मैं विधा नहीं जनता के अंतर्गत...
अहसास...
मन था अकेला मन में था गुबार
देखी एक छाया हुआ उससे प्यार,
आगे फिर बात बढ़ी किया मैंने इज़हार
इज़हार हुआ कि इकरार ये शायद याद नहीं,
दिल ने धीरे से कहा
इक दूसरे से दूर रहने के मेरे पास वाद नहीं,
छाया बोली दिल उमंग से है भर गया
कोई हवा का झोंका मेरे कान में है कुछ कह गया,
क्या कहा ये मुझे भी याद नहीं
आपसे दूर रहने के मेरे पास वाद नहीं।
रामशंकर 'विद्यार्थी'
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