अभिव्यक्ति
की स्वछंदता और सामाजिक बदलाव के मायने
सीरिया
में महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत दाना बकदोनिस ने 21 अक्टूबर को फेसबुक पेज के लिए और अरब दुनिया में उत्पीड़ित महिलाओं और
लड़कियों के लिए कुछ करने का सोचा और अपनी फोटो पोस्ट की। दाना फेसबुक
पर ‘द अपराइजिंग ऑफ वीमन इन द अरब वर्ल्ड’ को बराबर फॉलो करती रही हैं । इस फेसबुक पेज के लगभग 70 हजार सदस्य हैं । दरअसल ये अरब दुनिया में महिला अधिकारों और लैंगिक
भूमिकाओं पर बहस के लिए एक अच्छा खासा मंच बन गया है । महिला, पुरूष और गैर अरब पृष्ठभूमि वाले लोग भी इसकी तस्वीरों पर कमेंट कर सकते
हैं।
इस
तस्वीर में दाना कैमरे की ओर देख रही हैं और उनके हाथ में एक पहचान पत्र है, जिस पर उनका हिजाब वाला फोटो लगा है। इसके साथ उनके हाथ में एक नोट भी है,
जिस पर लिखा है ‘जब मैंने अपना हिजाब उतारा तो
सबसे पहली बात जो मैंने महसूस की,वो ये कि मैं अरब दुनिया में
महिलाओं की क्रांति के साथ हूं। बीस साल
तक मुझे अपने बालों और शरीर पर हवा को महसूस नहीं करने दिया गया।’ इस तस्वीर पर
बहुत विवाद हुआ। इसे 1600 लाइक मिले, 600 लोगों ने इसे शेयर और 250 से ज्यादा कमेंट आए। दाना को बहुत समर्थन मिला । जहां फेसबुक पर उन्हें
बहुत से दोस्तों ने अनफ्रेंड कर दिया वहीं इससे ज्यादा लोगों ने उन्हें फ्रेंड
रिक्वेस्ट भेजी । इसके जवाब में कुछ दूसरी
महिलाओं ने भी अपने इसी तरह के फोटो लगाए।
इस फेसबुक पन्ने को चलाने वालों ने जोर शोर से दावा किया कि
फेसबुक के एडमिनिस्ट्रेटर्स ने 25 अक्टूबर को दाना का फोटो हटा दिया । साथ
ही दाना और ‘द अपराइजिंग ऑफ वीमन इन द अरब वर्ल्ड’ के अन्य एडमिनिस्ट्रेटर्स को ब्लॉक कर दिया गया है। जब फेसबुक से इस बारे
में टिप्पणी मांगी गई तो उन्होंने कहा कि इस फोटो से फेसबुक के नियमों का कोई
उल्लंघन नहीं होता है, लेकिन ये माना कि इस मामले में उनकी
तरफ से कई गलतियां हुईं। यह एक ऐसी घटना है जो सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी
और लोकतान्त्रिक डायरे की सीमा रेखा को बताती है।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते प्रभाव को मार्च 2011 में मिस्र में हुये
सत्ता परिवर्तन को नई दिशा दी है। खासकर
फेसबुक के जरिये लगभग पचास लाख लोगों ने होस्नी मुबारक के खिलाफ चल रहे जनसंघर्ष
को साथ दिया । बाद सत्ता हथियाने के बाद इसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स क्रांति का
नाम दिया । मिस्र के सत्ता परिवर्तन और सोशल नेटवर्किंग को घाल- मेल कर पेश किया
गया,जैसे इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिये ही लोग सत्ता
परिवतन में एकजुट हो पाये हैं। ठीक उसी प्रकार भारत में भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स
कि खबरें देखने व सुनने को मिली । जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना हज़ारे, अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों का आंदोलन सोशल मीडिया में खूब पढ़ा गया
।
‘अगस्त,2011 में लंदन में हुये दंगों की जांच कर रही
कमेटी ने दंगों को भड़काने में मीडिया की भूमिका को कटघरे में खड़ा किया है । समिति ने रिपोर्ट में लिखा है कि मीडिया ने सोशल
नेटवर्किंग साइट्स पर चल रही अफवाहों को खबर बनाया है,जिसने
दंगों को भड़काने में मदद की है।’ ज्यादातर लोग
इंटरनेट को ज्यादा लोकतान्त्रिक दुनिया के तौर पर देखते हैं। लेकिन सच्चाई ये है
कि इंटरनेट की दुनिया में सबसे गतिशील सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोकतान्त्रिक देशों
