक किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके अतिरिक्त सस्ती दरों पर खाद्यान्न मिलने से छोटे किसानों की सीमित आमदनी पर बोझ कम होगा और वो बचायी हुई रकम को अन्य आवश्यकताओं पर खर्च कर अपने जीवनस्तर में सुधार कर सकेंगे।   
क्या है खाद्य सुरक्षा योजना?
            इस योजना के तहत देश की करीब दो तिहाई आबादी को लाभ मिलने की उम्मीद है।  योजना के मुताबिक गरीबों को 2 रुपए किलो गेहूं, 3 रुपए किलो चावल और 1 रुपए किलो मोटा अनाज राशन दुकानों के माध्यम से दिया जा रहा है।  एक परिवार को हर माह 25 ‍किलो अनाज मिलेगा। गांवों की 75 फीसदी और शहरों में करीब 50 फीसदी आबादी तक यह योजना पहुंचने की उम्मीद है।  इस योजना को फिलहाल 3 साल के लिए लागू करने की बात कही जा रही है।
कितना और क्या देगी सरकार ?
            खाद्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत मिड डे ‍मील, आईसीडीएस भी शामिल हो जाएंगे। अनुमान के मुताबिक इस योजना के लागू होने से सरकार को प्रतिवर्ष 1 लाख 24 करोड़ रुपए की ‍सब्सिडी देनी होगी।  एक किलो चावल पर 23.50 और गेहूं पर प्रति किलो 18 रुपए की सब्सिडी दी जा रही है। 3 साल में करीब 6 लाख करोड़ की सब्सिडी दिए जाने का अनुमान है।  
            आज इस योजना को जनमानस में लागू करने के लिए लगभग पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध है। प्रति वर्ष अन्य लाभकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न की कुल मि‍लाकर 612.3 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। खाद्यान्नों की खऱीद (गेंहू और चावल) जिसमें कुल मात्रा और उत्पादन का प्रतिशत शामिल है, उसमें हाल के वर्षों में प्रगति हुई है। औसतन खाद्यान्न की वार्षिक खऱीद जो वर्ष 2000-2001 से 2006-07 के दौरान कुल औसतन वार्षिक उत्पादन के 24.30 प्रतिशत के आधार पर 382.2 लाख टन थी वो वर्ष 2011-12 के दौरान औसतन वार्षिक उत्पादन 33.24 प्रतिशत कर 602.4 लाख टन पर पहुंच गई। इसलिए वर्तमान में खाद्यान्नों के उत्पादन और इसकी खरीद के आधार पर आवश्यकता पूरी की जा सकेगी। यहां तक कि वर्ष 2012-13 के दौरान खाद्यान्न के उत्पादन में हल्की कमी होने के अनुमान के बावजूद विधेयक की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
            इस योजना को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में 5.21 लाख परिवारों को शामिल किया गया है। इसमें गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन बसर करने वाले परिवार, एपीएल राशनकार्ड धारकों और अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों को शामिल किया जाएगा. वर्तमान में टीपीडीएस के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे के 6.52 करोड़ परिवारों को अनाज दिया जाता है, जिसमें 2.50 करोड़ परिवार अंत्‍योदय अन्न योजना (एएवाई) भी शामिल है। इसके लिए भारत के महापंजीयक के 1999-2000 के लिए जनसंख्या के अनुमानों और योजना आयोग के वर्ष 1993-94 के आधार  पर निर्धन लोगों के 36 प्रतिशत होने को आधार माना गया है। शेष परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के अंतर्गत अनाज दिया जाता है। एएवाई और बीपीएल परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज दिया जाता है। एपीएल परिवारों को अनाज इसकी उपलब्‍धता के आधार पर दिया जाता है। केंद्रीय वितरण मूल्य (सीआईपी) गेहूं/चावल प्रति किलो एएवाई को रूपए 2/3, बीपीएल परिवारों को 4.15/5.65 रूपए और एपीएल परिवारों को 6.10/8.30 रूपए की दर से दिया जाता है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कुल प्रस्तावित परिवारों में से एक-चौथाई को ही 35 किलो प्रति परिवार के आधार पर नियत खाद्यान्न दिया जा रहा है। वहीं एनएफएसबी में अखिल भारतीय स्तर पर कुल जनसंख्या के 67 फीसदी हिस्से को 5 किलो खाद्यान्न देने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें एएवाई परिवारों को, जो निर्धन में निधर्नतम हैं, को 35 किलो प्रति परिवार प्रति माह खाद्यान्न सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही टीपीडीएस में अध्यादेश के तहत सभी परिवारों को वर्तमान के एएवाई मूल्यों के समान गेंहूं 3 रूपए और  चावल 2 रूपए की दर से दिया जाएगा। परिणाम स्वरूप वर्तमान में बीपीएल श्रेणी में आने वाले परिवार जिन्हें खाद्यान्न की मात्रा कम मिलेगी, उन्हें सब्सिडी दरों पर अनाज मिलने का फायदा मिलेगा।
खाद्य सुरक्षा योजना में प्रावधान
            योजना के तहत देश की 63.5 प्रतिशत आबादी को सस्ते दामों में अनाज मुहैया कराया जा रहा है।  खाद्य सुरक्षा विधेयक का बजट पिछले वित्तीय वर्ष के 63000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 95000 करोड़ रुपए किया गया है। कृषि उत्पाद बढ़ाने के लिए 110000 करोड़ रुपए का निवेश प्रस्ताव भी अपेक्षित है।
