आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका
रामशंकर
शोधार्थी-
पीएच.डी. जनसंचार एवं ICSSR
डॉक्टोरल रिसर्च फ़ेलो
म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा (महाराष्ट्र) ईमेल- ramshankarbarabanki@gmail.com
आपदा एक बहुत विषयक क्षेत्र
है जिसमें बड़े पैमाने पर निगरानी मूल्यांकन, खोजबीन और बचाव, राहत, पुर्नवास आदि मुद्दे/पहलू शामिल होते है। आपदा को एक बड़ी
एकाएक आने वाली मुसीबत के रूप में परिभाषित किया जा जाता है। अनेक सरकारी, गैरसरकारी संगठन, निजी संगठन इस मुसीबत का मुकाबला करने के लिए तैयारी करते
है। वे इसकी मार कम करने, आपदा पूर्व की स्थिति में लाकर लोगों का कष्ट घटाने और उन्हें काम-धंधे से
लगाने की कोशिश करते है। इन्हीं तीनों कार्यों को इकट्ठा कर दे तो इसे आपदा
प्रबंधन कहते है।




साहित्य का पुनरावलोकन
1. आपदा प्रबंधन आधारित
प्रमुख साहित्य, राष्ट्रीय एवं
अंतरराष्ट्रीय स्तर के मीडिया आधारित शोध पत्र- पत्रिकाएं,
2. आपदा से जुड़े
चर्चित ख्यातिलब्ध विद्वानों एवं साहित्यकारों द्वारा आपदा प्रबंधन और मीडिया आलोक में रचित आधारित संस्थागत, विभागीय एवं
अकादमिक साहित्य,
3. आपदा प्रबंधन
के समाचार पर आधारित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अध्ययन, एवं पुस्तक
आदि।
अध्ययन के उद्देश्य
प्रस्तुत अध्ययन
विषय आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका के विशद अध्ययन हेतु
निम्नलिखित उद्देश्य बिंदुवत् है -
·
आपदा
प्रबंधन के प्रति जागरूकता फैलाने में मीडिया के प्रभाव का अध्ययन।
·
आपदा
के समय पीड़ित समाज तक मीडिया की पहुँच अध्ययन।
न्यादर्श का
चयन –
प्रस्तुत शोध कार्य के लिए उत्तर प्रदेश
में बहराइच तथा बाराबंकी जिले के आपदाग्रस्त लोग तथा आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका के
प्रभाव को जानने के लिए आमजन को चयनित किया गया है। आमजन में बाढ़ से आपदाग्रस्त
महिलाएं व पुरुष तथा कुछ विद्यार्थी शामिल हैं।
शोध का महत्व
·
आपदा प्रबंधन और मीडिया संबंधों का
सूक्ष्म विश्लेषण संभव हो पायेगा,
·
आपदा पीड़ित समाज और मीडिया की पारदर्शी
भूमिका संभव हो पायेगा,
·
आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को सामने
लाने में मीडिया के जनमानस तक पहुँच व उसके प्रभाव का अध्ययन हो पायेगा ।
अध्ययन प्रविधि
–
प्रस्तुत शोध के लिए सर्वेक्षण व अवलोकन
विधि का चयन किया गया है ।
प्राथमिक स्रोत : प्रश्नावली,साक्षात्कार

अध्ययन की
तकनीक
प्रस्तुत
अध्ययन में साक्षात्कार और प्रश्नावली तकनीक का प्रयोग किया गया है ।
प्रदत संकलन-
शोध के लिये चयनित समग्र क्षेत्र में 50 प्रश्नावली का
वितरण किया गया। प्रश्नावली में कुल 10 प्रश्न ऐसे थे जो उद्देश्य को ध्यान में
रखकर बनये गए थे। मीडिया की विवेचना, वर्तमान में आपदा के समय मीडिया का स्वरूप, मीडिया का जनमानस पर प्रभाव व आपदा प्रबंधन में मीडिया की
भूमिका आदि से संबंधित प्रश्न सम्मिलित किए गए थे। तथ्य के संकलन के लिए आपदा प्रबंधन से जुड़े समाजसेवी संघठन एवं मीडिया
से जुड़े लोगों से साक्षात्कार भी लिया गया।
प्रदत्त विश्लेषण व विवेचना –
प्रश्नावली से प्राप्त आकड़ों के विश्लेषण से जो महत्वपूर्ण परिणाम उभर कर आये
हैं उनका वर्णन निष्कर्ष के रूप में निम्नलिखित है –
अध्ययन में सहभागी उत्तरदाताओं
का सामान्य परिचय -
· प्रस्तुत अध्ययन में उत्तरदाता आपदा पीड़ित क्षेत्र के हैं ।
· अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाता 20 वर्ष से 60 वर्ष के मध्य आयु के हैं ।
