शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का एक वैचारिक मंच

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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

कविता पंखुड़ी


पंखुड़ी
पिता हूँ एक पंखुड़ी का
जिसे मेरी प्रिये ने
स्वप्न के स्पंदन में  
चाँदनी के मखमली स्पर्श से
मध्यरात्री में देखा है।
स्मृतियों को सहेजकर
मोती को छुपाकर  
यौवन को निखार कर
ऋतुओं को पार कर
वसंती फुहारकर
उपवन एक खिलाया था।
कल्पना के ध्यान से
शशि के गुमान से
प्रेम के कलश में
मोती एक सजाया था।
रिश्तों के स्नेह से
फाल्गुनी वेदना से
मन के उमंग से
पंखुड़ी को जाया था।
पंखुड़ी आज किलकारी कर
जीवन लुटाती है
प्रेमिका के बगिया में धमा
चौकड़ी मचाती है।
दृश्य यह देख मेरा मन
व्याकुल हो जाता है
साथी को जीवन पूरा
समर्पित हो जाता है।
डॉ. रामशंकर विद्यार्थी
    

  


रविवार, 12 मई 2019

पत्रकारिता की अवधारणा और अर्थ


पत्रकारिता की अवधारणा और अर्थ
मानव जीवन में पत्रकारिता अपने महत्वपूर्ण स्थान आरै उच्च आदर्शों के पालन के लिए सदैव अपनी पहचान बनाती आ रही है। भारत मे पत्रकारिता का इतिहास लगभग दो सौ वर्ष का है। आज पत्रकारिताशब्द हमारे लिए को नया शब्द नहीं है। सुबह होते ही हमें अखबार की आवश्यकता होती है, फिर सारे दिन रेडियो, दूरदर्शन, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समाचार प्राप्त करते रहते हैं।
पत्रकारिता का अर्थ 
अपने रोजमर्रा के जीवन की स्थिति के बारे में थोड़ा गौर कीजिए। दो लोग आसपास रहते हैं और कभी बाजार में, कभी राह चलते और कभी एक-दूसरे के घर पर रोज मिलते हैं। आपस में जब वार्तालाप करते हैं उनका पहला सवाल क्या होता है? उनका पहला सवाल होता है क्या हालचाल है? या कैस े हैं? या क्या समाचार है? रोजमर्रा के ऐसे सहज प्रश्नो में को खास बात नहीं दिखा देती है लेकिन इस पर थोड़ा विचार किया जाए तो पता चलता है कि इस प्रश्न में एक इच्छा या जिज्ञासा दिखा देगी और वह है नया और ताजा समाचार जानने की। वे दोनो पिछले कुछ घंटे या कल रात से आज के बीच मे आए बदलाव या हाल की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने मित्रों, पड़ोसियो, रिश्तेदारो और सहकर्मियो से हमेशा उनकी आसपास की घटनाओ के बारे में जानना चाहते हैं। मनुष्य का सहज प्रवृत्ति है कि वह अपने आसपास की चीजो, घटनाओ और लोगों के बारे में ताजा जानकारी रखना चाहता है। उसमे जिज्ञासा का भाव प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थ मे पत्रकारिता का मूल तत्व है। जिज्ञासा नहीं रहेगी तो समाचार की जरूरत नहीं रहेगी। पत्रकारिता का विकास इसी जिज्ञासा को शांत करने के प्रयास के रूप में हुआ है जो आज भी अपने मूल सिद्धांत के आधार पर काम करती आ रही है।
हिन्दी में भी पत्रकारिता का अर्थ भी लगभग यही है। पत्रसे पत्रकारऔर फिर पत्रकारितासे इसे समझा जा सकता है। वृहत हिन्दी शब्दकोश के अनुसार पत्रका अर्थ चिट्ठी, कागज, वह कागज जिस पर को बात लिखी या छपी हो, वह कागज या धातु की पट्टी जिस पर किसी व्यवहार के विषय में को प्रामाणिक लेख लिखा या खुदवाया गया हो(दानपत्र, ताम्रपत्र), किसी व्यवहार या घटना के विषय का प्रमाणरूप लेख (पट्टा, दस्तावेज), यान, वाहन, समाचार पत्र, अखबार है। पत्रकारका अर्थ समाचार पत्र का संपादक या लेखक। और पत्रकारिताका अर्थ पत्रकार का काम या पेशा, समाचार के संपादन, समाचार इकट्ठे करने आदि का विवेचन करनेवाली विद्या।
पत्रकारिता की परिभाषा 
पत्रकारिता Journalism आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के समय में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - समाचार पत्र- पत्रिकाएँ , रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।