खाद्य सुरक्षा योजना खास पहलू-
खाद्य सुरक्षा योजना से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं-
·       इस बिल के तहत 3 सालों तक चावल 3 रुपये किलो, गेहूं 2 रुपये किलो और मोटा अनाज 1 रुपये किलो देने का प्रावधान है।
·       योजना का लाभ पाने का हकदार कौन होगा, ये तय करने की जिम्मेदारी केंद्र ने राज्य सरकारों पर छोड़ दी है।
·       घर की सबसे बुजुर्ग महिला को परिवार का मुखिया माना जाएगा।
·       गर्भवती महिला और बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं को भोजन के अलावा अन्य मातृत्व लाभ (1000 रुपये) भी मिलेंगे।
·       योजना को लागू करने के लिए सरकार को इस वर्ष (2013-14) 612.3 लाख टन अनाज की जरूरत होगी।
·       केंद्र को अनाज के खरीद एवं वितरण के लिए 1.25 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
·       गांवों की 75 फीसदी और शहरों की 50 फीसदी आबादी इस योजना के दायरे में आएगी।
·       अगर राज्य सरकार सस्ता अनाज नहीं दे पाई तो केंद्र द्वारा मदद मुहैया कराई जाएगी।
·        6 से 14 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों को आईसीडीएस और मिड-डे-मील योजना का लाभ मिलेगा।
·       शिकायतों को दूर करने के लिए सभी राज्यों को फूड पैनल या आयोग बनाना होगा. अगर कोई कानून का पालन नहीं करता तो आयोग उस पर कार्रवाई हो सकती है।
राज्य सरकार का दायित्व व कार्य-
 विधेयक को कार्यान्वित करने से पहले कुछ प्रारंभिक कार्य किया जाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए नियमावली के तहत टीडीपीएस के अंतर्गत प्रत्येक राज्य और संघ शासित प्रदेशों में घरों की वास्तविक पहचान की जानी है। इसलिए राज्य सरकारों को इनकी पहचान के लिए उचित मानक बनाने और उसके बाद पहचान का वास्तविक कार्य करने की आवश्यकता है। विधेयक के तहत लाभार्थी घरों की पहचान पूरी होने के बाद ही खाद्यन्न का आवंटन और वितरण किया जा सकता है। इसलिए विधेयक में पहचान के कार्य के प्रारंभ होने के बाद इसे 180 दिनों में पूरा किए जाने का प्रावधान किया गया है। यह अवधि हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है और यदि कोई राज्य इसे पहले लागू करना चाहता है तो उसे इसके लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
विधेयक को जारी करने के लिए इसमें वर्तमान में राज्य में लागू योजना और दिशानिर्देश आदि के जारी रहने के अस्थायी प्रावधान किए गए हैं। विधेयक में शिकायतें दूर करने के लिए जिला और राज्य स्तर पर एक प्रभावी और स्वतंत्र शिकायत निवारण प्रणाली का प्रावधान किया गया है। इसमें हर जिले के लिए पात्रता लागू करने और शिकायतें की जांच करने और दूर करने के लिए जिला शिकायत निवारण अधिकारी शामिल है। इसके अतिरिक्त पात्रता के उल्लंघन होने संबधी शिकायत प्राप्त होने या स्वयं से जांच करने के लिए राज्य खाद्य आयोग की स्थापना करने का भी प्रावधान है। आयोग डीजीआरओ के आदेशों के विरूद्ध सुनवाई करेगा और उसे दंड लगाने की शक्ति भी दी जाएगी। कोई भी शिकायतकर्ता इनका रूख कर सकता है।
    
 हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और अरूणाचल प्रदेश में लागू हो गई योजना- 
            खाद्य सुरक्षा योजना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर आज चार राज्यों  हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और अरूणाचल प्रदेश में लागू हो गई। यहाँ पर यह योजना मुख्य रूप से अपनी भूमिका का निर्वहन कर रही है ।
निष्कर्ष –
कुपोषण एक गंभीर समस्या है जिसका पूरा देश सामना कर रहा है। लेकिन यह कहना गलत होगा कि योजना  में इसे पूरी तरह से नकारा गया है। इसमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है जो हमारी इस समस्या के समाधान की रणनीति‍ का केंद्रबिंदु होगा।
      महिलाओं और बच्चों को पोषण प्रदान करने पर विधेयक में खास ध्यान दिया गया है। गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं को निर्धारित पोषकता मानकों के तहत पौष्टिक भोजन का अधिकार देने के साथ-साथ कम से कम 1000 रूपए के मातृत्व लाभ भी मिलेंगे।
माह से 6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को घर में भोजन ले जाने या निर्धारित पोषकता मानकों के तहत गर्म पका हुआ भोजन पाने का अधिकार होगा। इसी आयु वर्ग के कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए उच्च पोषकता मानक निर्धारित किए गए हैं। निचली और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को निर्धारित पोषकता मानकों के तहत विद्यालयों में पोषक आहार दिया जाएगा।

 (यह आलेख प्रतियोगिता दर्पण के नवंबर 2014 अंक में प्रकाशित हुआ है। )