· अध्ययन में 40 प्रतिशत उत्तरदाता महिला 60 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष है ।
अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाताओं में सर्वाधिक 60 प्रतिशत उत्तरदाता ने माना
की आपदा प्रबंधन के बारे जरूरी जानकारी रखते है। 40 प्रतिशत लोगों ने नहीं में
अपना मत प्रदान किया । निष्कर्षतः आपदा क्षेत्र में रहने वाले अधिकतर उत्तरदाता
आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूक हैं।
अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाताओं में क्या आपदाओं का प्रबंधन जरूरी है के
प्रश्न पर 94 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ, शून्य
प्रतिशत लोगों ने नहीं तथा 6 प्रतिशत लोगों ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रदान
किया। निष्कर्षतः आपदाओं का प्रबंधन जरूरी है।
आपदा प्रबंधन और प्रभावी संचार माध्यम के सवाल पर 16 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने
प्रिंट मीडिया, 20 प्रतिशत इलेक्ट्रोनिक मीडिया, 4 प्रतिशत लोग वेब मीडिया तथा 60 प्रतिशत लोगों ने सभी संचार माध्यमों पर
आपदा प्रबंधन से संबंधित समाचार प्रभावी ढंग से प्रसारित व प्रकाशित होने का मत
व्यक्त किया है। निष्कर्षतः आपदा के प्रबंधन
के लिए सभी संचार माध्यम प्रभावी हैं।
अध्ययन में आपदा प्रबंधन में मीडिया की सकारात्मक भूमिका पर 72 प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने हाँ, 06 प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रकट
किया है। निष्कर्षतः आपदा प्रबंधन में में की सकारात्मक भूमिका होती है।
अध्ययन में आपदा प्रबंधन और पसंदीदा अख़बार के पप्रश्न पर 50 प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने हिंदुस्तान, 36 प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने दैनिक जागरण,04 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अमर
उजाला तथा 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अन्य अख़बार पढ़ने का मत प्रदान किया है।
निष्कर्षतः आपदा के समय अधिकतर उत्तरदाता हिदुस्तान एवं दैनिक जागरण अखबार पढ़ना
पसंद करते हैं।
अध्ययन में मीडिया का आपदा के समय सेवा की लिए जनजागरूकता करने के सवाल पर 90
प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ, 02 प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 08 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कुछ कह नहीं सकते का मत प्रदान
किया है। निष्कर्षतः आपदा के समय मीडिया द्वारा जनजागरूकता कार्यक्रम चलाया जाता
है।
अध्ययन में आपदा के समय बचाव दल और मीडिया में समन्वय होना आवश्यक है, के सवाल पर 98 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हाँ शून्य प्रतिशत
उत्तरदाताओं ने नहीं तथा 02 प्रतिशत उत्तरदाताओं कुछ कह नहीं सकते का मत प्रकट
किया। निष्कर्षतः आपदा के समय बचाव दल और मीडिया में समन्वय होना अत्यंत आवश्यक
है।
प्राकृतिक आपदा के समय मौसम विभाग की भूमिका सकारात्मक होती है, सवाल पर 52 प्रतिशत लोगों ने हाँ, 26 प्रतिशत नहीं तथा 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कुछ कह नहीं सकते का मत
प्रकट किया है। निष्कर्षतः भले ही हम नतीजों से यह कह सकते है कि मौसम विभाग की
भूमिका सकारात्मक होती है, लेकिन प्राप्त आंकड़ों से स्थिति
बहुत अच्छी नहीं है।

अध्ययन में विशेष मत के सवाल पर कई मत मिले जो निम्न हैं – सर्वेक्षण में