किसी घटना की रिपोर्ट समाचार है जो व्यक्ति, समाज एवं देश दुनिया को प्रभावित करती है। इसके साथ ही इसका उपरोक्त से सीधा संबंध होता है। इस कर्म से जुड़े मर्मज्ञ विभिन्न मनीषियो द्वारा पत्रकारिता को अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किए हैं। पत्रकारिता के स्वरूप को समझने के लिए यहाँ कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओ का उल्लेख किया जा रहा है:-
पाश्चात्य चिन्तन 
1.      न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी : प्रकाशन, सम्पादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है । 
2.      विल्वर श्रम : जनसंचार माध्यम दुनिया का नक्शा बदल सकता है। 
3.      सी.जी. मूलर : सामयिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमे तथ्यो की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं ठीक-ठाक प्रस्तुतीकरण होता है। 
4.      जेम्स मैकडोनल्ड : पत्रकारिता को मैं रणभूमि से ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ। यह को पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची को चीज है। यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया। 
5.      विखेम स्टीड : मैं समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा भी । जब को यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगो का ज्ञान बढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना है, तब तक से पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए, वह पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता । 
इस प्रकार न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी में उस माध्यम को जिसमें समाचार का प्रकाशन, संपादन एवं प्रसारण विषय से संबंधित को पत्रकारिता कहा गया है। विल्वर श्रम का कहना है कि जनसंचार माध्यम उसे कहा जा सकता है जो व्यक्ति से लेकर समूह तक और देश से लेकर विश्व तक को विचार, अर्थ, राजनीति और यहां तक कि संस्ति को भी प्रभावित करने में सक्षम है। सीजी मूलर ने तथ्य एवं उसका मूल्यांकन के प्रस्तुतीकरण और सामयिक ज्ञान से जुड़े व्यापार को पत्रकारिता के दायरे में रखते हैं। जेम्स मैकडोनल्ड के विचार अनुसार पत्रकारिता दर्शन है जिसकी क्षमता युद्ध से भी ताकवर हैं। विखेम स्टीड पत्रकारिता को कला, पेशा और जनसेवा का संगम मानते हैं।
भारतीय चिन्तन 
1.      हिन्दी शब्द सागर : पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है । 
2.      डा. अर्जुन : ज्ञान आरै विचारो को समीक्षात्मक टिप्पणियो के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रो के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारो के कार्यों, कर्तव्यो और लक्ष्यो का विवेचन हातेा है। पत्रकारिता समय के साथ साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है। 
3.      रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर : ज्ञान और विचार शब्दो तथा चित्रो के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकला है । छपने वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारी नहीं है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धन्धो के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुरा, सुन्दर छपा और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए । 
4.      डा.बद्रीनाथ  : पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है । 
5.      डा. शंकरदयाल  : पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारो को केवल घटनाओ का विवरण ही पेशा नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है । 
6.      इन्द्रविद्यावचस्पति : पत्रकारिता पांचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं । 
हिन्दी शब्द सागर में पत्रकार के कार्य एवं उससे जुड़े व्यवसाय को पत्रकारिता कहा गया है। डा. अर्जुन  के अनुसार ज्ञान और विचार को कलात्मक ढंग से लोगो तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है। यह समाज का मार्गदर्शन भी करता है। इससे जुड़े कार्य का तात्विक विवेचन करना ही पत्रकारिता विद्या है।

