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मंगलवार, 20 नवंबर 2012

फेसबुक हंगामा में पुलिस की जोरदार खिल्ली


फेसबुक हंगामा में पुलिस की जोरदार खिल्ली 

          अभिव्यक्ति की आजादी को हथकड़ी पहनाने वाली मुंबई पुलिस की अदालत में एक न चली. कोर्ट ने दोनों युवतियों को जमानत दी. अब पुलिस का कर्तव्य है कि वह उन लड़कियों को समुचित सुरक्षा दे और साबित करे कि कानून आम लोगों के लिए भी है.
कानून के नाम पर शिव सेना की चाटुकारिता करती मुंबई पुलिस उस वक्त मूकदर्शक बनी रही, जब शिव सैनिकों ने एक युवती के अंकल के क्लीनिक में जमकर तोड़ फोड़ की. उत्तर मुंबई के पलघर इलाके में शिव सेना के 2000 कार्यकर्ता फेसबुक पर कमेंट करने वाली लड़की के अंकल के क्लीनिक में घुसे और हाथपाई की. मुंबई पुलिस अब तक यह नहीं बता सकी है कि उसके होनहार पुलिसकर्मी तोड़ फोड़ के वक्त मौके पर क्यों नहीं पहुंच सके या इस सिलसिले में उसने कितने लोगों को गिरफ्तार किया और उन पर क्या धाराएं लगाई हैं.
दरअसल शनिवार को शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे का निधन हुआ. उनके निधन की खबर आते ही उपद्रव की आशंका के चलते पूरा मुंबई थम गया. शहर बंद हो गया. रविवार को ठाकरे के अंतिम संस्कार तक मुंबई बंद रहा. 21 साल की युवती ने फेसबुक पर कमेंट कर इस बंद का विरोध किया. पुलिस इंस्पेक्टर उत्तम सोनावणे के मुताबिक "उसने कमेंट में कहा कि ठाकरे जैसे लोग रोज पैदा होते और मरते हैं, उनकी वजह से बंद (शहर) नहीं होना चाहिए."
उसकी एक सहेली ने कमेंट लाइक किया. पुलिस ने दोनों युवतियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर धार्मिक भावनाएं भड़कानें और इंफॉर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट सेक्शन 64(ए) की धाराएं लगाई गईं.
सोमवार को पुलिस ने दोनों लड़कियों को निचली अदालत में पेश किया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अदालत ने दोनों युवतियों को जमानत दे दी. यह अपने आप में पुलिस की खिल्ली है कि उसका मुकदमा अदालत में पल भर में गच्चा खा गया. हालांकि कमेंट लिखने वाली युवती ने बाद में शिव सैनिकों के डर की वजह से माफी भी मांग ली और अपनी राय फेसबुक से मिटा दी.
भारत में राजनीतिक पार्टियों की धौंस के आगे पुलिस का पंगु होना नया नहीं. अब एक नई समस्या आ खड़ी हुई है. पिछले कुछ समय से भारतीय नेताओं में सहनशीलता का स्तर लगातार गिरता दिख रहा है. लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष होता है, आलोचना और बहस आम बात है. लेकिन आम लोगों की आलोचना कई नेताओं को पच नहीं पा रही है. वह कठपुतली पुलिस का सहारा लेकर आलोचकों को चुप कराना चाह रहे हैं|

1 टिप्पणी:

  1. अभिव्यक्ति की आजादी को हथकड़ी पहनाने वाली मुंबई पुलिस की अदालत में एक न चली. कोर्ट ने दोनों युवतियों को जमानत दी.लेकिन क्या शोसल मेदिल या आँय मीडिया की इतनी आज़ादी उचित है जो ओवर फलो हो जाये ...

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