पत्रकारिता
की अवधारणा और अर्थ
मानव जीवन में पत्रकारिता अपने महत्वपूर्ण
स्थान आरै उच्च आदर्शों के पालन के लिए सदैव अपनी पहचान बनाती आ रही है। भारत मे
पत्रकारिता का इतिहास लगभग दो सौ वर्ष का है। आज ‘पत्रकारिता’ शब्द हमारे लिए को नया शब्द नहीं है। सुबह होते ही हमें
अखबार की आवश्यकता होती है, फिर सारे दिन रेडियो, दूरदर्शन, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समाचार प्राप्त करते
रहते हैं।
पत्रकारिता
का अर्थ
अपने रोजमर्रा के जीवन की स्थिति के बारे
में थोड़ा गौर कीजिए। दो लोग आसपास रहते हैं और कभी बाजार में, कभी राह चलते और कभी एक-दूसरे के घर पर रोज मिलते हैं। आपस
में जब वार्तालाप करते हैं उनका पहला सवाल क्या होता है? उनका पहला सवाल होता है क्या हालचाल है? या कैसे हैं? या क्या समाचार है? रोजमर्रा के एसे े सहज प्रश्नो में को खास बात नहीं दिखा
देती है लेकिन इस पर थोड़ा विचार किया जाए तो पता चलता है कि इस प्रश्न में एक
इच्छा या जिज्ञासा दिखा देगी और वह है नया और ताजा समाचार जानने की। वे दोनो पिछले
कुछ घंटे या कल रात से आज के बीच मे आए बदलाव या हाल की जानकारी प्राप्त करना
चाहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने मित्रों, पड़ोसियो, रिश्तेदारो और सहकर्मियो से हमेशा उनकी आसपास की घटनाओ के
बारे में जानना चाहते हैं। मनुष्य का सहज प्रवृत्ति है कि वह अपने आसपास की चीजो, घटनाओ और लोगों के बारे में ताजा जानकारी रखना चाहता है।
उसमे जिज्ञासा का भाव प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थ मे
पत्रकारिता का मूल तत्व है। जिज्ञासा नहीं रहेगी तो समाचार की जरूरत नहीं रहेगी।
पत्रकारिता का विकास इसी जिज्ञासा को शांत करने के प्रयास के रूप में हुआ है जो आज
भी अपने मूल सिद्धांत के आधार पर काम करती आ रही है।

हिन्दी में भी पत्रकारिता का अर्थ भी लगभग
यही है। ‘पत्र‘ से ‘पत्रकार’ और फिर ‘पत्रकारिता’ से इसे समझा जा सकता है। वृहत हिन्दी शब्दकोश के अनुसार ‘पत्र‘ का अर्थ चिट्ठी, कागज, वह कागज जिस पर को बात लिखी या छपी हो, वह कागज या धातु की पट्टी जिस पर किसी व्यवहार के विषय में
को प्रामाणिक लेख लिखा या खुदवाया गया हो(दानपत्र, ताम्रपत्र), किसी व्यवहार या घटना के विषय का प्रमाणरूप लेख(पट्टा, दस्तावेज), यान, वाहन, समाचार पत्र, अखबार है। ‘पत्रकार’ का अर्थ समाचार पत्र का संपादक या लेखक। और ‘पत्रकारिता’ का अर्थ पत्रकार का काम या पेशा, समाचार के संपादन, समाचार इकट्ठे करने आदि का विवेचन करनेवाली विद्या।
पत्रकारिता
की परिभाषा
पत्रकारिता (Journalism) आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का
एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज
के समय में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।
किसी घटना की रिपोर्ट समाचार है जो
व्यक्ति, समाज एवं देश
दुनिया को प्रभावित करती है। इसके साथ ही इसका उपरोक्त से सीधा संबंध होता है। इस
कर्म से जुड़े मर्मज्ञ विभिन्न मनीषियो द्वारा पत्रकारिता को अलग-अलग शब्दों में
परिभाषित किए हैं। पत्रकारिता के स्वरूप को समझने के लिए यहाँ कुछ महत्वपूर्ण
परिभाषाओ का उल्लेख किया जा रहा है:-
पाश्चात्य
चिन्तन
1.
न्यू वेबस्टर्स
डिक्शनरी : प्रकाशन, सम्पादन, लेखन
एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।
2.
विल्वर श्रम : जनसंचार
माध्यम दुनिया का नक्शा बदल सकता है।
3.
सी.जी. मूलर : सामयिक
ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमे तथ्यो की प्राप्ति उनका मूल्यांकन एवं
ठीक-ठाक प्रस्तुतीकरण होता है।
4.
जेम्स मैकडोनल्ड : पत्रकारिता
को मैं रणभूमि से ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ। यह को पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची को
चीज है। यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को
स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया।
5.
विखेम स्टीड : मैं
समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा
भी । जब को यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगो का ज्ञान
बढ़ाना,
उनका मार्गदर्शन करना है, तब
तक से पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए, वह
पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता ।
इस प्रकार न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी में उस
माध्यम को जिसमें समाचार का प्रकाशन, संपादन एवं प्रसारण विषय से संबंधित को पत्रकारिता कहा गया
है। विल्वर श्रम का कहना है कि जनसंचार माध्यम उसे कहा जा सकता है जो व्यक्ति से
लेकर समूह तक और देश से लेकर विश्व तक को विचार, अर्थ, राजनीति और यहां तक कि संस्‟ति को भी
प्रभावित करने में सक्षम है। सीजी मूलर ने तथ्य एवं उसका मूल्यांकन के
प्रस्तुतीकरण और सामयिक ज्ञान से जुड़े व्यापार को पत्रकारिता के दायरे में रखते
हैं। जेम्स मैकडोनल्ड के विचार अनुसार पत्रकारिता दर्शन है जिसकी क्षमता युद्ध से
भी ताकवर हैं। विखेम स्टीड पत्रकारिता को कला, पेशा और जनसेवा का संगम मानते हैं।
भारतीय
चिन्तन
1.
हिन्दी शब्द सागर : पत्रकार
का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।
2.
डा. अर्जुन
: ज्ञान
आरै विचारो को समीक्षात्मक टिप्पणियो के साथ शब्द, ध्वनि
तथा चित्रो के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है
जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारो के कार्यों, कर्तव्यो
और लक्ष्यो का विवेचन हातेा है। पत्रकारिता समय के साथ साथ समाज की दिग्दर्शिका और
नियामिका है।
3.
रामकृष्ण रघुनाथ
खाडिलकर : ज्ञान
और विचार शब्दो तथा चित्रो के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकला है । छपने
वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारी नहीं है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का
आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी
समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख
उद्योग-धन्धो के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुरा, सुन्दर
छपा और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये
सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए ।
4.
डा.बद्रीनाथ : पत्रकारिता
पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित
करने,
प्रकाशन आदेश देने का कार्य है ।
5.
डा. शंकरदयाल : पत्रकारिता
एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारो को केवल घटनाओ
का विवरण ही पेशा नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने
उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने
और शांति एवं भाचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।
6.
इन्द्रविद्यावचस्पति
: पत्रकारिता
पांचवां वेद है,
जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना
बंद मस्तिष्क खोलते हैं ।
हिन्दी शब्द
सागर में पत्रकार के कार्य एवं उससे जुड़े व्यवसाय को पत्रकारिता कहा गया है। डा. अर्जुन के अनुसार ज्ञान और विचार को कलात्मक ढंग से
लोगो तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है। यह समाज का मार्गदर्शन भी करता है। इससे जुड़े