मंगलवार, 12 मार्च 2019

श्रेष्ठ संचारक के रूप में महात्मा गांधी

 श्रेष्ठ संचारक के रूप में महात्मा गांधी
लेखक- डॉ रामशंकर विद्यार्थी
महात्मा गांधी न केवल एक राजनीतिज्ञ थे बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनका अच्छा खासा हस्तक्षेप था। वे एक सफल नीति निर्धारकअच्छे समाज सुधारककुशल अर्थशास्त्री तो थे हीउनका विशेष गुण थाउनका उत्कृष्ट जन संचारक होना। विख्यात मास कम्युनिकेटर मार्शल मैकलूहान ने कहा कि माध्यम ही संदेश है। इस संदेश को उन्होंने कभी गर्म कहा तो कभी संदेश को ही सर्वोपरि बताया। उनके बाद के संचार विशेषज्ञों ने जन आवश्यकता की इस प्रक्रिया पर काफी काम किया। लेकिन भारत के संदर्भ में एक व्यक्ति ऐसा हुआजो जनमत बनाने और एक विचार को देश में प्रसारित करने में सफल रहा। आजादी का मसीहाअहिंसा का पुजारी जो समाजवाद की अवधारणा नहीं जानता था। ऐसा व्यक्तित्व जिसने किसी सिद्धांत को नहीं बनाया लेकिन दुनिया ने उनके विचारों और मान्यताओं को एक महत्वपूर्ण सूचना माना। दुनिया की तमाम अवधारणाओं में जिनकी कई विषयों पर अवधारणा शिक्षा पद्धति में सम्मिलित हो गई।
वहीं सत्य आधारित दुनिया के लिए जनता को जागृत करने वाले महात्मा गाँधी एक उच्च कोटि के संचालक थे। जनमत बनाने वाले आज के अखबार जिस तरह संपादकीय और विचारों की श्रृंखला पाठकों के सामने पेश कर रहे हैंयह अवधारणा नई नहीं है सिर्फ इनके लक्ष्य बदल गए हैं। ब्रांड एम्बेसेडर और आईकॉन जैसी नई बातें संदेश के संदर्भ में पुरानी हैं। आजादीसत्याग्रह और गाँधी के साथ एक शब्द बड़ी शक्ति बनकर उभरावह था-पत्रकारिता। गाँधीजी ने उस समय सूचनाओं के माध्यम से देश में क्रांतिकारी परिवर्तन लायाजबकि माध्यमों की कमी से जनसंचार जूझ रहा था। उस समय जनसंचार की कोई अधोसंरचना नहीं थी। दुनिया में सूचनाओं का संप्रेषण एक जटिल प्रक्रिया थी। आज सूचनाओं को भेजने के लिए माध्यमों की कोई कमी नहीं है। वैश्वीकरण की अवधारणा और उसकी सर्वमान्यता के कारण दुनिया एक हो गई और इसमें संचार माध्यमों ने बड़ी अहम भूमिका निभाई है। इस दौर में उस समय की कल्पना की जानी चाहिए जबकि संसाधनों का अभाव था और आवश्यकताओं की कोई कमी नहीं थी।
गाँधीजी ने कहा कि मैं पत्रकारिता सिर्फ पत्रकारिता करने के लिए नहीं करतामेरा लक्ष्य है सेवा करना। उन्होंने 2 जुलाई 1925 के 'यंग इंडियामें लिखा- 'मेरा लक्ष्य धन कमाना नहीं है। समाचार-पत्र एक सामाजिक संस्था है। उस दौर में गाँधीजी ने कहा कि मैं पत्रकारिता सिर्फ पत्रकारिता करने के लिए नहीं करतामेरा लक्ष्य है सेवा करना। उन्होंने 2 जुलाई 1925 के 'यंग इंडियामें लिखा- मेरा लक्ष्य धन कमाना नहीं है। समाचार-पत्र एक सामाजिक संस्था है।” पाठकों को शिक्षित करने में ही इसकी सफलता है। मैंने पत्रकारिता को पत्रकारिता के लिए नहींबल्कि अपने जीवन में एक मिशन के तौर पर लिया है। मेरा मिशन उदाहरणों द्वारा जनता को शिक्षित करना है। नीति वाचनसेवा करना और सत्याग्रह के समान कोई अस्त्र नहीं हैजो सीधे ही अहिंसा तथा सत्य की उपसिद्धि है।
सूचना जगत स्टिंग ऑपरेशन के साथ खोजी पत्रकारिता के साथ हाथ मिलाकर चल निकला हैजहाँ खबर में सच के साथ मिलावट की कोई कमी नहीं है। सच जो कि किसी रंगीन पुड़िया में बँधा हुआ है उसमें आदमी के मनोभावों के साथ खेलने की योग्यता के अलावा और कोई गुण नहीं है। सत्य के साथ त्रुटियों की भरमार है। आज संपादकीय जनमत निर्धारण और दिशा-निर्देशन जैसा कार्य नहीं कर रहे। जिनकी अपेक्षा की जाती है वे बाजार और सत्ता के सहयोगी हो गए हैं। वहीं गाँधीजी ने संपादकीय के साथ एक ऐसी नींव रखीजो उन्हें दुनिया का अच्छा संपादक साबित करता है। वे एक ऐसे पत्रकार थेजिनकी ग्रामीण और शहरी जनता पर एक साथ पकड़ थी। वे एक अच्छे सत्याग्रही होने के साथ एक उत्तम संचारक थे।
उनका कहना था कि पत्रकारिता लोगों की भावनाओं को समझने और उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति देना है। अभिव्यक्ति देने में सफल आदमी ही सफल संचारक हो सकता है। इस अवधारणा को आज संचार के सभी माध्यम और प्रकार भलीभाँति अपना रहे हैं। लेकिन आज प्रेस की आजादी और उसके आचरण पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। उससे किस प्रकार से सही सूचना की अपेक्षा की जा सकती हैइस पर गाँधीजी ने प्रेस को गैरजिम्मेदार और अशुद्ध माना कि उसमें ऐसे व्यक्ति की गलत तस्वीर पेश की जा रही है। सही और न्याय देखने वाले को सिर्फ गलतराह दिखाई जा रही है। आधुनिकता की चपेट में पत्रकारिता एक ऐसे मोड़ पर है जिसमें सही-गलत का भेद समाप्त हो गया है। 

