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रविवार, 9 दिसंबर 2018

शोध प्रारूप/डिजाइन/ प्ररचना का स्वरूप...


शोध प्रारूप/डिजाइन-1
वैकल्पिक मीडिया और भारतीय व्यवस्था परिवर्तन
(उत्तर प्रदेश के सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था के विशेष संदर्भ में)
 

भूमिका -
            सम्प्रेषण हर प्राणी की बुनियादी व स्वाभाविक प्रकृति एवं जरूरत है। इसके जरिए हम जानकारियों, भावनाओं एवं अभिव्यक्तियों का आदान-प्रदान करते हैं। सम्प्रेषण में ध्वनियों, भाषा एवं चित्रों का काफी महत्व होता है। सम्प्रेषण मानव उत्पत्ति से चली आ रही एक अनवरत प्रक्रिया है, इसका स्वरूप व माध्यम जो भी हो। जन्म लेते ही बच्चा रोकर अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। संचार शास्त्री डेनिस मैकवेल मानव सम्प्रेषण को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अर्थ पूर्ण संदेशों के आदान-प्रदान के रूप में देखते हैं। इनका विचार है कि संचार ही मानव समाज की संचालन प्रक्रिया को सफल बनाता है। इसी मानवीय जिज्ञासु प्रवृत्ति ने पत्रकारिता के विभिन्न आयामों का उद्भव किया है।
            पत्रकारिता में समय-समय पर परिवर्तनों का दौर आता रहा है। यही एक मात्र पेशा है जिसमें शामिल लोग अपने कार्य क्षेत्र को ही प्रयोग शाला मानकर नये-नये प्रयोग करते रहे है, और नई-नई प्रवृत्तियों को जन्म देते रहे है। बीसवीं संदी के अंतिम दशक में जब सूचना प्रौद्योगिकी अपने विकास के चरम पर पहुँची तो ऐसे ही प्रयोगों की संख्या एकाएक बढ़ गयी। नतीजा यह हुआ कि इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में ही एक साथ कई-कई नई प्रवृत्तियों ने जन्म ले लिया और अत्यंत प्रभावी ढंग से न केवल पत्रकारिता का रंग-ढंग बदला बल्कि सामाजिक व्यवस्था एवं लोगों के चाल-चलन में व्यापक बदलाव हुआ। इस दौर में पत्रकारिता के दोनों महत्वपूर्ण स्वरुप प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक अर्थात मुख्य धारा की मीडिया अपने- अपने खेमे में भी डरे सहमे नज़र आया। वर्तमान समय में प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया को ओल्ड मीडिया एवं नागरिक पत्रकारिता,सोशल मीडिया,इन्टरनेट आधारित मीडिया,वेब पोर्टल आदि पत्रकारिता के वैकल्पिक स्वरुप को न्यू मीडिया के नाम से जाना जाता है। मोबाइल,डिजीटल कैमरा,लैपटाप व इन्टरनेट इत्यादि का आज सूचना संकलन व सम्प्रेषण में अधिकाधिक योगदान रहा है । आज वैकल्पिक मीडिया के द्वारा लोग अपनी अभिव्यक्ति को अभिव्यक्त कर रहें हैं ।
प्रस्तावना - भारतीय पत्रकारिता के लगभग 232 साल के इतिहास को देंखे तो एक तरह से यह ठीक ही लगता है कि जीवंत समाज के अभिन्न अंग का तीव्र वैचारिकता के प्रतिफल का नाम ही पत्रकारिता है। प्रसिद्ध संचार विद् मार्शल मैक्लुहान का कथन है किसंचार क्रांति के दौर में जब सम्पूर्ण विश्व एक गांव में तब्दील हो गया है । संचार के क्षेत्र में हर दिन कोई न कोई उपलब्धि हासिल की जाती है ।  ऐसे में मीडिया ने भी अपनी रंगत बदली है।आज पत्रकारिता के आयामों में बदलाव तो हुआ ही साथ ही उसके शस्त्र और औजारों में भी परिवर्तन हुआ। दुनिया भर में इक्कीसवीं सदी में एक खास मीडिया का प्रादुर्भाव हुआ जिसे वैकल्पिक मीडिया के नाम से जाना जाता है।
            वैकल्पिक मीडिया से आशय ऐसी मीडिया (समाचार पत्र-पत्रिका, रेडियो, टीवी सिनेमा व इण्टरनेट आदि) से है,जो मुख्य धारा की मीडिया के प्रतिपक्ष में वैकल्पिक जानकारी प्रदान करती है। वैकल्पिक मीडिया को मुख्य धारा मीडिया से हटकर देखा जाता है। मुख्यधारा के मीडिया वाणिज्यिक, सार्वजनिक रूप से समर्थित या सरकार के स्वामित्व वाली हैं । वैकल्पिक मीडिया के अंतर्गत उन खबरों को प्रसारित किया जाता है,जिन्हें मुख्य धारा मीडिया के मीडिया में स्थान नहीं दिया जाता और वे जन सरोकारों से पूर्णतः जुड़ी होती हैं । प्राचीन काल में डुग्गी व मुनादी के माध्यम से खबरों का प्रसारण किया जाता था। औद्योगिक व विज्ञान के विकास ने संचार का  चेहरा बदल