कार्य का तात्विक विवेचन करना ही पत्रकारिता विद्या है।
विश्व व भारत में पत्रकारिता का इतिहास
विश्व में पत्रकारिता का आरंभ सन 131-59 ईस्वी पूर्व रोम
में हुआ था। पहला दैनिक समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जूलियस सीजर को दिया जाता है। उनके पहले समाचार पत्र का नाम था "Acta Diurna" (एक्टा डाइएर्ना) (दिन की घटनाएं)। इसे इसे वास्तव में यह पत्थर की या धातु की
पट्टी होता था जिस पर समाचार अंकित होते थे। ये पट्टियां रोम के मुख्य स्थानों पर
रखी जाती थीं,
और इन में वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों की लड़ाइयों के परिणामों के
बारे में सूचनाएं मिलती थीं।
मध्यकाल में यूरोप के व्यापारिक केंद्रों में 'सूचना-पत्र'
निकलने लगे। उन में कारोबार, क्रय-विक्रय और मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के समाचार लिखे जाते थे। लेकिन
ये सारे ‘सूचना-पत्र ‘ हाथ से ही लिखे जाते थे। 1439 में
योहानेस गुटेनबर्ग ने धातु के अक्षरों से
छापने की मशीन का आविष्कार किया। उन्होंने
1450 के आस पास प्रथम मुद्रित पुस्तक ‘कांस्टेंन मिसल’ तथा एक बाइबिल भी छापी, जो 'गुटेनबर्ग बाइबल' के नाम से प्रसिद्ध है। इस के फलस्वरूप
किताबों का ही नहीं, अखबारों का भी प्रकाशन संभव हो गया।
16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में, योहन
कारोलूस नाम का कारोबारी धनवान ग्राहकों के लिये सूचना-पत्र लिखवा कर प्रकाशित
करता था। लेकिन हाथ से बहुत सी प्रतियों की नकल करने का काम महंगा भी था और धीमा
भी। तब वह छापे की मशीन ख़रीद कर 1605 में समाचार-पत्र छापने लगा। समाचार-पत्र का
नाम था ‘रिलेशन’। यह विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है।
भारत में पत्रकारिता का आरंभ:
भारत में समाचार पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के भारत
में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने
का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने
भारत की पहली पुस्तक छापी। छापे की पहली मशीन भारत में 1674 में पहुंचायी गयी थी।
1684 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत की पहली पुस्तक की छपाई की
थी। 1684 ई. में ही कम्पनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस (मुद्रणालय) की
स्थापना की। मगर भारत का पहला अख़बार इस के 100 साल बाद, 1776 (कहीं 1766 भी लिखा गया है) में प्रकाशित हुआ। इस का प्रकाशक ईस्ट इंडिया
कंपनी का भूतपूर्व अधिकारी विलेम बॉल्ट्स था। यह अख़बार स्वभावतः अंग्रेजी भाषा
में निकलता था तथा कंपनी व सरकार के समाचार फैलाता था।
हिकी'ज बंगाल गजट
भारत का सब से पहला
अख़बार,
29 जनवरी 1780 में कलकत्ता से शुरू हुआ जेम्स ओगस्टस हीकी
का अख़बार 'हिकी'ज बंगाल गजट' और 'दि
आरिजिनल कैलकटा जनरल एड्वरटाइजर' था।अख़बार में दो पन्ने थे, और इस में ईस्ट इंडिया कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों की व्यक्तिगत जीवन पर लेख
छपते थे। जब हीकी ने अपने अख़बार में गवर्नर की पत्नी का आक्षेप किया तो उसे 4
महीने के लिये जेल भेजा गया और 500 रुपये का जुरमाना लगा दिया गया। लेकिन हीकी ने
शासकों की आलोचना करने से परहेज नहीं किया। और जब उस ने गवर्नर और सर्वोच्च
न्यायाधीश की आलोचना की तो उस पर 5000 रुपये का जुरमाना लगाया गया और एक साल के
लिये जेल में डाला गया। इस तरह उस का अख़बार भी बंद हो गया।
इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन भी हुआ, जैसे- बंगाल में 'कलकत्ता कैरियर', 'एशियाटिक मिरर', 'ओरियंटल स्टार'; मद्रास में 'मद्रास कैरियर', 'मद्रास गजट';
बम्बई में 'हेराल्ड', 'बांबे गजट'
आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी 'जेम्स सिल्क बर्किघम' ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला
प्रकाशक था,
जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत
किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। हिक्की तथा
बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्ण स्थान है। 1790 के बाद भारत में
अंग्रेजी भाषा की और कुछ अख़बार स्थापित हुए जो अधिकतर शासन के मुखपत्र थे। पर
भारत में प्रकाशित होनेवाले समाचार-पत्र थोड़े-थोड़े दिनों तक ही जीवित रह सके।
1816 में पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र कलकत्ता में
गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था।
1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व में बंगाली भाषा में पहला
मासिक पत्र 'दिग्दर्शन' का प्रकाशन किया गया। जो भारतीय भाषा में पहला समाचार-पत्र भी था।
राजा राममोहन राय ने भारतीय भाषा (बंगाली) में पहले
साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘संवाद कौमुदी’ (बुद्धि का चांद) का 1819
में,
'समाचार चंद्रिका' का
मार्च 1822 में और अप्रैल 1822 में फ़ारसी भाषा में 'मिरातुल' अख़बार'
एवं अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल
मैगजीन'
का प्रकाशन किया।
1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक ‘मुंबईना समाचार’ प्रकाशित होने लगा, जो दस वर्ष बाद दैनिक हो गया और गुजराती के प्रमुख दैनिक के रूप में आज तक
विद्यमान है। भारतीय भाषा का यह सब से पुराना समाचार-पत्र है।
उदंत मार्तंड
1826 में कानपुर निवासी पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता
से ‘उदंत मार्तंड’ नाम से हिंदी के प्रथम समाचार-पत्र का
प्रकाशन प्रारंभ किया। यह साप्ताहिक पत्र 1827 तक चला और पैसे की कमी के कारण बंद
हो गया। इसके अंतिम अंक में लिखा है- उदन्त मार्तण्ड की यात्रा- मिति पौष बदी १
भौम संवत् १८८४ तारीख दिसम्बर सन् १८२७ ।
आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त
अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अन्त ।
गिल क्राइस्ट नाम ने अंग्रेज की भी कलकत्ता में हिंदी का
श्रीगणेश करने वाले विद्वानों में गिनती की जाती हैं।
1830 में राजा राममोहन राय ने द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न
कुमार टैगोर के साथ बड़ा हिंदी साप्ताहिक ‘बंगदूत’ का कोलकाता से प्रकाशन शुरू किया। वैसे यह बहुभाषीय पत्र था, जो अंग्रेजी, बंगला, हिंदी और फारसी में निकलता था। बम्बई से 1831 ई. में गुजराती भाषा में 'जामे जमशेद'
तथा 1851 ई. में 'रास्त गोफ़्तार' एवं 'अख़बारे सौदागार' का प्रकाशन हुआ।
1833 में भारत में 20 समाचार-पत्र थे, 1850 में 28 हो गए, और 1953 में 35 हो गये। इस
तरह अख़बारों की संख्या तो बढ़ी, पर नाममात्र को ही बढ़ी।
बहुत से पत्र जल्द ही बंद हो गये। उन की जगह नये निकले। प्रायः समाचार-पत्र कई
महीनों से ले कर दो-तीन साल तक जीवित रहे।
उस समय भारतीय समाचार-पत्रों की समस्याएं समान थीं। वे नया
ज्ञान अपने पाठकों को देना चाहते थे और उसके साथ समाज-सुधार की भावना भी थी।
सामाजिक सुधारों को लेकर नये और पुराने विचारवालों में अंतर भी होते थे। इस के
कारण नये-नये पत्र निकले। उन के सामने यह समस्या भी थी कि अपने पाठकों को किस भाषा
में समाचार और विचार दें। समस्या थी-भाषा शुद्ध हो या सब के लिये सुलभ हो? 1846 में राजा शिव प्रसाद ने हिंदी पत्र ‘बनारस
अख़बार’
का प्रकाशन शुरू किया। राजा शिव प्रसाद शुद्ध हिंदी का
प्रचार करते थे और अपने पत्र के पृष्ठों पर उन लोगों की कड़ी आलोचना की जो बोल-चाल
की हिंदुस्तानी के पक्ष में थे। लेकिन उसी समय के हिंदी लखक भारतेंदु हरिशचंद्र ने
ऐसी रचनाएं रचीं जिन की भाषा समृद्ध भी थी और सरल भी। इस तरह उन्होंने आधुनिक
हिंदी की नींव रखी है और हिंदी के भविष्य के बारे में हो रहे विवाद को समाप्त कर
दिया। 1868 में भरतेंदु हरिशचंद्र ने साहित्यिक पत्रिका ‘कविवच
सुधा’
निकालना प्रारंभ किया। 1854 में हिंदी का पहला दैनिक समाचार