होलिका प्रश्न


होलिका प्रश्न

कई दिनों बाद आज फिर होलिका जलने बैठ गयी,
गोद में लेकर प्रहलाद को अभिमान से ऐंठ गयी।

धरा कुपित होकर बोली क्यों ऐंठन में जलना स्वीकार किया,
पाप कर्म का साथ देकर क्यों नारी को शर्मसार किया।

छोटे से बालक को लेकर जलाने में क्यों तेरी छाती न काँप गई,
लाड़ प्यार के समय क्यों उसे मारने की चिंता व्याप गई।

होलिका बोली
नारी हूँ, नारी इच्छा सम्मान है,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , फिर क्यों मेरा अपमान है।

एक भातृ प्रतिज्ञा के चक्कर में मैंने अपना सर्वस्व लुटा डाला,
मैंने उसके अभिमानों सहित खुद खुद आज जला डाला।

लेकिन पुरुषों को देख जरा, क्या अपना दोहरा चरित्र मिटाया है,
रंगों और सम्बन्धों के बदले क्या उसने नारी का हवस नहीं बनाया है।   
करके सदा व्यंग्य मुझपर, क्यों लांछन सदा लगाया है,  
खुद की कुंठा को चिपकाकर क्यों कपड़ों पर दोष मढ़ाया है।

खुदकों संसार खेवइया बन, क्यों मुझको पतवार बनाया है,
छह माह की बच्ची से वृदधा तक को शिकार बनाया है।  

मुझे जलाने वालों इस शैतान को कब जलावोगे,
जलाकर इसकी राख का मुझ पर गुलाल उड़ावोगे। 
डॉ रामशंकर विद्यार्थी

सोमवार, 4 मार्च 2019

नहीं पढ़ना है...


