भ्रष्टाचार की गिरफ़्त में
समाज
हकीकत में जनता के
कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फ़ायदा तो नौकरशाह ही उठाते हैं। आख़िर में जनता तो ठगी की ठगी ही रह जाती है। शायद यही उसकी नियति है। जन कल्याण के लिए
योजनाएं तो खूब बनती हैं। लेकिन ये
योजनाएं घोटालों की भेंट चढ़ जाती हैं। इसलिए आम जनता को इन योजनाओं का लाभ नहीं
मिलता। जब तक इन घोटालों को रोका नहीं जाएगाए आम जन को इन योजनाओं का लाभ नहीं
मिलेगा।
वैसे तो भ्रष्टाचार ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। लेकिन यदि
हम अपने देश भारत की बात करें तोयह सबसे
ज्यादा ऊपर के स्तर पर मौजूद दिखता है । पिछले काफ़ी अरसे से देश की जनता
भ्रष्टाचार से जूझ रही है,और भ्रष्टाचारी मज़े कर रहे
हैं। पंचायतों से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार
का बोलबाला है। सरकारी दफ़्तरों के चपरासी
से लेकर आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुंह बात तक नहीं करते। संसद के अन्दर भ्रष्टाचार को लेकरहो-हल्ला होता
है तो बाहर जनता धरने,प्रदर्शन कर अपने गुस्से का इज़हार
करती है। हालांकि भ्रष्टाचार से निपटने के
लिए सरकारी स्तर पर भी तमाम दावे कर औपचारिकता पूरी की जा रही है। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहता है। अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार
के मामले में भी लगातर तरक्क़ी कर रहा है विकास के मामले में भारत दुनिया में
कितना ही पीछे क्यों न हो मगर भ्रष्टाचार के मामले में काफी ऊपर पहुंच गया है।
गौरतलब
है कि जर्मनी के बर्लिन स्थित गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले साल भारत में काम कराने के लिए 54 फ़ीसदी लोगों को रिश्वत देनी पड़ी। जबकि पूरी दुनिया की चौथाई आबादी घूस देने को
मजबूर है। इस संगठन एनजीओ ट्रांसपरेंसी
इंटरनेशनल के सर्वे में दुनियाभर के 86 देशों में 91 हज़ार लोगों से बात करके रिश्वतखोरी से संबंधित आंकड़े जुटाए हैं। 2010 के ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर के मुताबिक़ पिछले 12
महीनों में हर चौथे आदमी ने 9 संस्थानों में से एक में काम
करवाने के लिए रिश्वत दी। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस विभाग से लेकर अदालतें तक शामिल हैं।
भ्रष्टाचार
के मामले में अफ़गानिस्तान, नाइजीरिया, इराक़ और भारत सबसे ज़्यादा भ्रष्ट देशों की सूची में शामिल किये गए हैं। इन देशों में आधे से
ज़्यादा लोगों ने रिश्वत देने की बात स्वीकार की इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 74 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि देश में पिछले तीन बरसों में रिश्वतखोरी में
ख़ासा इज़ाफ़ा हुआ है। इस रिपोर्ट में पुलिस विभाग को सबसे ज़्यादा भ्रष्ट करार
दिया गया है। पुलिस से जुड़े 29 फ़ीसदी लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपना काम कराने के लिए रिश्वत
देनी पड़ी है। संस्था के वरिष्ठ अधिकारी
रॉबिन होंडेस का कहना है कि यह तादाद पिछले कुछ सालों में बढ़ी है और 2006 के मुक़ाबले दोगुनी हो गई है
काबिले.गौर है कि ट्रांसपरेंसी
इंटरनेशनल 2003 से हर साल भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट जारी
कर रही है वर्ष 2009 की रिपोर्ट में सोमालिया को सबसे भ्रष्ट
देश बताया गया है जबकि इस साल भारत इस स्थान रहा है । देश में पिछले छह महीनों में
आदर्श हाउसिंग घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों में धांधलीऔर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले ने भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी है। जब ऊपरी स्तर पर यह हाल है तो ज़मीनी स्तर पर
क्या होता होगा सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
टीआई
की रिपोर्ट में न्यूज़ीलैंड, डेनमार्क, सिंगापुर, स्वीडन और स्विटज़रलैंड को दुनिया के
सबसे ज़्यादा साफ़,सुथरे देश बताया गया है। गौरतलब है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का
अंतरराष्ट्रीय सचिवालय बर्लिन में स्थित है और दुनियाभर के 90 देशों में इसके राष्ट्रीय केंद्र हैं |विभिन्न
देशों में भ्रष्टाचार का स्तर मापने के लिए टीआई दुनिया के बेहतरीन थिंक टैंक्स, संस्थाओं और निर्णय क्षमता में दक्ष लोगों की मदद लेता है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट की ओर से घोषित
अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के मौक़े पर जारी की जाती है।
विभिन्न संगठनों के
संघर्ष के बाद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए 12
अक्टूबर 2005 को देशभर में सूचना का अधिकार क़ानून भी लागू
किया गया। इसके बावजूद रिश्वत खोरी कम नहीं हुई, अफ़सोस तो इस बात का है कि भ्रष्टाचारी ग़रीबों,
बुजुर्गों और विकलांगों तक से रिश्वत मांगने से बाज़ नहीं आते । वृद्धावस्था पेंशन
के मामले में भी भ्रष्ट अधिकारी लाचार बुजुर्गों के आगे भी रिश्वत के लिए हाथ फैला
देते हैं।
उत्तर
प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में पांच हजार करोड़ का घोटाला
चौंकाने वाला है। ग्रामीण स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील क्षेत्र में घोटाला शर्मनाक
है। जो पैसा ग्रामीणों के स्वास्थ्य, गर्भवती
महिलाओं और बच्चों की जान बचाने के लिए खर्च होना चाहिए था। वह घोटाले की भेंट भेंट
चढ़ गया। निःसन्देह ऎसा करने वाले
इंसानियत के दुश्मन हैं।
पूर्व
प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हुए कहा था कि
सरकार की तरफ़ से जारी एक रुपए में से जनता तक सिर्फ़ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं। ज़ाहिर
है बाक़ी के 85 पैसे सरकारी अफ़सरों की जेब में चले जाते हैं।
जिस देश का प्रधानमंत्री रिश्वतखोरी को
स्वीकार कर रहा हो वहां जनता की क्या हालत होगी कहने की ज़रूरत नहीं। मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मानते हैं
कि मौजूदा समय में देश में भ्रष्टाचार और गरीबी बड़ी समस्याएं हैं। है । लेकिन
मानने मात्र से समस्या हल नहीं हो सकती है ।
हक़ीक़त
में जनता के कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फ़ायदा तो नौकरशाह ही उठाते
हैं। आख़िर में जनता तो ठगी की ठगी ही रह
जाती है। शायद यही उसकी नियति है।जन
कल्याण के लिए योजनाएं तो खूब बनती हैं। लेकिन ये योजनाएं घोटालों की भेंट चढ़ जाती हैं।
इसलिए आम जनता को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। जब तक इन घोटालों को रोका नहीं
जाएगाए आम जन को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा।
रीता पाल
राम सनेही घाट बाराबंकी
हकीकत में जनता के कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फ़ायदा तो नौकरशाह ही उठाते हैं। सर
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