शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का एक वैचारिक मंच

अभिव्यक्ति के इस स्वछंद वैचारिक मंच पर सभी लेखनी महारत महानुभावों एवं स्वतंत्र ज्ञानग्राही सज्जनों का स्वागत है।

सोमवार, 4 मार्च 2019

नहीं पढ़ना है...


बेटी के नाम चिट्ठी
नहीं पढ़ना है...
सुबह उठकर जब भी
मैं तुम्हें देखता हूँ
तुम मेरी परी,
मेरी पहचान लगती हो
तुम्हारी तोतले शब्द
अनकहे इतिहास गढ़ते हैं।
तुम्हारी शिक्षा से जुड़े मेरे अरमां  
सामाजिक भय को पनाह देती है।
तुम जब भी स्कूल जाना
तुम पढ़कर आना, ,
संस्कार और सदाचार को
बलिदानों के उपहार को।
तुम पढ़ना इतिहास को
मगर अपने इतिहास को भी जानना,
तुम पढ़ना भूगोल को
लेकिन यथार्थ के भूगोल को समझने के लिए।
तुम संस्कृत को पढ़ना
पर अपनी संस्कृति सहेजने के लिए,
अर्थशास्त्र भी तुम्हें पढ़ना है
पर अपने अर्थशास्त्र को समझकर ।
तुम्हें सब कुछ पढ़ना है
हुनर पाने के लिए,
पर नहीं पढ़ना है
१०० अंक  लाने के लिए।

डॉ रामशंकर विद्यार्थी

1 टिप्पणी: