भारतीय पत्रकारिता के
लगभग 232 साल के इतिहास को देंखे तो एक तरह से यह ठीक ही लगता है कि जीवंत समाज के
अभिन्न अंग का तीव्र वैचारिकता के प्रतिफल का नाम ही पत्रकारिता है। प्रसिद्ध
संचार विद् मार्शल मैक्लुहान का कथन है कि संचार ‘संचार
क्रांति के दौर में जब सम्पूर्ण विश्व एक गांव में तब्दील हो गया है, संचार के क्षेत्र में हर दिन कोई न कोई उपलब्धि हासिल की जाती है, ऐसे में
मीडिया ने भी अपनी रंगत बदली है।’ आज पत्रकारिता के आयामों
में बदलाव तो हुआ ही साथ ही उसके शस्त्र और औजारों में भी परिवर्तन हुआ। दुनिया भर
में इक्कीसवीं सदी में एक खास मीडिया का प्रादुर्भाव हुआ जिसे वैकल्पिक मीडिया के
नाम से जाना जाता है।
वैकल्पिक मीडिया से आशय ऐसी मीडिया
(समाचार पत्र-पत्रिका, रेडियो, टीवी सिनेमा व इण्टरनेट आदि) से है,जो मुख्य धारा की मीडिया के संदर्भ में
वैकल्पिक जानकारी प्रदान करती है। वैकल्पिक मीडिया को मुख्य धारा मीडिया से हटकर
देखा जाता है। मुख्यधारा के मीडिया वाणिज्यिक, सार्वजनिक रूप
से समर्थित या सरकार के स्वामित्व वाली हैं वैकल्पिक मीडिया के अंतर्गत उन खबरों
को प्रसारित किया जाता है जिन्हें मुख्य धारा मीडिया के मीडिया में स्थान नहीं
दिया जाता और वे जन सरकारों से पूर्णतः जुड़ी होती है। प्राचीन काल में डुग्गी व
मुनादी के माध्यम से खबरों का प्रसारण किया जाता था। औद्योगिक व विज्ञान के विकास
ने संचार का चेहरा बदल दिया है जिसमें
मुनादी, डुग्गी आज की शैली में पम्फ्लेट, पोस्टर व भित्ति चित्र में बदल गये है। आज ज्यों ही हम मीडिया की बात करते
है, हमारे जेहन में त्यों ही चौबीस घंटे पोपट की तरह बोलने
वाले तमाम समाचार चैनल व अखबार घूम जाते है,जो दिन भर एक्सक्लूसिव के नाम पर अपना
राग अलापते रहते हैं । इस भागमभाग की स्थिति ने हमें तमाम समाचारों से वंचित कर दिया
है,यही आज मुख्य धारा का मीडिया कहलाता है।
वैकल्पिक मीडिया को व्यापक रूप में
फैलाने में मुख्यधारा के मीडिया की अहम् भूमिका है। जब मुख्य धारा की मीडिया में
जन सामान्य की बात को भुलाया जाने लगा और मसालेदार, औचित्यविहीन ख़बरें परोसी जाने
लगी और साथ ही साथ जनता की अभिव्यक्ति को जन माध्यम में रोका जाने लगा। अखबारी
खबरों पर संदेह किया जाने लगा, तब शनैः शनैः वैकल्पिक मीडिया का उत्थान इस सूचना
युग में हुआ। यह वह संचार माध्यम का स्वरूप हो गया जो बार-बार मुख्य धारा की मीडिया के साथ खड़ा होने की कोशिश
करता है।
वैकल्पिक मीडिया हमारे विकास के साथ बढ़ा
है। स्वतंत्रता के समय लोग पर्चे छापकर अपने विरोध केा दर्ज करते थे। अपनी बात
लोगों तक पहुँचाते थे। तब भी अखबार थे, लेकिन उसमें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नहीं लिखा
जा सकता था। आज वहीं मुख्य धारा के मीडिया से कट जाने वाली खबरें वैकल्पिक मीडिया के द्वारा अपनी अलग पहचान बना
रही है। मुख्य धारा के टीवी चैनल और अखबार जैसे संचार माध्यमों की जगह अब सच्चे जन
पक्ष का निर्माण करने में लघु पत्रिकाओं और सामुदायिक रेडियो बड़ी भूमिका का
निर्वहन कर रहे हैं। किसी विशेष व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर अनेक
पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशित की जा रही है, जो एक बेहतर जनपक्ष के वैकल्पिक मीडिया के
रूप में उभर रही है।
इंटरनेट के माध्यम से वेबसाइट,फेसबुक,ट्वीटर और सोशल नेटवर्किंग साइट्स तेजी से विकसित हो रही है। भारत के विभिन्न
क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो बड़ी तेजी से पुष्पित एवं पल्लवित हो रहा है। किसी
विशेष समुदाय में विभिन्न प्रकार से लोगों को वैकल्पिक संचार माध्यमों द्वारा जानकारी उपलब्ध
कराई जा रही है। अफ्रीका, मिश्र व मध्य पूर्व देशों में
तानाशाही और स्वयं भू व्यवस्थाओं के खिलाफ हुए विद्रोह, वैकल्पिक मीडिया की ही देन
