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गुरुवार, 9 जनवरी 2020

शहरी नक्सलवाद बनाम बौद्धिकता


शहरी नक्सलवाद बनाम बौद्धिकता
डॉ रामशंकर 'विद्यार्थी'
देश की सांस्कृतिक परंपराओं, रीति-रिवाजों तथा पर्व-त्योहारों में भ्रम और संदेह की स्थिति उत्पन्न कर नई यानि युवा पीढ़ी को भारत की से अलग करने की कोशिश करने वाली वैचारिकी को शहरी नक्सलवाद से जोड़ा जा सकता है। शहरी नक्सल वस्तुतः चरम वामपंथी, माओवादी विचारधारा के वे लोग हैं जिनका एक ही मकसद है कि वे हिंदुस्तानी अस्मिता को बर्बाद कर सत्तायुक्त बौद्धिक राज करें। वर्ष 2004 में 'शहरी परिप्रेक्ष्य: हमारे कार्य में शहरी क्षेत्र' नामक एक माओवादी दस्तावेज़ शहरी नक्सलवादी रणनीति पर आधारित था। इस दस्तावेज़ में मुख्यतः शहरी क्षेत्रों का नेतृत्व और विशेषज्ञता हासिल करना तथा औद्योगिक परिक्षेत्रों में कार्य कर रहे मजदूरों तथा शहरी गरीबों को संगठित कर अग्रणी संगठनों की स्थापना करना, विद्यार्थियों, कर्मचारियों, बुद्धिजीवियों, महिलाओं, दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को संगठित कर 'कुशल संयुक्त मोर्चों' का निर्माण करना था जिससे इनकी वैचारिक गतिविधियां तेज हो सकें। इसमें काफी संख्या में शिक्षक, वकील, लेखक, मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल हुये भी हैं।
शहरी नक्सल के अंतर्गत शहर में रहने वाले पढ़े-लिखे लोग नक्सलियों को कानूनी और बौद्धिक समर्थन कर संवर्धित करते हैं। शहरों में नक्सलवाद के बढ़ने का सबसे पहला मामला केरल में सामने आया था जब एक नक्सली समूह को पुलिस ने पकड़ा था। इसके बाद उत्तर प्रदेश के नोएडा तथा मुंबई से भी ऐसे व्यक्ति पकड़े गए। इससे यह बात सामने आई कि अब नक्सली अपना जाल शहरों में फैला रहे हैं। नक्सल मामलों के जानकारों का मानना है कि नक्सलवाद को प्रोत्साहित करने वाले लोग शहरों में छिपे बैठे हैं और अपनी गतिविधियों को शहरों से ही दिन-प्रतिदिन अंजाम दे रहे हैं। शहरी में रहने वाले नक्सलियों का मुख्य एजेंडा शहरों में नक्सलवाद को बढ़ाना तथा युवाओं को नक्सली विचारधारा से जोड़ना है तथा लोगों के मध्य विकास कार्यों को झुठलाना है। इसमें कई रूप से विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसर्स भी संगठित रूप से कार्य कर रहे हैं जिनका उद्देश्य युवाओं को भ्रमित आंकड़ों के आधार पर कभी जाति, वर्ग तथा क्षेत्र के आधार पर संगठित कर अपने स्वहित में लाना है। ये देश की शिक्षा व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ (उदाहरण के लिये एनसीआरटीई पाठ्य पुस्तकों में मार्क्सवादी प्रचार आदि) कर देश की कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप भी करते हैं तथा देश में हिंदू संस्कृति, हिंदू त्योहारों, रीति-रिवाजों आदि पर हमला करने का के भी प्रयास करते हैं।

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