दिया है, जिसमें मुनादी, डुग्गी आज की शैली में पम्फ्लेट, पोस्टर व दीवार लेखन (भित्ति चित्र) में बदल गये है। आज ज्यों ही हम मीडिया की बात करते है ,हमारे जेहन में त्यों ही चौबीस घंटे वाचाल(पोपट) की तरह बोलने वाले तमाम समाचार चैनल वव्यवसाय निहितार्थ अखबार घूम जाते है,जो दिन भर एक्सक्लूसिव के नाम पर अपना राग अलापते रहते हैं । इस भागमभाग की स्थिति ने हमें तमाम समाचारों से वंचित कर दिया है । यही आज मुख्य धारा का मीडिया कहलाता है। मुख्यधारा मीडिया आज सारे समाज पर छाया हुआ है, किन्तु नीतिगत मसलों पर इसमें गंभीर सामग्री का एक सिरे से अभाव है।  नीतिगत मसलों को मेन स्ट्रीम मीडिया सतही  रूप पेश करता है, जबकि गैर-मुनाफे से चलने वाले मीडिया संगठनों के प्रकाशनों नीतिगत मसलों पर गंभीर विश्लेषण मिलता है। 
स्वतंत्रता पूर्व वैकल्पिक मीडिया के रूप में साहित्यिक पत्रिका की गणना की जाती  थी किन्तु आज इस दायरे में अन्य मीडिया भी आ गए है ।  असल  में विकल्प का अभिप्राय तुलनात्मक है ।  मीडिया में भी प्रवत्ति के विकल्प का निर्माण कर सकते है ।  इसमें लेखक ने ने लिखा है कि समस्या विकल्प के निर्माण की नहीं है बल्कि समस्या है कि क्या वैकल्पिक मीडिया अपने पैरों पर खड़ा हो पायेगा ? वैकल्पिक मीडिया का वही रूप प्रभावी रहा जिसने जिसने असरदार तरीके से अपने को आत्मनिर्भर बनाया है अर्थात वैकल्पिक मीडिया के रूप का गठन प्रत्येक मीडिया में संभव है ।  प्रत्येक मीडिया अपने आप में विकल्प को समेटे है ।  कहने का तात्पर्य है कि वैकल्पिक मीडिया की धुरी है,वैकल्पिक नजरिया,मीडिया इसमें  गौण है । प्रत्येक दौर में वैकल्पिक मीडिया अपने तरीके से जन्म लेता आ रहा है।
वैकल्पिक मीडिया को व्यापक रूप में फैलाने में मुख्यधारा के मीडिया की अहम् भूमिका है। जब मुख्य धारा की मीडिया में जन सामान्य की बात को भुलाया जाने लगा और मसालेदार, औचित्यविहीन ख़बरें परोसी जाने लगी और साथ ही साथ जनता की अभिव्यक्ति को जन माध्यम में रोका जाने लगा। अखबारी खबरों पर संदेह किया जाने लगा, तब शनैः शनैः वैकल्पिक मीडिया का उत्थान इस सूचना युग में हुआ। यह वह संचार माध्यम का स्वरूप हो गया जो बार-बार  मुख्य धारा की मीडिया के साथ खड़ा होने की कोशिश करता है।
            वैकल्पिक मीडिया हमारे विकास के साथ बढ़ा है। स्वतंत्रता के समय लोग पर्चे छापकर अपने विरोध केा दर्ज करते थे। अपनी बात लोगों तक पहुँचाते थे। तब भी अखबार थे । लेकिन उसमें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नहीं लिखा जा सकता था। आज वहीं मुख्य धारा के मीडिया से कट जाने वाली खबरें  वैकल्पिक मीडिया के द्वारा अपनी अलग पहचान बना रही है। मुख्य धारा के टीवी चैनल और अखबार जैसे संचार माध्यमों की जगह अब सच्चे जन पक्ष का निर्माण करने में लघु पत्रिकाओं और सामुदायिक रेडियो बड़ी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। किसी विशेष व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर अनेक पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशित की जा रही है, जो एक बेहतर जनपक्ष के वैकल्पिक मीडिया के रूप में उभर रही है।
            इंटरनेट के माध्यम से वेबसाइट,फेसबुक,ट्वीटर और सोशल नेटवर्किंग साइट्स तेजी से विकसित हो रही है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो बड़ी तेजी से पुष्पित एवं पल्लवित हो रहा है। किसी विशेष समुदाय में विभिन्न प्रकार से लोगों को  वैकल्पिक संचार माध्यमों द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। अफ्रीका, मिश्र व मध्य पूर्व देशों में तानाशाही और स्वयं भू व्यवस्थाओं के खिलाफ हुए विद्रोह, वैकल्पिक मीडिया की ही देन है। तमिल गीत कोलावरी डी की दुनिया भर में शोहरत के लिए भी वैकल्पिक मीडिया ही श्रेय का हकदार है। पंचायतों में जहाँ पहले महिलाएं प्रतिनिधि पर या पति आश्रित हुआ करती थीं ।  वहीं आज महिलाएं पंचायतों में साहस पूर्वक राजनीति कर रहीं हैं । बैनर, पोस्टर, होर्डिंग, दीवारों पर लिखे वक्तव्य, कैटलाग, कार्टून, मेले में लगी प्रदर्शनी, सामुदायिक रेडियो आदि सभी कुछ वैकल्पिक मीडिया का अंग है। इंटरनेट और मोबाइल के विकास ने इसे द्रुत गति प्रदान किया है।