बेटी के नाम चिट्ठी
नहीं पढ़ना है...
सुबह उठकर जब भी
मैं तुम्हें देखता हूँ
तुम मेरी परी,
मेरी पहचान लगती हो
तुम्हारी तोतले शब्द
अनकहे इतिहास गढ़ते हैं।
तुम्हारी शिक्षा से जुड़े मेरे अरमां  
सामाजिक भय को पनाह देती है।
तुम जब भी स्कूल जाना
तुम पढ़कर आना, ,
संस्कार और सदाचार को
बलिदानों के उपहार को।
तुम पढ़ना इतिहास को
मगर अपने इतिहास को भी जानना,
तुम पढ़ना भूगोल को
लेकिन यथार्थ के भूगोल को समझने के लिए।
तुम संस्कृत को पढ़ना
पर अपनी संस्कृति सहेजने के लिए,
अर्थशास्त्र भी तुम्हें पढ़ना है
पर अपने अर्थशास्त्र को समझकर ।
तुम्हें सब कुछ पढ़ना है
हुनर पाने के लिए,
पर नहीं पढ़ना है
१०० अंक  लाने के लिए।

डॉ रामशंकर विद्यार्थी

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

वैचारिक मंच ‘सोशल मीडिया’: चुनौतियाँ व वस्तुस्थिति


वैचारिक मंच सोशल मीडिया: चुनौतियाँ व वस्तुस्थिति

डॉ रामशंकर 'विद्यार्थी'
Image may contain: DrRamshankar Vidyarthi, smiling, beard, glasses and close-upसोशल मीडिया स्रोत और रिसीवर दोनों है। इसमें वेरीफिकेशन की गुंजाइश नहीं है। इसमें तकनीकी एवं काल खंड का दबाव काम कर रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए ठोस पहल की जरूरत है। सोशल नेटवर्किंग सेवा एक ऑनलाइन सेवा, प्लेटफॉर्म या साइट होती है, जो लोगों के बीच सोशल नेटवर्किंग अथवा सामाजिक संबंधों को बनाने अथवा उनको परिलक्षित करने पर केन्द्रित होती है। उदाहरण के लिए ऐसे व्यक्ति जिनकी रुचियां अथवा गतिविधियां समान होती हैं।एक सोशल नेटवर्किंग सेवा में अनिवार्य रूप से प्रत्येक प्रयोगकर्ता का निरूपण, उसके सामाजिक संपर्क तथा कई अन्य अतिरिक्त सेवायें शामिल रहती हैं और प्रयोगकर्ताओं को इंटरनेट का प्रयोग करते है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स किसी प्रयोगकर्ता को अपने व्यक्तिगत नेटवर्किंग में विचारों, गतिविधियों, घटनाओं, और उनके व्यक्तिगत रुचियों को बांटने की सुविधा देती हैं।
सोशल मीडिया किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसका नाम दिमाग में आते ही सबसे पहले फेसबुक, टिवटर, लिंकइन, यू-टूब, ब्लाग हमारे दिमाग में आता है। आज के वैश्विक परिवेश में सोशल मीडिया की लोकप्रियता और उपयोगिता का अंदाजा इस रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। अमरिका के यूनाईटेड साईबर स्कूल के मुताबिक रेडियो को 50 मिलियन लोगों तक पहुँचने में 38 साल, टीबी को 13 साल, इंटरनेट को 4 साल और फेसबुक को 100 मिलियन लोगों तक पहुँचने में मात्र नौ महीने का समय लगा। एक और ध्यान देने वाली बात है कि यह केवल युवाओं की पंसद नहीं बल्कि 60-80 साल के बुजुर्ग भी इस पर सक्रिय रहतें है।
