लिबोर : घोटालों का पर्याय
लिबोर आज वर्तमान में घोटालों का पर्याय
बन गया है, वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी ऐसी
मिशाल देखने को मिल सकती है | जो भी हो इस घोटाले ने नव
उदारवाद और उसके सहयोगियों को काफी करारा झटका दिया है |
सबसे ताजुब्ब की बात है, भारत पर इसका असर कितना पड़ता है, और भारत इस ओर कितना ध्यान दे पा रहा है, और इस तरह
के मामलों से निपटने में कितना सक्षम बन पाएगा |
वर्तमान में अगर कोई विचारणीय विमर्श है तो वह भ्रष्टाचार
है | भ्रष्टाचार मानवीय मन में एक ऐसी आकुलता
है,जो मनुष्य की मानवता को कतिपय लगभग नष्ट करने में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा की है | भ्रष्टाचार केवल हमारे देश की ही नहीं
बल्कि विश्व व्यापी बीमारी है | यह हमारे विकास के साथ साथ
कदम से कदम मिलाकर चल रहा है |भ्रष्टाचार जनतन्त्र के सभी
हिस्सों में रक्त बनकर दौड़ रहा है | राजनीतिक दलों, नेताओं,अफसरशाही से लेकर लोकतन्त्र के निचले पायदान
थानों,कचेहरियों के बाबुओं तक भ्रष्टाचार का ही परचम लहराता हुआ
नजर आता रहता है | भ्रष्टाचार अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया
है | इसका एक ताजा उदाहरण लिबोर घोटाला है | इसकी गूंज अमेरिका, ब्रिटेन आदि पश्चिमी देशों फैली है | वह दिन दूर
नहीं जिस दिन हमारें देश में इसकी धमक हो जाय | यद्यपि
हमारें देश इस पर अभी भी खामोशी व्याप्त
है |
लिबोर यानि लंदन इंटरबैंक आफ्फ़र्ड रेट | यह एक औसत ब्याज दर है,जिसका निर्धारण लंदन के अग्रणी बैंक करते हैं | इसी
दर पर वे आपस में लेनदेन करते हैं | इस पर किसी सरकार का आधिपत्य
नहीं होता है, और न ही किसी देश की सरकार का हस्तक्षेप होता
है | लंदन में इसकी शुरुआत सन 1980 के में हुई | ब्रिटिश बैंकर्स एसोसियेशन ने पहली जनवरी से इस दर का निर्धारण और
प्रकाशन शुरू किया | लिबोर की स्थापत्य का उद्देश्य वित्तीय
अनियमितताओं से बचना,और ऋण के ब्याज के निर्धारण का एक मजबूत
आधार मिल सके | वस्तुतः लगभग 150 प्रकार की ब्याज दरें
रोजाना प्रकाशित की जाती हैं, जो लगभग 10 राष्ट्रीय मुद्राओं
के ऋणों को प्रभावित करती है |
पिछलें दो दशकों से यह दावा किया जा
रहा है कि लिबोर के ब्याज में कोई हेरा-
फेरी नहीं हो सकती, न ही कोई
अन्य विकल्प है, जिसके द्वारा इसमें घोटाला किया जा सकता है | किन्तु हाल ही में उजागर कतिपय घटनाओं ने इस पर भी संदेह का प्रश्न खड़ा
कर दिया है | पिछले कुछ महीने पहले तब स्थिति स्पष्ट हुई, जब ब्रिटेन के ही बहुत पुराने एवं प्रतिष्ठित बैंक बार्कलेज को लिबोर की
निर्धारण प्रक्रिया के दौरान हेराफेरी करने का दोषी पाया गया,और उसने अपना दोष कुबूलकर 45 करोड़ का जुर्माना भरा |
तथ्य जो स्पष्ट उभरकर सामने आए उनसे यह ज्ञात होता है कि बार्कलेज ने वर्ष
2005-2007 के दौरान के निर्धारण की प्रक्रिया को गलत ढंग से बड़े पैमाने पर
प्रभावित किया है | उससे जुड़े कुछ व्यापारियों ने अन्य
बैंकों से समन्वय स्थापित किया, जब आर्थिक मंदी का दौर शुरू हुआ
तब जान बूझ कर कम ब्याज की दर प्रेषित करने की कोशिश की,
ताकि लोग समझें कि वह अन्य बैंको से बेहतर स्थिति में है |
अमेरिका सहित तमाम देशों के विद्यार्थी बैंकों से ऋण लेकर पढ़ाई का खर्च वहन करतें
हैं | उन्हें प्रत्येक वर्ष दी जाने आधी ऋण राशियों का ब्याज लिबोर आधारित होता है | इसी प्रकार ऋण पर जायजाद रखने वालों से ब्याज कि वसूली लिबोर से जुड़ी
होती है | इसी बार्कलेज सहित अन्य बैंकों ने छात्रों एवं
ब्याज ऋणों से बहुत पैसा कमाया है |
दस्तावेजों के अनुसार इस हेरा-फेरी के
कारण लोगों का विश्वास कामर्शियल बैंकों से घट रहा है | लंदन की एक वित्तीय संस्था के प्रमुख
जॉन ग्राउट कहते है की जब लोगों का विश्वास खो देंगे तो बाज़ार में नगदी का अभाव हो