            वर्तमान में जब हम वैकल्पिक पत्रकारिता की बात करते है, तो हमारे जेहन में गणेश शंकर विद्यार्थी,प्रेमचन्द जैसे संपादक और विशाल भारत,विप्लव,हंस जैसी पत्रिकाएं आ जाती हैं । तब यह भले ही लगभग मुख्यधारा के अखबार व पत्रिकाएं थी पर इनके सामाजिक सरोकार,इनकी प्रतिबद्धता और अभिव्यक्ति की आजादी वैकल्पिक पत्रकारिता  सरीखी थी। धर्मयुग, हिन्दुस्तान साप्ताहिक,सारिका,दिनमान जैसी पत्रिकाएं बड़े प्रतिष्ठानों से निकलने के बावजूद एक बड़े वर्ग के पाठक तक पहुँच रखती थी । उस समय इन  सभी पत्रिकाओं का जोश व उत्साह चरम पर था । वर्तमान  में उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड से ग्रामीण महिलाओं द्वारा निकलने वाला समाचारपत्र ‘खबर लहरिया’एक पाक्षिक समाचार पत्र है, जो वहां की समस्याओं को प्रकाशित करता है ।  यह अखबार वैकल्पिक पत्रकरिता के प्रतिमान प्रतिस्थापित करता है । इन सभी वैकल्पिक पत्रिकाओं ने समाज में एक नई सोच व समझ विकसित की है एवं पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा  को परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आज अधिकांश अनियतकालीन पत्रिकाएं तो सिर्फ इसलिए निकाली जाती हैं, ताकि जब विज्ञापनों का जुगाड़ हो जाये समाचार सामग्री के साथ अंक बाज़ार में चला जाय। वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से आज ग्रामीण जनपक्ष की आवाज बुलंद हो रही है। लोग विभिन्न वैकल्पिक माध्यमों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति को जाहिर कर रहे। वैकल्पिक संचार के माध्यम से लोगों मे सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर जागरूकता का प्रादुर्भाव हो रहा है।
वैकल्पिक मीडिया की अवधारणा
फ्रांस में सर्वप्रथम मई 1968 में छात्र और श्रमिकों के विद्रोह के बाद वाम विचारधारा से युक्त वैकल्पिक अख़बार दिखाई पड़ा। इसका प्रथम प्रकाशन 18 अप्रैल 1973 ई. को आया जिसमें इसके प्रकाश में आने का उल्लेख था। हालांकि भारतीय संदर्भ में पत्रकारिता की शुरूआत (गांधी और अंबेडकर की पत्रकारिता) ही वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में हुई है। अतः इस शब्द की व्युत्पत्ति के संदर्भ में स्पष्टता नहीं है।
Atton Chris के अनुसार ऐसी मीडिया जो कमजोर वर्ग के लिए लिखती व सोचती हो और पूर्णतः साधारण (Common) हो। सामान्यतः मूलभूत व स्वतंत्र मीडिया जो एक ऐक्टिविस्ट की तरह कार्य करती है। विभिन्न स्तरों एवं रूपों में प्रकाशन स्वतंत्र हो, उस एक बड़े समूह का अधिकार न हो
वैकल्पिक मीडिया में वैकल्पिक शब्द से तात्पर्य है कि वह सब जो मुख्यधारा के मीडिया के स्रोतों से प्राप्त न हो। वैकल्पिक मीडिया को पारिभाषित करते हुये कुछ तथ्य सामने आये हैं जो निम्नलिखित हैं-
ऐसा समाचार प्रकाशक जो व्यापारिक न हो, उसके विचार या मुद्दे लाभ पर केंद्रित न हो, उसके विचारों एवं समाचारों के प्रकाशन का एक उद्देश्य हो।
उसके प्रकाशन की सामग्री पूर्णतः सामाजिक उत्तरदायित्व पर निर्भर हो। उसके लेखन में एक विशेष प्रकार का बोध होता हो।
समाचारों का प्रकाशन लगभग जनमानस को प्रेरित करने वाला हो।
वैकल्पिक मीडिया छोटे-छोटे उद्देश्यों पर केंद्रित रहता है। इसका कवरेज नियमित नहीं होता है।
प्रकाशन लगभग समाचार उपलब्धता पर केंद्रित रहता है।” (Pinzon,Ramirez ,‘Alternative Media: 2007)
समाज विज्ञान विश्वकोश के अनुसार- वैकल्पिकता किसी मीडिया की स्थिति जरूरी नहीं स्थायी ही हो। जैसे किसी मुद्दे को लेकर मीडिया के किसी भी वैकल्पिक माध्यम द्वारा किसी मुद्दे को मुखरता स्थापित की जा रही हो और मुद्दों की पूर्ति हो गयी हो तो वह मीडिया समाप्त भी हो सकता है या वह परिस्थिति सापेक्ष भी हो सकता है। मसलन, किसी अधिनायकवादी सत्ता का विरोध कर रहे आंदोलन का दृष्टिकोण पेश करने वाला मीडिया वैकल्पिक की श्रेणी में माना जाता है। पर, उस सत्ता को अपदस्थ करके सरकार में आने वाली राजनीतिक ताकत का समर्थन करने वाला वही मीडिया वैकल्पिक होने का श्रेय लेने में नाकाम हो सकता है।” (समाज विज्ञान विश्वकोश, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि. वर्धा, पृष्ठ संख्या-1783)