प्राप्त मतों के अनुसार आपदा प्रबंधन निभा सकती है। हैती में आए भूकंप व उत्तराखंड
में बारिश का कहर में मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की लेकिन वह इससे कहीं अधिक
भी कर सकती थी। कम संसाधन तथा प्रौद्योगिकी का अभाव भी यहाँ के प्रबंधा की मजबूरी
है। मीडिया को समाज में उच्चस्तरीय समन्वय के साथ काम करना चाहिए, जिससे समाज में मीडिया की भ्रामक स्थिति समाप्त हो सके।
आकाशवाणी द्वारा दी जाने वाली मौसम की जानकारी को और अधिक प्रभावी एवं स्पष्ट होनी
चाहिए, जिससे मीडिया आपदा प्रबंधन को और अधिक मजबूत कर सके ।
निष्कर्ष
प्रस्तुत शोध ’’प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका’’ को ध्यान में रखते हुए अनुसांगिक शोध प्रविधि के सर्वेक्षण माध्यम से प्राप्त तथ्यों
के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि 72 प्रतिशत उत्तरदाताओं के अनुसार प्राकृतिक
आपदा प्रबंधन में मीडिया की सकारात्मक भूमिका को स्वीकार किया तथा 6 प्रतिशत उत्तरदाताओं
ने नकारात्मक तथा 22 प्रतिशत उत्तरदाताओं से कुछ भी न कहने के परिणाम प्राप्त हुए है।
मीडिया जन जागरण का एक सशक्त माध्यम है। अपने प्रसारण के माध्यम से इसने आज समाज
में आपदा प्रबंधन में योगदान कर प्रबंधन में नयी दिशा की नींव रखी है। हालांकि यह
बात सर्वेक्षण से सामने आयी है कि मीडिया प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में भरपूर योगदान
कर रही है। लेकिन हाल ही में
उत्तराखंड में भीषण बारिश के कारण आई प्राकृतिक आपदा में जहां सैकड़ों लोग काल के
गाल में समा गए हैं, वहीं सैकड़ों लाशें अभी भी मलबे में दबी हुई हैं। केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम
पूरी तरह से तबाह हो गए और समूचा रुद्रप्रयाग जिला मलबे के ढेर में तब्दिल हो गया।
इससे एक बार फिर से यह सिद्ध हुआ की भारत के पास प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के
लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।आपदा रिपोर्टर को अलग-अलग हालात में काम करना होता
है। इन हालात को समझना जरूरी है और ये हालात आपदा की किस्म पर निर्भर है।
प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य और अन्य जीवों को बहुत प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक आपदा
को कई रूपों में देखा जाता है। हरिकेन, सुनामी, सूखा, बाढ़, टायफून, बवंडर, चक्रवात आदि मौसम से सम्बन्धित प्राकृतिक
आपदा हैं। भूस्खलन और अवघाव या हिमघाव (बर्फ की सरकती हुई चट्टान) ऐसी प्राकृतिक
आपदा हैं जिनके कारण प्रभावित स्थल का आकार बदल जाया करता है। भूकम्प और
ज्वालामुखी भी कमोबेश इसी तरह की आपदा हैं। ज्वालामुखी के कारण अग्निकांड अथवा
दावानल जैसे परिणाम आते हैं। ऐसा टेक्टोनिक प्लेट के कारण हुआ करता है। टिड्डी दल
का हमला, कीटों के प्रकोप को भी प्राकृतिक आपदा में शामिल किया गया है। ज्वालामुखी, भूकम्प, सुनामी, बाढ़, दावानल, टायफून, बवंडर, चक्रवात, भूस्खलन
तेज गति वाली आपदाएं हैं। दूसरी ओर सूखा, कीटों का प्रकोप और अग्निकांड धीमी गति
वाली आपदाओं में शामिल की जाती हैं।
ग्रंथ सहायक संदर्भ
भूकम्प - सुदर्शन कुमार भाटिया
आपदा प्रबंधन: जरूरी है इच्छाशक्ति- सतीश चन्द्र सक्सेना
पत्रिकाऐं-
योजना जून 2009
कुरूक्षेत्र फरवरी 2005
कुरूक्षेत्र अगस्त 2009
इडियान्यूज-2009
डायलाग इन्डिया नवम्बर 2009
सिविल सर्विसेज टाइम्स अक्टूबर 2005
समाचार पत्र
हिन्दुस्तान, सोमवार, 2 नवम्बर 2010
रोजगार समाचार, अक्टूबर 2010
अमर उजाला- 10 अक्टूबर