जाएगा | लोगों को ऋण लेनें में कठिनाई आएगी और ब्याज दर
बढ़ेगा | आजकल इसी प्रकार के घोटाले,
बैंक और उनके संचालक के आपसी गठजोड़ से धड़ल्ले से हो रहें हैं | घोटालों के बढ़ने के पीछे शायद दंड का लचीला प्रावधान है | भ्रष्टाचार के ज़्यादातर मामलों में पकड़े जाने पर जुर्माना ठोका जाता है, या नौकरी से निकाल दिया जाता है,लेकिन अगर इन्हें
जेल की लंबी सजा मिले तो शायद इनमें डर पैदा हो | इस बैंक
अधिकारी को भी पकड़े जाने पर पद से त्याग पत्र देना पड़ा | मुख्य
कार्यकारी अधिकारी राबर्ट डायमंड ने अपने तीन कर्मचारियों समेत वर्षांत के बोनस न
लेने का ढिंढोरा पीट दिया |
न्यूयार्क टाइम्स के ग्लोबल संस्करण
इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून के 10 जुलाई के अंक
में एक लेख छपा जिसमें शीर्षक था - लिबोर्स डर्टी लांड्री | अखबार के अनुसार तो अभी तो घोटालों के
खुलासे की यह शुरुआत है | स्पष्ट है कि इस घोटाले में शामिल
बैंकरों कारोबारियों अधिकारियों तथा अन्य लोगो ने जान बूझकर बहुत ही उत्साह से
घोटाले को आगे बढ़ाया है, जिससे भारी दौलत बटोर सकें | अखबार ने रेटिंग एजेंसियों के भी भ्रष्टाचार में शामिल होने कि बात कही
है | स्मरण हो अभी हाल ही में कुछ अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों ने
भारतीय अर्थव्यवस्था पर किए गए दूरगामी उवाच को ब्रम्ह शब्द मानकर भारत सरकार पर
तीक्ष्ण प्रहार किए जा रहे थे | शायद ही किसी ने इन रेटिंग
एजेंसियों पर सवाल किया हो |
लिबोर घोटाले कि आवाज लंदन,न्यूयार्क से लेकर यूरोपीय संघ के
मुख्यालय ब्रूसेल्स में गूंज रही है | यूरोपीय संघ के
वित्तीय मामलों के आयुक्त मिशेल बार्निये के अनुसार संघ अपने नियमों में समुचित
संसोधन की बात सोंच रहा है, जिससे भविष्य मे लिबोर जैसे
घोटाले ना हों,घोटालों में संलिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा
दी जा सके | संघ ने लिबोर को पहले दर्जे की धोखाधड़ी कहा है | अमेरिका ने बाज़ार में मिथ्या कीमतों को लाने को लेकर सख्त सजा की बात की
है | जहां तक ब्रिटेन का सवाल है लिबोर में लंदन का नाम जुड़े
होने की वजह से उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है |
ब्रिटिश के इकोनामिस्ट अखबार के अनुसार ( 7 जुलाई ) के अनुसार यदि गंदगी साफ न की
गयी ,तो पूरे बैंकिंग उद्योग की विश्वसनीयता खतरे में पड
जाएगी |
वर्तमान में प्राप्त सूचनाओं के अनुसार
बार्कलेज के अतिरिक्त सिटी ग्रुप,
यूबीएस, द्वायस्च बैंक एचएसबीसी आदि बड़े नाम वाले बैंक भी
घोटाले मे शामिल होने की आशंका व्यक्त की जा रही है | इंटरनेशनल
हेराल्ड ट्रिब्यून के अनुसार एक ओर आर्थिक मंदी के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है, और राज्य की करों से प्राप्त होने वाली राशि घट रही है, वहीं दूसरी ओर बैंक अपार अनैतिक धन बटोर रहें हैं |
मंदी को बढ़ाने मे लिबोर के घोटाले को अंजाम देने वालों का काफी हाथ है |
लिबोर आज वर्तमान में घोटालों का पर्याय बन
गया है, वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी ऐसी
मिशाल देखने को मिल सकती है | जो भी हो इस घोटाले ने नव
उदारवाद और उसके सहयोगियों को काफी करारा झटका दिया है |
सबसे ताजुब्ब की बात है, भारत पर इसका असर कितना पड़ता है, और भारत इस ओर कितना ध्यान दे पा रहा है, और इस तरह
के मामलों से निपटने में कितना सक्षम बन पाएगा रामशंकर पीएच॰डी॰ जनसंचार (शोधार्थी)
म॰गाँ॰अ॰हि॰वि॰वि॰ वर्धा,महाराष्ट्र
भ्रष्टाचार मानवीय मन में एक ऐसी आकुलता है,जो मनुष्य की मानवता को लगभग नष्ट करने में ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है
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