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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

गांधी जयंती पर कवितायें...



स्वच्छ वसुधा


रामशंकर-रीता 

इंसां अंतर्मन से,
प्रकृति का हरास मिटे।
धरा रहे स्वच्छ,
रोगों का अभिशाप मिटे।
तन का मैल मिटे,
 जीवन का बैर मिटे।  
जीवन की जंग में,
मन का संत्रास मिटना जरूरी है।
घर की सफाई हो,
गलियों की सफाई हो,
जीवन में शांति-चित्त होना जरूरी है।
पाबंद समय के हम,
आलस्य भी सदा भस्म हो।
परवान हो सदाचार,
बुराई भी तो खत्म हो।
नीति हो समान,
सदा हितकारी।
राजनीति की संरचना,
जनमत को प्यारी हो ।
सफाई के उपक्रम हों,
 गंदगी भी तो खत्म हो,
मानवता का भाव हो
समर्पण संतृप्त हो।
तृष्णा की योग माला जीवन से टूटकर
ममता की छांव में,
जीवन समृद्ध हो।
गांधी के हैं दो स्वस्थ स्वप्न,
मिले आजादी देश को
भारत की वसुधा,
स्वच्छ और वैभव संपन्न हो।
सत्य के प्रयोग किया
ताकि कामुकता भी खत्म हो।
लोगों में स्वदेसी का हो भाव
निर्धनता भी खत्म हो।
छुआछूत भेद भाव मिट
मानवता का मूल्य बढ़े।
स्वच्छता का हो ख़्याल
वातावरण हो शुद्ध
नीर भी निर्झर बहे।

व्यंग्य
अच्छे घरों की लड़कियां
अच्छे घरों की लड़कियां,
सुबह उठते ही नहीं करती हैं गुड मॉर्निंग या हाय
उठकर करती हैं सादर प्रणाम या राम-राम या सलाम।
अच्छे घरों की लड़कियां सुबह उठकर
नहीं कहती हैं कि मम्मी चाय बना कर दे दो।
वह कहती हैं कि मैं स्कूल भी जाऊँगी
लेकिन खाना बना कर जाऊँगी।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं हँसती हैं
बहुत तेज, उन्मुक्त होकर
वह हँसती हैं घरों की चारदीवारी के अंदर
मुंह छुपाकर।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं पहनती हैं
जींस स्कर्ट और टॉप जैसा कुछ अधखुला वस्त्र
वह रहती हैं पूरे बदन ढकी सिर से पैर तक।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं देती हैं
जवाब अपने से बड़ों का
वह रहती हैं केवल सिर झुकाये असहाय सी खड़ी।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं घूमती हैं
किसी अनजान पुरुष या मित्र के साथ
वह रहती हैं तो केवल मोटी दीवारों के बीच।
अच्छे घरों की लड़कियां
नहीं नाचती और गाती
किसी अनजान के सामने,
वह नाचती हैं तो केवल
पुरुष अभिभावक की अनुमति के सामने।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं जाती हैं पब या रेस्टोरेंट
वह पकाती हैं खाना चूल्हे में लकड़ी जलाकर।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं निकलती हैं सज सँवर कर
बल्कि वह रहती हैं सीधे लिबास में।
अच्छे घरों की लड़कियां नहीं करती हैं कोई ऐसा काम
जिससे पुरुष का पुरुषत्व नष्ट होता है।
अच्छे घरों की लड़कियां तो करती हैं
सिर्फ मनुहारों का काम
जिससे बढ़ता हो पुरुषत्व।






1 टिप्पणी:

  1. इस कविता के माध्यम से अच्छे घर की लड़कियों पर जोरदार व्यंग्य।

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