हिंदी के विख्यात कवि अरुण कमल ने कहा है कि वैकल्पिक मीडिया मुख्यधारा की मीडिया के विकल्प की खोज के रूप में है। इससे उन लोगों को भी अपनी बात कहने का अवसर मिलता है जिनके पास संप्रेषण के दूसरे साधन नहीं हैं। (संगोष्ठी, कोलकाता केंद्र, म.गां.अं.हिविवि, वर्धा)
राजस्थान विश्वविद्यालय में नई चुनौतियाँ और वैकल्पिक मीडिया पर परिसंवाद में अनुराग चतुर्वेदी कहते हैं कि सीमांत लोगों की बात करना ही वैकल्पिक पत्रकारिता है, और यह बात जिस माध्यम से की जाय वे वैकल्पिक माध्यम के अंतर्गत आते हैं।
हिंट सामुदायिक रेडियो के निदेशक कमल सेखरी के अनुसार- वैकल्पिक मीडिया के अंतर्गत इंटरनेट, ब्लॉग, सामुदायिक रेडियो तथा एक विशेष उद्देश्यों को लेकर चल रहे अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं जो  समाज में समाज की बात को समाज तक पहुँचाने का कार्य करते हैं ।
            उपर्युक्त विचारों को दृष्टिगत रखते हुए यह प्रासंगिक प्रतीत होता है कि वैकल्पिक मीडिया और भारतीय व्यवस्था परिवर्तन का अध्ययन किया जाये। भारतीय व्यवस्था परिवर्तन के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था के सफल क्रियान्वयन में वैकल्पिक मीडिया की भूमिका को ध्यान में रखकर एक विशद अध्ययन किया जाये, जिससे वैकल्पिक मीडिया की व्यवस्था परिवर्तन की पहुँच,चुनौतियों और प्रभाव  का मूल्यांकन किया जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में विषय अनुसंधान के लिए चयनित किया गया है।
अध्ययन की समस्या  
वैकल्पिक माध्यमों द्वारा लोग अपने अधिकार के प्रति जागरूक हो रहे है, जिससे सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन को गति मिल रही है|पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत अनेक आयामों में जागरूकता बढ़ाने  में वैकल्पिक संचार माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है। कहीं किसी समुदाय में सामुदायिक रेडियो के द्वारा तो कहीं किसी पत्रिका द्वारा लोकहित को साध कर विकल्प प्रदान किया जा रहा है। पंचायतों में राजनैतिक भागीदारी में महिलाएं  केवल रबर स्टैम्प हुआ करती थी| आज प्रमुखता से संचालन कर रही हैं । वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से संचालन कर रही है। वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से दलित व उच्च समाज में सम्यता के प्रति जागरूकता संभव हो सकी है। अतः वैकल्पिक मीडिया के सामाजिक व्यवस्था मे बदलाव का विशद अध्ययन किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
            वर्तमान दौर में इंटरनेट के माध्यम से वैकल्पिक मीडिया में काफी तीव्रता आई है। अतः इसके सामाजिक क्षेत्र में पहुँच व इसके प्रभाव पर भी अध्ययन करना आवश्यक है। वैकल्पिक मीडिया को आम आदमी की मीडिया कहा जाता है। अतः आम आदमी  इस मीडिया के द्वारा किस प्रकार लाभान्वित होता है,व जागरूकता पर अध्ययन किया जा सकता है। सूचना के अधिकार के आगमन से वैकल्पिक मीडिया केा धार मिली है । अतः इस पर भी अध्ययन किया जा सकता है कि सूचना के अधिकार के आगमन से किस प्रकार सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था में बदलाव आया | इस पर एक अन्वेषणात्मक अध्ययन की जरूरत है।अध्ययन हेतु उत्तर प्रदेश की सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था परिवर्तन  को चयनित किया गया है।
साहित्य का पुनरावलोकन -
·       Title : Efficacy and effectiveness of the role of media as an import tool for human right campaign aers : a case study of ‘global march against child labour’ campaign. Researcher : Sood. Ritus Guiden(s) : Sarojini pritam faculty of fine art Sodh gantotri : Shri Jagdish Prasad Jhabramal Tibrewala University.
