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मंगलवार, 12 मार्च 2019

होलिका प्रश्न


होलिका प्रश्न

कई दिनों बाद आज फिर होलिका जलने बैठ गयी,
गोद में लेकर प्रहलाद को अभिमान से ऐंठ गयी।

धरा कुपित होकर बोली क्यों ऐंठन में जलना स्वीकार किया,
पाप कर्म का साथ देकर क्यों नारी को शर्मसार किया।

छोटे से बालक को लेकर जलाने में क्यों तेरी छाती न काँप गई,
लाड़ प्यार के समय क्यों उसे मारने की चिंता व्याप गई।

होलिका बोली
नारी हूँ, नारी इच्छा सम्मान है,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , फिर क्यों मेरा अपमान है।

एक भातृ प्रतिज्ञा के चक्कर में मैंने अपना सर्वस्व लुटा डाला,
मैंने उसके अभिमानों सहित खुद खुद आज जला डाला।

लेकिन पुरुषों को देख जरा, क्या अपना दोहरा चरित्र मिटाया है,
रंगों और सम्बन्धों के बदले क्या उसने नारी का हवस नहीं बनाया है।   
करके सदा व्यंग्य मुझपर, क्यों लांछन सदा लगाया है,  
खुद की कुंठा को चिपकाकर क्यों कपड़ों पर दोष मढ़ाया है।

खुदकों संसार खेवइया बन, क्यों मुझको पतवार बनाया है,
छह माह की बच्ची से वृदधा तक को शिकार बनाया है।  

मुझे जलाने वालों इस शैतान को कब जलावोगे,
जलाकर इसकी राख का मुझ पर गुलाल उड़ावोगे। 
डॉ रामशंकर विद्यार्थी

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