संप्रेषण की यात्रा
सम्प्रेषण
हर प्राणी की बुनियादी व स्वाभाविक प्रकृति एवं जरूरत है। इसके जरिए हम जानकारियों, भावनाओं एवं अभिव्यक्तियों का आदान-प्रदान करते हैं। सम्प्रेषण में
ध्वनियों, भाषा एवं चित्रों का काफी महत्व होता है।
सम्प्रेषण मानव उत्पत्ति से चली आ रही एक अनवरत प्रक्रिया है, इसका स्वरूप व माध्यम जो भी हो। जन्म लेते ही बच्चा रोकर अपनी अभिव्यक्ति
प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। संचार शास्त्री डेनिस मैकवेल मानव सम्प्रेषण को
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अर्थ पूर्ण संदेशों के आदान-प्रदान के रूप में
देखते हैं। इनका विचार है कि संचार ही मानव समाज की संचालन प्रक्रिया को सफल बनाता
है। इसी मानवीय जिज्ञासु प्रवृत्ति ने पत्रकारिता के विभिन्न आयामों का उद्भव किया
है।
पत्रकारिता में समय-समय
पर परिवर्तनों का दौर आता रहा है। यही एक मात्र पेशा है जिसमें शामिल लोग अपने
कार्य क्षेत्र को ही प्रयोग शाला मानकर नये-नये प्रयोग करते रहे है, और नई-नई प्रवृत्तियों को जन्म देते रहे है। बीसवीं संदी के अंतिम दशक में
जब सूचना प्रौद्योगिकी अपने विकास के चरम पर पहुँची तो ऐसे ही प्रयोगों की संख्या
एकाएक बढ़ गयी। नतीजा यह हुआ कि इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में ही एक साथ कई-कई नई
प्रवृत्तियों ने जन्म ले लिया और अत्यंत प्रभावी ढंग से न केवल पत्रकारिता का
रंग-ढंग बदला बल्कि सामाजिक व्यवस्था एवं लोगों के चाल-चलन में व्यापक बदलाव हुआ।
इस दौर में पत्रकारिता के दोनों महत्वपूर्ण स्वरुप प्रिंटऔर इलेक्ट्रॉनिक अर्थात
मुख्य धारा मीडिया अपने- अपने खेमे में भी डरे सहमे नज़र आये। वर्तमान समय में
प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया को ओल्ड मीडिया एवं नागरिक पत्रकारिता,सोशल
मीडिया,इन्टरनेट आधारित मीडिया,वेब पोर्टल आदि पत्रकारिता के वैकल्पिक स्वरुप को
न्यू मीडिया के नाम से जाना जाता है |मोबाइल,डिजीटल कैमरा,लैपटाप व इन्टरनेट
इत्यादि का आज सूचना संकलन व सम्प्रेषण में अधिकाधिक योगदान रहा है |आज वैकल्पिक
मीडिया के द्वारा लोग अपनी अभिव्यक्ति को अभिव्यक्त कर रहें हैं |
bahut badhiya..
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