·       सिंह, मुरली मनोहर प्रसाद (संपादक) एवं मालवीय, ओमप्रकाश (अनुवादक) संचार माध्यम और पूँजीवादी समाजप्रकाशन ग्रंथ शिल्पी (इंडिया) प्रा. लिमिटेड लक्ष्मी नगर, दिल्ली - 110092 प्रथम संस्करण 2006
पुस्तक में पश्चिम के पूँजीवादी समाज के संचार माध्यम के तंत्र का बहुत सुव्यवस्थित और क्रमबद्ध विकास को वर्णित किया गया है। पुस्तक मेंमीडिया के विविध आयामों पर विशेषज्ञों के विचारों केा पेश किया गया है। इस पुस्तक को अध्ययनित कर यह पता चलता है कि पश्चिमी जगत के संचार माध्यम किन-किन रास्तों से होकर गुजरे हैं ।
·       चोपड़ा धनंजय,पत्रकारिता तब से अब तकउत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ प्रथम संस्करण 2007
 इस पुस्तक को 12 अध्यायों में बांटा गया है और इसके दौरान पत्रकारिता की परिभाषा से लेकर नई प्रवृत्तियों तक सभी पहलुओं को उदधृत  किया गया है।न्यू मीडिया की बदलती प्रवृतियों का स्पष्ट किया गया है |
·        महीपाल,पंचायती राज चुनौतियाँ एवं संभावनाएं ,नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया,नेहरु भवन,5बसंत कुंज,नई दिल्ली -110070
पुस्तक में लेखक ने भारत में पंचायतों के सामने क्या–क्या चुनौतियाँ है तथापंचायतें उन चुनौतियों को पार करके कैसे सहायक होंगी |इस विषय को विश्लेषित किया गया है |
·       डॉ.नीता,डॉ.सम्पूर्णानन्द एवं उत्तर प्रदेश की राजनीति,गौतम बुक सेंटर, शाहदरा,दिल्ली-110093,संस्करण 2011
इस पुस्तक में लेखिका ने उत्तर प्रदेश की राजनीतिक चुनौतियों, समस्याओं और परिवर्तन को विश्लेषित करने का प्रयास किया है
·       नोम चौमुस्की, अनुवादक चंद्रभूषण जन माध्यमों का माया लोकग्रन्थ  (इंडिया) प्रा. लिमिटेड शिल्पी, लक्ष्मी नगरदिल्ली, प्रथम हिंदी संस्करण 2006
इस पुस्तक में जनसंचार माध्यमों के ऊपर लेखक के विचारों का संकलन है। इसमें प्रो.नोम चौमुस्की ने विभिन्नघटनाओं का उदाहरण देकर घटनाओं को स्पष्ट किया है।
·          शोध प्रबंध: नागरिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियां व प्रभाव का अध्ययनशोधार्थी : रामशंकर, शोध निर्देशक:डॉ. वीरेंद्र व्यास,महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, (म.प्र.)
इसमें वैकल्पिक मीडिया के अंतर्गत नागरिक पत्रकारिता की विभिन्न प्रवृत्तियों व प्रभाव का अध्ययन कर विश्लेषित किया गया है। जिसमें वैकल्पिक मीडिया को आम आदमी का प्रभावी पत्रकरिता  माना गया है।
·       Christian fuchs ‘Alternative media as critical media’ University of Salz burg, Austria, Web-address : http:/fuchs.uti.at
This article deals with the category of alternative media from a theoretical perspective. It aims to develop a definition and distinguish different dimensions of alternative media.
·       विकी पीडिया मुक्त विश्वकोश वैकल्पिक मीडिया
विकीपीडिया में वैकल्पिक मीडिया की अवधारणा को स्पष्ट किया है |
शोध के उद्देश्य व महत्व –
अध्ययन के उद्देश्य.
