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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

सोशल मीडिया : संभावनाएँ और चुनौतियाँ



सोशल मीडिया किसी परिचय का मोहताज नहीं है,इसका नाम दिमाग में आते ही सबसे पहले फेसबुक,टिवटर,लिंकइन,यू-टूब,ब्लागॅ हमारे दिमाग में आता है। आज के वैश्विक परिवेश में सोशल मीडिया की लोकप्रियता और उपयोगिता का अंदाजा इस रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।अमरिका के यूनाईटेड साईबर स्कूल के मुताबिक रेडियो को 50मिलियन लोगों तक पहुँचने में 38 साल, टीबी को 13 साल, इंटरनेट को 4 साल और फेसबुक को 100मिलियन लोगों तक पहुँचने में मात्र नौ महीने का समय लगा। एक और ध्यान देने वाली बात है कि यह केवल युवाओं की पंसद नहीं बल्कि 60-80 साल के बुजुर्ग भी इसपर सक्रिय रहतें है।
सोशल मीडिया ने आम लोगों को एक ऐसा मंच दिया है जिससे वो अपनी बातें बिना किसी डर के दुनिया के किसी भी व्यक्ति के पास पलक झपकते ही पहुचाँ सकते है। पंसद,नापंसद,अभिवयक्ति की आजादी जैसे शब्दों को सही साबित करने में इस मंच का योगदान सराहनीय रहा है।आज ज्यादातर युवा जानकारी के लिए इस पर निर्भर रहतें है। यूके में 75प्रतिशत लोग अपनी जानकारी बढाने के लिए ब्लागॅ का इस्तेमाल करते हैं। एक तरह से सूचनाओं,जानकारियों का विक्रेन्दीकरण हुआ है,अब लोग किसी सूचना के लिए एक व्यक्ति या संस्था पर आश्रित नहीं हैं।बस एक क्लिक करने की जरुरत है,सूचनाओं का भंडार आपके सामने है।सही मायने में सोशल मीडिया गाँव के चौपाल की तरह है जँहा इसका हर एक सदस्य अपने साथियों के साथ तुरतं और लगातार सूचनाओं को साझा और उसपर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है।इस तरह किसी भी सूचना या विचार को एक साथ कई व्यक्ति तक पहुँचने में कुछ सेकेंड का ही ससमय लगता है।यही इसकी सबसे बडी खूबी है,वहीं ट्रेडिशनल मीडिया में प्रतिक्रिया व्यक्त करने का कोई माध्यम हीं नहीं है।
अरब क्रातिं, वाल स्ट्रीट जैसे आंदोलन में सोशल मीडिया की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता।लीबीया,इजीपट,ट्यूनिशया जैसे देशों में कुछ युवकों ने फेसबुक,टवीटर,यू-टूब का इस्तेमाल कर लोगों को संगठित किया। संगठन को एक दिशा देकर तानाशाहों को सता से बाहर भी कर दिया।यँहा अगर सोशल मीडिया नहीं होता तो सरकार लोगों को गोलबंद होने का मौका नहीं देती और उनकी आवाज दब कर रह जाती। लेकिन सोशल मीडिया उन देशों की सरकार या किसी समूह के नियत्रंण में नहीं था जिस वजह से लोगों को एकजुट करने में सफल रहा। वहीं अब समाजसेवी संस्थाएँ भी इसका उपयोग अपने आंदोलन को संगठित करने और जनता को जोडने,जागरुक करने में कर रहे हैं। बात चाहे अन्ना आंदोलन की हो या बाबा रामदेव की उनका आंदोलन इतना संगठित और सफल इसकी वजह से ही हो पाया है।
पर इसके साथ हीं सोशल मीडिया के लिए चुनौतियाँ भी कम नहीं है।इसके बढते ताकत को देखते हुए कई देशों की सरकार इस पर सेंसर लगाने की वकालत कर रही है। यह सही है कि इसका दुरुपयोग भी होता है जैसे अगर भारत में असम हिंसा की बात करें तो इसका उपयोग कर लोगों को भयभीत किया गया,एक बडे वर्ग को डरा कर उन्हें पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। वहीं आजकल साईबर आंतकवाद भी इसके दुरुपयोग की ही बानगी है।आम लोगों की तरह आंतकवादी भी इसका उपयोग अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए कर रहें हैं। हैकिंग की समस्या भी इसी की एक कडी है, जिसका इस्तेमाल दुश्मन एक दूसरे की महत्वपूर्ण जानकारियाँ चुराने के लिए करतें है। एक और समस्या कम उम्र के युवाओं का सोशल मीडिया की तरफ बढते रुझान को लेकर है,रिपोर्ट में इस बात का पता चला कि फेसबुक इस्तेमाल करने वाले 1करोड से ज्यादा सदस्य 14साल से कम उम्र के हैं।
अगर इन चुनौतियों पर काबू पाना है तो लोगों को सोशल मीडिया के बारे में ज्यादा जागरुक और शिक्षित करना होगा।

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