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शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

महामारी से निपटने में सक्षम बनते भारतीय सांस्कृतिक उपक्रम


महामारी से निपटने में सक्षम बनते भारतीय सांस्कृतिक उपक्रम   

डॉ. रामशंकर 'विद्यार्थी'

मानव की संस्कृति का तात्कालिक संबंध प्रज्ञा, मेधा, कर्म तथा निर्माण से है इसका सतत संवर्धन बना रहे इसलिए किसी भी संस्कृति का संस्कारित होना बहुत जरूरी है।  प्राचीन भारतीय संस्कृति का अतीत बहुत ही गौरवशाली रहा है। यह संस्कृति संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए है। भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट भावना का ही प्रतिफल है कि समकालीन संस्कृतियों की तुलना में भारतीय संस्कृति अधिक जीवंत है। भारतीय संस्कृति आज पूरी दुनिया के समक्ष आदर्श प्रस्तुत कर संपूर्ण जनमानस को गौरवान्वित करने का प्रयास किया है।  वर्तमान में कोरोना एक वैश्विक महामारी के रूप में उभरा है। भारत भी इस महामारी के प्रभाव से अछूता नहीं रहा है। इस विपत्ति से सभी हताहत हुये हैं लेकिन इस महामारी से पीड़ित आंकड़ों की तरफ नजर डालते हैं तो भारत में इससे उबरने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। यह भी कहा जा सकता है कि मातृभूमि के निवासियों का मनोबल मजबूत हो, तो किसी भी परेशानी पर विजय पायी जा सकती है।
          भारत की वैविध्य सांस्कृतिक परंपराओं में जीवाणुओं एवं विषाणुओं से लडऩे एवं उनसे बचने  के उपाय पूर्व में ही शामिल किए गए हैं। कोरोना भी एक घातक जीवाणु है जिसने संपूर्ण विश्व में हा-हा कार मचा दिया है। बड़े-बड़े शक्तिशाली, राष्ट्र अब निराश, असहाय एवं बेबस की मुद्रा में नजर आते हैं। कोरोना के कहर से बचने के उपाय जिन्हें दुनियां अपना रही है, वे उपाय भारतीय परंपराओं का हिस्सा रहे हैं। भारत का नमस्कार जहां सुरक्षित दूरियां बनाए रखने का बेहतर विकल्प बन गया है, तो वहीं होम क्वॉरेंटाइन की परंपरा भी पूर्व से ही मौजूद है। दुनिया में भारतीय अस्मिता एवं संस्कृति को कोरोना महामारी में आदर की दृष्टि से देखा जा रहा है। विश्व समुदाय उन परंपराओं को अपनाकर अपने को इस महामारी से बचने की पूरी कोशिश कर रहा है।
          भारतीय अस्मिता एवं सांस्कृतिक जीवन में विभिन्न अनुष्ठानों का प्राचीन महत्व है। इनमें पर्व, त्योहार, पूजा-पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान, नृत्य-संगीत आदि के पीछे मानव मात्र के शुभता की परिष्कृत  कामनाएं ही हैं। मानव के के शत्रुओं का नाश हो, रहवास हर संकट से बचा रहे, बस्तियों में व्याधियों का प्रकोप न हो या कम हो, घातक जीवाणुओं से मनुष्य की रक्षा हो, इन अनुष्ठानों एवं प्रार्थनाओं के पीछे भी मनुष्य के सार्वभौमिक कल्याण की भावना छिपी है। परंपराओं में पीढ़ी-दर-पीढ़ी का ज्ञानानुभव समाहित होता है।
          समय का अजीब नायाब खेल है कि पश्चिम के लोग कभी भारत को 'सपेरों का देश' कहते थे। यहां की संस्कृलति, इसकी सभ्यता का पश्चिमी देशों में खूब हास्य-विनोद का विषय बनता था। आज वही देश भारत के आगे शरणागत हैं। हमारे अभिवादन के तरीके को कोरोना महामारी में पूरी दुनिया अपना रही है। इजरायल, ब्रिटेन जैसे देशों के नेता 'नमस्तेम' ईएएम प्रणाम  करते हैं। नमस्ते करें भी क्यों न हाथ मिलाने पर वायरस संक्रमण का खतरा है, इसलिए नमस्ते' ही सबसे अच्छा है। यह बात अब जाकर पश्चिमी देशों के लोगों को समझ आई है।
          पिछले कुछ दिनों से विश्व के कई राष्ट्र प्रमुखों के द्वारा भारत सरकार के द्वारा उठाये गए कदम तथा कुशल सूझ-बूझ की सराहना भी किया गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय सरकार ने इस चुनौती को एक अवसर के रूप में लिया है। भारत सरकार जहां न केवल इस महामारी को समाप्त करने के लिए संकल्पित है, वही भारतीयों को एकजुट करने, एकात्मकता को स्थापित करने का प्रयास भी कर रही है।
          प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारतीय सांस्कृतिक भावना को सुदृढ़ रखने हेतु लॉकडाउन के दौरान भारतीयों से यह अपील किया कि इस भयावह संकट से निपटने के लिए जो कोरोना योद्धा दिन-रात लोगों की सेवा में लगे हुए हैं, उनका हम सभी देशवासियों के द्वारा आभार व्यक्त करवाना जैसे देशवासियों के द्वारा जनता कर्फ्यू के दिन 5 मिनट के लिए थाली बजाकर आभार व्यक्त किया गया यह भारतीय सांस्कृतिक तरीका ही है। इससे न केवल महामारी से लड़ने के लिए भारतीयों का मनोबल बढ़ा बल्कि विश्व की दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश में जन जागरूकता भी फैली। उसी प्रकार सांस्कृतिक अनुष्ठानों के अनुरूप 5 अप्रैल को लोगों ने अपने-अपने घरों में दीपक भी जलाए। देश में कोरोना से लोगों को बचा रहे चिकित्सकों, सफाई कर्मचारियों, पुलिस आदि को कोरोना योद्धा के रूप में संबोधित किया। कोरोना योद्धाओं के प्रति प्रधानमन्त्री द्वारा आभार प्रदर्शित करने की इस अपील का देश के हर नागरिक ने अनुपालन किया। नागरिकों ने संकट में जो संकल्प शक्ति प्रदर्शित की है उससे भारत में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत भी हुई है।
          आखिरकार यही तो हमारी संस्कृति है। प्रधान मंत्री ने भारतीय संस्कृति के अनुरूप कार्य किया। उन्होंने मन की बात में उल्लेखित किया भारत अपने संस्कारों के अनुरूप, हमारी मानसिकता के अनुरूप, हमारी संस्कृति का निर्वहन करते हुए कुछ निर्णय लिए हैं। धार्मिक सहिष्णुता का का भाव भारतीय संस्कृति को अद्वितीय  बनाता है। यह सहिष्णुता धार्मिक विषयों में परस्पर सद्भाव का उपदेश भी देती है। हमारे यहाँ धार्मिक परंपराओं में विविधता समावेशित है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो कुछ मुस्लिम समुदाय द्वारा लोगों की सेवा करते व्यक्तिगत दिखाई पड़ सकते हैं क्योंकि ये नफरत की राजनीति से कोसों दूर हैं। देश की गंगा-जमुनी सभ्यता के ही परिचायक हैं।   


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