सोशल मीडिया ने आम लोगों को एक ऐसा मंच दिया है, जिससे वो अपनी बातें बिना किसी डर के दुनिया के किसी भी व्यक्ति के पास पलक झपकते ही पहुंचा सकते है। पंसद, नापंसद, अभिवयक्ति की आजादी जैसे शब्दों को सही साबित करने में इस मंच का योगदान सराहनीय रहा है। आज ज्यादातर युवा जानकारी के लिए इस पर निर्भर रहतें है। यूके में 75 प्रतिशत लोग अपनी जानकारी बढाने के लिए ब्लाॅग का इस्तेमाल करते हैं। एक तरह से सूचनाओं, जानकारियों का विकेन्द्रीकरण हुआ है, अब लोग किसी सूचना के लिए एक व्यक्ति या संस्था पर आश्रित नहीं हैं। बस एक क्लिक करने की जरुरत है, सूचनाओं का भंडार आपके सामने है। सही मायने में सोशल मीडिया गाँव के चैपाल की तरह है, जहां इसका हर एक सदस्य अपने साथियों के साथ तुरंत और लगातार सूचनाओं को साझा और उसपर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है। इस तरह किसी भी सूचना या विचार को एक साथ कई व्यक्ति तक पहुँचने में कुछ सेकेंड का ही समय लगता है। यही इसकी सबसे बडी खूबी है, वहीं ट्रेडिशनल मीडिया में प्रतिक्रिया व्यक्त करने का कोई माध्यम हीं नहीं है।
सोशल मीडिया समाज की बनी बनायी स्वनिर्मित परिपाटियों से कहीं आगे निकलकर नित नये संवाद रचने  का सामथ्र्य है। यहाँ  कोई संपादक नहीं है। यहाँ कोई बंधे हुये नियम भी नहीं हैं।  यह नये पत्रकारों, लेखकों, कवियों, टिप्पणीकारों और कई बार बहुत से खाली लोगों का एक ऐसा मंच है, जिसमें अभिव्यक्ति की अभूतपूर्व आजादी और क्षमता है। तेजी से बदलती दुनिया, तेज होते शहरीकरण और जड़ों से उखड़ते लोगों व टूटते सामाजिक ताने-बाने ने सोशल मीडिया को तेजी से लोकप्रिय बनाया है। सुविख्यात ब्रिटिश जस्टिस लॉर्ड ब्रियन लेविसन ने सामाजिक अभिव्यक्ति के प्रश्न पर अपनी प्रस्थापना में कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का प्रबल बुनियादी पहलू है, किन्तु किसी तौर पर सभ्य समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वस्तुतः उछृलंख अमर्यादित कदापि नहीं हो सकती।
सीरिया में महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत दाना बकदोनिस ने 21 अक्टूबर को फेसबुक पेज के लिए और अरब दुनिया में उत्पीड़ित महिलाओं और लड़कियों के लिए कुछ करने का सोचा और अपनी फोटो पोस्ट की। दाना फेसबुक पर द अपराइजिंग ऑफ वीमन इन द अरब वर्ल्डको बराबर फॉलो करती रही हैं। इस फेसबुक पेज के लगभग 70 हजार सदस्य हैं। दरअसल ये अरब दुनिया में महिला अधिकारों और लैंगिक भूमिकाओं पर बहस के लिए एक अच्छा खासा मंच बन गया है। महिला, पुरूष और गैर अरब पृष्ठभूमि वाले लोग भी इसकी तस्वीरों पर कमेंट कर सकते हैं।
इसके साथ उनके हाथ में एक नोट भी है, जिस पर लिखा है जब मैंने अपना हिजाब उतारा तो सबसे पहली बात जो मैंने महसूस की, वो ये कि मैं अरब दुनिया में महिलाओं की क्रांति के साथ हूं। बीस साल तक मुझे अपने बालों और शरीर पर हवा को महसूस नहीं करने दिया गया।इस तस्वीर पर बहुत विवाद हुआ। इसे 1600 लाइक मिले, 600 लोगों ने इसे शेयर और 250 से ज्यादा कमेंट आए। दाना को बहुत समर्थन मिला। जहां फेसबुक पर उन्हें बहुत से दोस्तों ने अनफ्रेंड कर दिया वहीं इससे ज्यादा लोगों ने उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी। इसके जवाब में कुछ दूसरी महिलाओं ने भी अपने इसी तरह के फोटो लगाए।