            प्रस्तुत अध्ययन विषय वैकल्पिक मीडिया और भारतीय व्यवस्था परिवर्तन (उ.प्र. के सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था के विशेष संदर्भ में)के विशद अध्ययन हेतु निम्नलिखित उद्देश्य  बिंदुवत् है -
·       वैकल्पिक मीडिया की स्थिति का विश्लेषण 
·       भारतीय समाज व राजनीति व्यवस्थाका विश्लेषण ।
·       सामाजिक  व्यवस्था परिवर्तन में वैकल्पिक मीडिया की पहुँच का अध्ययन।
·       सामाजिक  व्यवस्था परिवर्तन में वैकल्पिक मीडिया के प्रभाव का विश्लेषण ।
·       राजनैतिक व्यवस्था में वैकल्पिक मीडिया के योगदान का अध्ययन।
·       पंचायती राज व्यवस्था के क्रियान्वयन में वैकल्पिक मीडिया के योगदान का अध्ययन।
·       वैकल्पिक मीडिया से जनमानस में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन।
·       वैकल्पिक मीडिया का सूचना के अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में योगदान का अध्ययन।
महत्व- वैकल्पिक मीडिया सूचना संसार का एक अभिन्न अंग है। भारतीय समाज में व्यवस्था के सुचारू रूप से संचालन में वैकल्पिक मीडिया की व्यापक भूमिका है। यह कहना सिर्फ संयोग नहीं है कि वैकल्पिक मीडिया के भारत में उस समय दस्तक दे रही है ,जब सूचना का अधिकार मिला है ।  जाहिर है कि सूचनाओं पर अब केवल मुठ्ठी भर लोगों का अधिकार नहीं रहा है । संचार क्रांति ने वैकल्पिक मीडिया की धार को तेज कर दिया है । वैकल्पिक मीडिया के द्वारा आज लोगों में व्यापक जागरूकता का प्रादुर्भाव हुआ है। अनुसंधान का महत्व व्यापक रूप में जन मानस को लाभान्वित करेगा । शोधके माध्यम से सरोकारीय स्वरूप को समझने में मदद मिलेगी । शोध के अध्ययन से जन माध्यमों में व्यवस्था के सफल अनुकरण में सहायता मिलेगी ।
परिकल्पना - अध्ययन की परिकल्पना के मुख्य बिंदु निम्नवत् है -
·       वैकल्पिक मीडिया के प्रति जन मानस की ललक बढ़ी है।
·       वैकल्पिक मीडिया का जन सरोकार में सकारात्मक भूमिका है।
·       वैकल्पिक मीडिया के आगमन से पंचायती राज व्यवस्था के सफल क्रियान्वयन को  धार मिली है।
·       वैकल्पिक मीडिया से जनमानस में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
·       वैकल्पिक मीडिया के आगमन से पंचायतों में महिलाओं की  सक्रियता बढ़ी  है।
·       वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से लोगों ने पुरानी रूढि़वादी विचारों का खंडन किया है।
·       सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन में वैकल्पिक मीडिया की सकारात्मक भूमिका है।
·       सूचना के अधिकार अधिनियम ने वैकल्पिक मीडिया को वैचारिक तीव्रता प्रदान किया है।
शोध क्षेत्र के निर्धारण व प्रदत्त संकलन में न्यादर्श पद्धति- प्रस्तुत अध्ययन हेतु उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था का चयन किया गया है। चूंकि समय तथा प्रदेश के विस्तृत क्षेत्र को देखते हुए उद्देश्यपरक न्यादर्श पद्धति के तहत चित्रकूट मंडल के बांदा जनपद का चुनाव किया गया है, जिसके अंतर्गत बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा जनपद आते हैं।
पायलेट सर्वे में इन पाँच जिलों पर प्रश्न पूछा गया, जिसमें बांदा जिले पर ज़्यादातर उत्तरदाताओं ने स्वीकृति प्रदान की। इस प्रकार अध्ययन हेतु बांदा जिले में सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन का अध्ययन किया गया।    
बांदा जिले में चार तहसील बांदा (सदर), अतर्रा, बबेरु तथा नरैनी हैं। प्रत्येक तहसील में से एक-एक गाँव का चयन किया गया। चयन का आधार गाँव में किसी न किसी वैकल्पिक जनमाध्यम होना आवश्यक है। इस प्रकार इन चारों गाँवों में विषयगत परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं। बांदा की तहसील में 210 साक्षात्कार-अनुसूची भरवायी गई हैं। केंद्रीय परिचर्चा समूह हेतु महिला एवं पुरुष के चार-चार समूहों का निर्माण कर तथ्य संकलन किया गया है।
शोध प्रविधि -
शोध की बड़ी समस्या विश्वसनीय तथ्य संकलन से है। अधिकांश उत्तरदाता सही सूचनायें नहीं देते हैं,जिसके कारण भ्रामक निष्कर्ष निकल सकते है। एक से अधिक अनुसंधान प्रविधियों का प्रयोग करके संकलित सामग्री की विश्वसनीयता की जांच की जा सकती है। यह शोध विश्लेषणात्मक है। अतः प्रस्तुत अनुसंधान विषय के लिए निम्नलिखित प्रविधियों का प्रयोग किया गया है
