खेवनहार
बनना है मुझे
इस धरा की खेवनहार,
नहीं बनना है मुझे
केवल पतवार।
सदियों से
सहयोगी के रूप में रह
उब चुकी हूँ ।
थक चुकी हूँ
इन शब्दों से कि
तुम ही तो हो,
गृह लक्ष्मी, स्वामिनी, अन्नदात्री
लेकिन यथार्थ में कुछ भी नहीं है पास,
न लक्ष्मी है
न संपत्ति
न ही अन्न का एक दाना।
रामशंकर ‘विद्यार्थी’
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