इस फेसबुक पन्ने को चलाने वालों ने जोर शोर से दावा किया कि फेसबुक के एडमिनिस्ट्रेटर्स ने 25 अक्टूबर को दाना का फोटो हटा दिया। साथ ही दाना और द अपराइजिंग ऑफ वीमन इन द अरब वर्ल्डके अन्य एडमिनिस्ट्रेटर्स को ब्लॉक कर दिया गया है। जब फेसबुक से इस बारे में टिप्पणी मांगी गई तो उन्होंने कहा कि इस फोटो से फेसबुक के नियमों का कोई उल्लंघन नहीं होता है, लेकिन ये माना कि इस मामले में उनकी तरफ से कई गलतियां हुईं। यह एक ऐसी घटना है जो सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतान्त्रिक दायरे की सीमा रेखा को बताती है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते प्रभाव को मार्च 2011 में मिस्र में हुये सत्ता परिवर्तन को नई दिशा दी है। खासकर फेसबुक के जरिये लगभग पचास लाख लोगों ने होस्नी मुबारक के खिलाफ चल रहे जनसंघर्ष को साथ दिया। बाद सत्ता हथियाने के बाद इसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स क्रांति का नाम दिया। मिस्र के सत्ता परिवर्तन और सोशल नेटवर्किंग को घाल-मेल कर पेश किया गया, जैसे इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिये ही लोग सत्ता परिवतन में एकजुट हो पाये हैं। ठीक उसी प्रकार भारत में भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स कि खबरें देखने व सुनने को मिली । जन लोक पाल बिल के लिए अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों का आंदोलन सोशल मीडिया में खूब पढ़ा गया।
अगस्त, 2011 में लंदन में हुये दंगों की जांच कर रही कमेटी ने दंगों को भड़काने में मीडिया की भूमिका को कटघरे में खड़ा किया है। समिति ने रिपोर्ट में लिखा है कि मीडिया ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चल रही अफवाहों को खबर बनाया है, जिसने दंगों को भड़काने में मदद की है।ज्यादातर लोग इंटरनेट को ज्यादा लोकतान्त्रिक दुनिया के तौर पर देखते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि इंटरनेट की दुनिया में सबसे गतिशील सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोकतान्त्रिक देशों की तरह आर्थिक स्तर पर लोकतान्त्रिक होने की बुनियाद पर खरी नहीं उतरती है ।   
अध्ययन में उत्तरदाता से प्राप्त आकड़ों के विश्लेषण से तथा अवलोकन द्वारा प्राप्त आकड़ों से यह निष्कर्ष निकलता है कि  सोशल मीडिया में लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है। सोशल मीडिया में सोशल नेटवर्किंग साइट्स ठीक वैसे ही है जैसे विज्ञापन में दिखने वाली वस्तु जरूरी नहीं की हकीकत में भी वह वैसी ही हो सबसे बड़ा भ्रम अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर है। यहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर दो तरह सवाल उभरते हैं। पहल की कोई आज़ादी है तो हकीकत में कितनी आज़ादी है और इस आज़ादी पर कैसे- कैसे अवरोध है। दूसरा यह कि यहाँ पर मिलने वाली आज़ादी के मायने क्या हैं ,या समाज के साथ उनका क्या रिश्ता बनता है। जब अवरोधों कि बात करते है तो सरकार के कानून कायदे या नियम ही नहीं बल्कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स के संचालकों कि मर्जी भी आड़े आती है। सोशल मीडिया के जरिये अलग-अलग किस्म के कई नए रोजगारों का सृजन हो रहा है।
मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट एच स्मिथ स्कूल ऑफ बिजनेस की ताजा स्टडी के मुताबिक फेसबुक के चलते बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है। इस अध्ययन के मुताबिक सिर्फ फेसबुक से जुड़े विभिन्न एप्लिकेशंस के विस्तार के जरिये इस साल अमेरिका में दो लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को करीब 15.71 अरब डॉलर यानी 75 हजार करोड़ रुपये का योगदान मिला। वायर्ड पत्रिका के मुताबिक ब्रिटेन का लगभग आधा कारोबार अब किसी न किसी स्तर पर सोशल मीडिया के मंचों का लाभ ले रहा है।यही वजह है कि सोशल मीडिया से जुड़े रोजगार बढ़ रहे हैं। भारत में भी हाल अलग नहीं है। खास बात यह कि इस क्षेत्र में उन युवाओं के लिए ज्यादा मौके हैं जिनके पास खास अनुभव नहीं है। मुंबई-चेन्नई और दिल्ली के अखबारों में हाल में ऑनलाइन सोशल मीडिया मैनेजमेंट नाम से निकले कई भर्ती विज्ञापनों में अनुभव कैटेगरी में लिखा गया शून्य, लेकिन सवाल सोशल मीडिया से जुड़े रोजगारों की मांग का नहीं बल्कि उनकी पूर्ति का है। इसमें भी बड़ा सवाल महानगरों से इतर युवाओं के इस नए किस्म के रोजगार में संभावना का है।
सभ्य समाज सकारात्मक और द्वंदात्मक तौर तरीकों से स्वयं ही सुनिश्चित किया करता है कि अभिव्यक्ति कि आखिरकार कौन सी मर्यादाएं कायम रहेंगी। विश्व पटल सोशल मीडिया के आने के तत्पश्चात अभिव्यक्ति की आज़ादी का ताकतवर पहलू सामने आया है। सोशल मीडिया ने शक्तिशाली रूप में स्थापित होकर संस्थागत संगठित मीडिया के एकाधिकार से विचारों के प्रचार प्रसार को बाहर कर दिया है। सोशल मीडिया ने अरब देशों में लोकतान्त्रिक इंकलाब को कामयाब अंजाम तक पहुंचाने में ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह किया है। सोशल मीडिया के द्वारा दिल्ली के जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन में भ्रष्टाचार की दलदल में फंसे शासक वर्ग के छक्के छुड़ा दिये।
सोशल मीडिया की अपार शक्ति के खतरनाक दुरुपयोग की संभावना भी किसी तौर पर उसी तरह विद्यमान है, जिस तरह प्रचार प्रसार माध्यम तहत विद्यामान रही, राष्ट्र और समाज में विनाशकारी वैमनस्य फैलाने और उसे तीव्रतर तौर से विषमय बनाने में भी सोशल मीडिया कारगर साबित हो रही है। अतः भारतीय समाज को सुनिश्चित करना है कि सोशल मीडिया द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आखिर क्या हद तय हो, ताकि व्यक्ति बेवजह एसका इस्तेमाल न कर सके। सोशल मीडिया पर तमाम विनाशकारी सांप्रदायिक, वैमनस्यपूर्ण जातिवाद तथा अश्लील सामग्री डाली जाती है। पृथकवाद से भारत को पहले बहुत हानि पहुंची है, अतः अध्ययन से पता चलता है कि इन तमाम देशद्रोही तत्वों पर लगाम कसना आवश्यक है। सोशल मीडिया को अन्य प्रचार प्रसार के माध्यम के तर्ज पर ही लिया जाना चाहिए इसके साथ कोई अलग वैधानिक व्यवहार की दरकार नहीं होनी चाहिए।