सर्वेक्षण विधि,
अंतर्वस्तु विश्लेषण विधि   
केंद्रीय परिचर्चा समूह विधि
साक्षात्कार विधि
सर्वेक्षण प्रविधि के अंतर्गत त्रिकोणीय (triangulation) दृष्टिकोण से विश्लेषण किया है।
प्रदत्त संकलन के स्रोत व उपकरण

विषय के अध्ययन के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त तथ्यों का इस्तेमाल किया गया है। तथ्य संकलन के प्राथमिक स्रोत के अतर्गत साक्षात्कार-अनुसूची, साक्षात्कार, अवलोकन तथा समूह परिचर्चा तथा तथ्य संकलन के द्वितीयक स्रोत के अंतर्गत संबंधित साहित्य का अध्ययन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के आलेखों एवं चर्चित ख्यातिलब्ध विद्वानों के द्वारा शोधों के आलोक में प्रस्तुत विचार इत्यादि का प्रयोग किया गया है।
शोध अध्ययन के प्राचल (आधार) (Parameter)
भारतीय सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था के आधार -  प्रत्येक व्यवस्था की निर्भरता के कुछ मूलाधार होते हैं। भारतीय सामाजिक संगठन उस व्यवस्था की ओर इंगित करता है जिसके अंतर्गत भारतीय जीवन के स्थापित तथा मान्य उद्देश्यों और आदर्शों की प्राप्ति के लिए भारतीय समाज ने विभिन्न उपव्यवस्थाओं में प्रतिस्थापित किया है-
जाति  व्यवस्था
संयुक्त परिवार
विवाह
धर्म की प्रधानता
गाँव पंचायत
साम्य और स्वतंत्रता
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में वर्तमान में परिवर्तन-
संयुक्त परिवार का बदलता स्वरूप
स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन
विवाह संस्था में परिवर्तन
धार्मिक जीवन में परिवर्तन
जाति व्यवस्था में परिवर्तन
राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन-
समाज में मुखिया का हस्तक्षेप
पंचायत स्तर में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
आमजन का राजनीति में हस्तक्षेप    
उपर्युक्त विचारों को दृष्टिगत रखते हुए वैकल्पिक मीडिया और भारतीय व्यवस्था परिवर्तन का अध्ययन किया गया है ।
 
प्रस्तावितअध्याय विभाजन -
अध्याय:1
प्रस्तावना एवं शोध प्रविधि                                                         
1.1 प्रस्तावना 
1.2 संबंधित साहित्य का पुनरावलोकन
1.3 अध्ययन की समस्या 
1.4 शोध क्षेत्र के निर्धारण व प्रदत्त संकलन में न्यादर्श पद्धति
1.4.1 अध्ययन क्षेत्र का परिचय
1.4.2 बुंदेलखंड के बांदा जिले का परिचय
1.4.3  शोध क्षेत्र का आंकड़ात्मक परिचय
1.5 अध्ययन का उद्देश्य
1.6 अध्ययन का महत्त्व
1.7 अध्ययन की परिकल्पना
1.8  शोध प्रविधि
1.9 शोध की सीमाएं
1.10 अध्याय वार विषयवस्तु विवरण
अध्याय: 2
                वैकल्पिक मीडिया : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि             
2.1 वैकल्पिक पत्रकारिता की पृष्ठभूमि
2.2 मीडिया का अर्थ एवं परिभाषात्मक स्पष्टता
2.3 मीडिया के विभिन्न प्रकार
2.4 वैकल्पिक मीडिया की अवधारणा
2.5 वैकल्पिक मीडिया के विविध रूप
2.5.1 टेक्टिकल मीडिया
2.5.2 अंडरग्राउंड मीडिया
2.5.3 सामुदायिक मीडिया
2.5.4 रैडिकल मीडिया
2.5.5 नागरिक पत्रकारिता
2.6 वैकल्पिक मीडिया के उपकरण
2.6.1 मुद्रित माध्यम
(समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, पर्चा, पोस्टर, न्यूज़लेटर, वाल मैगजीन आदि)
2.6.2 सामुदायिक रेडियो
2.6.3 वैकल्पिक सिनेमा व टीवी
2.6.4 सोशल नेटवर्किंग साइट्स
2.6.5 ब्लॉगिंग
2.7 संदर्भ सूची
अध्याय : 3
भारतीय समाज व्यवस्था और वैकल्पिक मीडिया
3.1 समाज का अर्थ एवं अवधारणा
3.2 सामाजिक व्यवस्था का अर्थ
3.3 सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन
3.3.1 सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन का अर्थ
3.4 सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन की विशेषताएँ
3.5 सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन के मुख्य स्रोत
3.6 उत्तर प्रदेश का समाज : जातिगत भेदभाव एवं सांप्रदायिकता की चुनौतियाँ  
3.7 बुंदेली समाज और संस्कृति, परंपरागत वैकल्पिक संचार माध्यम 
3.8 बुन्देलखण्ड में वैकल्पिक पत्रकारिता
3.9 संदर्भ सूची  
अध्याय : 4
राजनैतिक व्यवस्था परिवर्तन और वैकल्पिक मीडिया       
4.1 राजनैतिक व्यवस्था
4.2 राजनैतिक व्यवस्था की अवधारणा