है। तमिल गीत कोलावरी डी की दुनिया भर में शोहरत के लिए भी वैकल्पिक मीडिया ही
श्रेय का हकदार है। पंचायतों में जहाँ पहले महिलाएं प्रतिनिधि पर या पति आश्रित हुआ
करती थीं , वहीं आज महिलाएं पंचायतों में साहस पूर्वक राजनीति कर रहीं हैं | बैनर, पोस्टर, होर्डिंग, दीवारों पर लिखे वक्तव्य, कैटलाग, कार्टून, मेले में लगी
प्रदर्शनी, सामुदायिक रेडियो आदि सभी कुछ वैकल्पिक मीडिया का
अंग है। इंटरनेट और मोबाइल के विकास ने इसे द्रुत गति प्रदान किया है।
आज वैकल्पिक मीडिया के अंतर्गत मोबाइल सुविधा के
एम.एम.एस और एस.एम.एस ने हमारे एक मंत्री जी से सदन में उनसे कर्ज तक पूंछ लिया। इसका एक नतीजा यह भी हुआ है कि लोग समाचार
मीडिया को लेकर जागरूक हो रहे हैं। पाठक, श्रोता और दर्शक आँख मूंदकर भरोसा नहीं कर रहे है। वे खुद खबरों की पड़ताल कर रहे है।
पाठको-दर्शकों का एक छोटा ही सही लेकिन सक्रिय वर्ग मुख्यधारा के मीडिया पर कड़ी
निगाह रख रहा है, और उसकी गलतियों और भटकाओं को पकड़ने और हजारों लाखों लोगों तक पहुँचाने में देर नहीं कर रहा है।
वर्तमान में जब हम वैकल्पिक पत्रकारिता
की बात करते है तो हमारे जेहन में गणेश शंकर विद्यार्थी,प्रेमचन्द जैसे संपादक और विशाल
भारत,विप्लव,हंस जैसी पत्रिकाएं आ जाती हैं |तब यह भले ही लगभग मुख्यधारा के अखबार
व पत्रिकाएं थी पर इनके सामाजिक सरोकार,इनकी प्रतिबद्धता और अभिव्यक्ति की आजादी
वैकल्पिक पत्रकारिता सरीखी थी |धर्मयुग,
हिन्दुस्तान साप्ताहिक,सारिका,दिनमान जैसी पत्रिकाएं बड़े प्रतिष्ठानों से निकलने
के बावजूद एक बड़े वर्ग के पाठक तक पहुँच रखती थी |उस समय इन सभी पत्रिकाओं का जोश व उत्साह चरम पर था
|वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड
से ग्रामीण महिलाओं द्वारा निकलने वाला समाचारपत्र ‘खबर लहरिया’एक पाक्षिक समाचार
पत्र है जो वहां की, समस्याओं को प्रकाशित करता है,यह अखबार वैकल्पिक पत्रकरिता के
प्रतिमान प्रतिस्थापित करता है |इन सभी वैकल्पिक पत्रिकाओं ने समाज में एक नई सोच
व समझ विकसित की है, एवं पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा को परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा
की है|आज अधिकांश अनियतकालीन पत्रिकाएं तो सिर्फ इसलिए निकाली जाती हैं ताकि जब विज्ञापनों का जुगाड़ हो जाये समाचार
सामग्री के साथ अंक बाज़ार में चला जाय|
वैकल्पिक मीडिया के बदौलत ही
निर्मल ईंट वाले से बने निर्मल बाबा की ईट से ईंट बजा दी और सच्चाई दुनिया के
सामने ला दिया। वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से आज ग्रामीण जनपक्ष की आवाज बुलंद हो
रही है। लोग विभिन्न वैकल्पिक माध्यमों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति को जाहिर कर रहे।
वैकल्पिक संचार के माध्यम से लोगों मे सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर जागरूकता का
प्रादुर्भाव हो रहा है।
उपर्युक्त विचारों को
दृष्टिगत रखते हुए यह प्रासंगिक प्रतीत होता है कि वैकल्पिक मीडिया और भारतीय
व्यवस्था परिवर्तन का अध्ययन किया जाये। भारतीय व्यवस्था परिवर्तन के अंतर्गत
पंचायती राज व्यवस्था के सफल क्रियान्वयन में वैकल्पिक मीडिया की भूमिका को ध्यान
में रखकर एक विशद अध्ययन किया जाये, जिससे वैकल्पिक मीडिया की व्यवस्था परिवर्तन
की पहुँच,चुनौतियों और प्रभाव का
मूल्यांकन किया जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में विषय अनुसंधान के लिए चयनित किया गया
बहुत बढ़िया है
जवाब देंहटाएंvaikalpik media ke baare mei main bahut kanfus hun ki aakhir vaikalpik media hai kya vaikalpik meia par aapne kuchh jaankaari pradan ki hai aur jaankaari lekhen bahut bahut dhnyvaad .
जवाब देंहटाएं