की तरह आर्थिक स्तर पर लोकतान्त्रिक होने की बुनियाद पर खरी नहीं उतरती है ।
सोशल मीडिया में
सोशल नेटवर्किंग साइट्स ठीक वैसे ही है जैसे विज्ञापन में दिखने वाली वस्तु जरूरी
नहीं की हकीकत में भी वह वैसी ही हो सबसे
बड़ा भ्रम अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर है। यहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर दो
तरह सवाल उभरते हैं। पहल की कोई आज़ादी है तो हकीकत में कितनी आज़ादी है और इस आज़ादी
पर कैसे- कैसे अवरोध है । दूसरा यह कि यहाँ पर मिलने वाली आज़ादी के मायने क्या हैं
,या समाज के साथ उनका क्या रिश्ता बनता है।
जब अवरोधों कि बात करते है तो सरकार के कानून कायदे या नियम ही नहीं बल्कि सोशल
नेटवर्किंग साइट्स के संचालकों कि मर्जी भी आड़े आती है । सोशल मीडिया के जरिये
अलग-अलग किस्म के कई नए रोजगारों का सृजन हो रहा है।
‘मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट
एच स्मिथ स्कूल ऑफ बिजनेस की ताजा स्टडी के मुताबिक फेसबुक के चलते बड़ी संख्या
में लोगों को रोजगार मिला है। इस अध्ययन के मुताबिक सिर्फ फेसबुक से जुड़े विभिन्न
एप्लिकेशंस के विस्तार के जरिये इस साल अमेरिका में दो लाख से ज्यादा लोगों को
रोजगार मिला है। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को करीब 15.71 अरब
डॉलर यानी 75 हजार करोड़ रुपये का योगदान मिला। वायर्ड
पत्रिका के मुताबिक ब्रिटेन का लगभग आधा कारोबार अब किसी न किसी स्तर पर सोशल
मीडिया के मंचों का लाभ ले रहा है।’ यही वजह है कि
सोशल मीडिया से जुड़े रोजगार बढ़ रहे हैं। भारत में भी हाल अलग नहीं है। खास बात
यह कि इस क्षेत्र में उन युवाओं के लिए ज्यादा मौके हैं जिनके पास खास अनुभव नहीं
है। मुंबई-चेन्नई और दिल्ली के अखबारों में हाल में ऑनलाइन सोशल मीडिया मैनेजमेंट
नाम से निकले कई भर्ती विज्ञापनों में अनुभव कैटेगरी में लिखा गया शून्य, लेकिन सवाल सोशल मीडिया से जुड़े रोजगारों की मांग का नहीं बल्कि उनकी
पूर्ति का है। इसमें भी बड़ा सवाल महानगरों से इतर युवाओं के इस नए किस्म के
रोजगार में संभावना का है।
लेखक-परिचय
रामशंकर
जन्म- 12 जुलाई, 1986
शैक्षणिक योग्यता- स्नातक (विज्ञान एवं गणित), स्नातकोत्तर (जनसंचार एवं पत्रकारिता), विद्यानिधि (एम.फिल.) पत्रकारिता एवं जनसंचार, जनसंपर्क एवं विज्ञापन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, विद्यावारिधि (पीएच.डी.) जनसंचार (अध्ययनरत), जनसंचार एवं पत्रकारिता विषय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (जून, 2014) उत्तीर्ण।
संप्रति- संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में ‘वैकल्पिक मीडिया और भारतीय व्यवस्था परिवर्तन’ विषय पर शोधरत एवं ICSSR डॉक्टोरल फ़ेलो।
प्रकाशित रचनाएँ- विभिन्न चर्चित शोध जर्नल/पत्रिकाओं (कम्यूनिकेशन टुडे, अंतिम जन, प्रौढ़ शिक्षा, शोध नवनीत, मालती, शोध अनुसंधान समाचार आदि) एवं विभिन्न समाचार पोर्टल्स में शोध-पत्र/आलेख एवं समसामयिक समाचार आलेख प्रकाशित और दो पुस्तकों में शोध-पत्र तथा एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला एवं सेमिनारों में प्रपत्र-वाचन एवं सहभागिता ।
संपर्क- 36, गोरख पांडेय छात्रावास, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
स्थायी पता- भिटरिया, राम सनेही घाट, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश-225409
संपर्क-सूत्र- 9890631370
Email- ramshankarbarabanki@gmail.com
लेखकीय वक्तव्य- स्थापित सामाजिक व्यवस्था के विकल्प का अध्ययन एवं लेखन।