4.3 राजनैतिक व्यवस्थाओं के प्रमुख प्रकार
4.4 अध्ययन के राजनैतिक आयाम
4.5 पंचायती राज व्यवस्था का संक्षिप्त इतिहास
4.5.1 उत्तर प्रदेश मे पंचायतों के विकास का प्रथम चरण
4.5.2 पंचायतों के विकास का दूसरा चरण
4.5.3 पंचायतों के विकास का तीसरा चरण
4.5.4 पंचायतों के विकास का चौथा चरण
4.5.5 पंचायतों के विकास का पाचवां चरण
4.5.6 ग्राम पंचायतों के विकास का छठवां चरण
4.6 राजनैतिक जागरूकता : वैकल्पिक मीडिया की प्रांसगिकता
4.7 राजनैतिक परिवर्तन वैकल्पिक मीडिया की भूमिका
4.8 सामाजिक-राजनैतिक एवं वैचारिक सशक्तीकरण और वैकल्पिक मीडिया
4.9 संदर्भ सूची
अध्याय : 5
वैकल्पिक मीडिया के हस्तक्षेप से बदलती सामाजिक व राजनैतिक
व्यवस्था (अंतर्वस्तु विश्लेषण के आधार पर)                                  
5.1 अंतर्वस्तु विश्लेषण में शामिल विषयवस्तु का सामान्य परिचय
5.1.2 दैनिक जागरण समाचार-पत्र का परिचय
5.2.3 धर्म/जाति में परिवर्तन संबंधित समाचार 
5.2.4 शिक्षागत/हुनर संबंधित समाचार
5.2.5 विवाह/लिंगभेद से संबंधित समाचार
5.2.6 आर्थिक/रोजगार संबंधित समाचार
5.2.7 समाचार-पत्रों में आर्थिक/रोजगार संबंधित समाचार का विवरण
5.3 राजनैतिक (पंचायतीराज) व्यवस्था में परिवर्तन संबंधी समाचारों का अध्ययन
5.3.1 समाचार पत्रों (खबर लहरिया और दैनिक जागरण) के अंतर्वस्तु के आधार पर विश्लेषण
5.3.2 समाचार पोर्टल्स (बुंदेलखंड डॉट इन और अमर उजाला डॉट कॉम) के अंतर्वस्तु के आधार पर
5.3.3 योजनाओं की जानकारी संबंधित समाचार
5.3.4 पंचायत के विकास संबंधित समाचार
5.3.5 आमजन की राजनीति संबंधित समाचार
5.3.6 गाँव/फसल/रोजगार संबंधित समाचार
5.4 अंतर्वस्तु विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष
अध्याय : 6 
सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था और वैकल्पिक मीडिया से संबंधित आँकड़ों का संकलन, विश्लेषण एवं प्रस्तुतीकरण               
6.1   साक्षात्कार-अनुसूची के आधार पर
6.2   केंद्रीय परिचर्चा समूह के आधार पर
6.3   विशेषज्ञों के साक्षात्कार के आधार पर 
6.4   परिकल्पनाओं का सत्यापन
अध्याय : 7
निष्कर्ष एवं सुझाव                                                                                 
7.1 निष्कर्ष
7.2              सुझाव
संदर्भ एवं ग्रंथ सूची                                                        
परिशिष्ट
संदर्भ ग्रंथ सूची- 1.चोपड़ा धनंजय, पत्रकारिता तब से अब तक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ, 2007
2.कुमार, विनीत मंडी में मीडियावाणी प्रकाशन-4695, 21-ए, दरियागंज, नई दिल्ली 110002 संस्करण 2012
3.नॉम चौमुस्की, अनुवादक चंद्रभूषण जनमाध्यमों का मायालोकग्रन्थ  शिल्पी (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, बी-7 सरस्वती काम्प्लेक्स, सुभाष चौक लक्ष्मी नगर दिल्ली संस्करण 2006
4.Wendy huikyang chin & Thamas keenam ‘New media old media’ routledqe taylor & forancis group newyork Landon.
5.ओझा, एन.एन. भारत की सामाजिक समस्यायेंक्रांनिकल पब्लिकेशंस (प्रा.) लिमिटेड 2007
6.भारद्वाज, मैथिली प्रसाद शोध प्रविधिआधार प्रकाशन पंचकूकला हरियाणा, 2005
7.मीडिया विमर्श अंक मार्च 2012
8.Hindi khabar.hindiyam.com/2010/04.
9. विकी पीडिया, मुक्त विश्वकोश वैकल्पिक मीडिया
10.Atton, kriss. (2002)वैकल्पिक मीडिया,थाउजेंडओक्स,सीए सेज पब्लिकेशन,संयुक्त राज्य अमेरिका
11. माइकल अल्बर्ट (अक्टूबर 2007)’क्या वैकल्पिक मीडिया विकल्प बनाता है’(अंग्रेजी में)जेड पत्रिका 20 जून 2012zmagzine http://www.zcommunications.org
12.Kessler लारेन(1984),असंतुष्ट प्रेस :अमेरिकी इतिहास में वैकल्पिक पत्रकारिता,न्यूयार्क,संयुक्त राज्य अमेरिका
13.राय मीना (प्रबंध संपादक).’समकालीन जनमत’पत्रिका ए 171 कर्नल गंज स्वराज भवन के समाने इलाहाबाद 211002
14. विकीपीडिया ‘पंचायती राज व्यवस्था’ दिनांक 15/09/12
15. Dasu krishnamoorty ‘Defining alternative media intue Indian context’ article16/09/12.
16.http://www.hindyagm.com /2010/04 ‘नई चुनौतियाँ  और वैकल्पिक मीडिया’.
19.Translate.google.co.in/en.wikipedia.org/alternativemedia.
20.पाण्डेय,सतीश एवं दुबे संजीव,’सृजन सन्दर्भ’त्रैमासिक पत्रिका अक्टूबर –दिसंबर 2008.