पत्र 'सुधा वर्षण’
निकला।१८६८ में देश का पहला सांध्य समाचार पत्र 'मद्रास मेल'
शुरू हुआ।
प्रतिबंध
समाचार पत्र पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 1799 में
लॉर्ड वेलेज़ली द्वारा पत्रों का 'पत्रेक्षण अधिनियम' और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई. में 'अनुज्ञप्ति नियम' लागू किये गये। इनके कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो
गया।लॉर्ड विलियम बैंटिक प्रथम गवर्नर-जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। कार्यवाहक
गर्वनर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ ने 1823 के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार पत्रों को
मुक्ति दिलवाई। यही कारण है कि उसे 'समाचार पत्रों का
मुक्तिदाता'
भी कहा जाता है। लॉर्ड मैकाले ने भी प्रेस की स्वतंत्रता का
समर्थन किया। 1857-1858 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार
के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार पत्रों एवं भारतीय
समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को
भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजी और भाषाई पत्रकारिता
की भूमिका
जेम्स अगस्टन हिक्की ने 29 जनवरी 1780 में पहला भारतीय
समाचार पत्र बंगाल गजट कलकत्ता से अंग्रजी में निकाला। इसका आदर्श वाक्य था - सभी
के लिये खुला फिर भी किसी से प्रभावित नहीं ।
अपने निर्भीक आचरण और विवेक पर अड़े रहने के कारण हिक्की को
इस्ट इंडिया कंपनी का कोपभाजन बनना पड़ा। हेस्टिंगस सरकार की शासन शैली की कटू
आलोचना का पुरस्कार हिक्की को जेल यातना के रूप में मिली। हिक्की ने अपना उद्देश्य
ही घोषित किया था - अपने मन और आत्मा की स्वतंत्रता के लिये अपने शरीर को बंधन में
डालने में मुझे मजा आता है। समाचार पत्र की शुरूआत विद्रोह की घोषणा से हुई।
हिक्की भारत के प्रथम पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की
स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया।
उत्तरी अमेरिका निवासी विलियम हुआनी ने हिक्की की परंपरा को
समृद्ध किया। 1765 में प्रकाशित बंगाल जनरल जो सरकार समर्थक था 1791 में हुमानी के
संपादक बन जाने के बाद सरकार की आलोचना करने लगा। हुमानी की आक्रामक मुद्रा से
आतंकित होकर सरकार ने उसे भारत से निष्कासित कर दिया।
जेम्स बंकिघम को प्रेस की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता
था। उन्होंने 2 अक्टूबर 1818 को कलकत्ता से अंग्रजी का 'कैलकटा
जनरल'
प्रकाशित किया। जो सरकारी नीतियों का निर्भीक आलोचक था।
पंडित अंबिकाप्रशाद ने लिखा कि इस पत्र की स्वतंत्रता व उदारता पहले किसी पत्र में
नही देखी गयी। कैलकटा जनरल उस समय के एंग्लोइंडियन पत्रों को प्रचार प्रसार में
पीछे छोड़ दिया था। एक रूपये मूल्य के इस अखबार का दो वर्ष में सदस्य संख्या एक
हजार से अधिक हो गयी थी।सन् 1823 में उन्हें देश निकाला दे दिया गया। हालांकि
इंगलैंड जाकर उन्होंने आरियंटल हेराल्ड निकाला जिसमें वह भारतीय समस्याओं और कंपनी
के हाथों में भारत का शासन बनाये रखने के खिलाफ लगातार अभियान चलाता रहा।
1861 के इंडियन कांउसिल एक्ट के बाद समाज के उपरी तबकों में
उभरी राजनीतिक चेतना से भारतीय व गैरभारतीय दोनों भाषा के पत्रों की संख्या
बढ़ी। 1861 में बंबई में टाइम्स आफ इंडिया
की 1865 में इलाहाबाद में पायनियर 1868 में मद्रास मेल की 1875 में कलकत्ता
स्टेटसमैन की और 1876 में लाहौर में सिविल ऐंड मिलटरी गजट की स्थापना हुई। ये सभी
अंग्रेजी दैनिक ब्रिटिश शासनकाल में जारी रहे।
टाइम्स आफ इंडिया ने प्रायः ब्रिटिश सरकार की नीतियों का
समर्थन किया। पायोनियर ने भूस्वामी और महाजनी तत्वों का पक्ष तो मद्रास मेल
यूरोपीय वाणिज्य समुदाय का पक्षधर था। स्टेटसमैन ने सरकार और भारतीय
राष्ट्रवादियों दोनों का ही आलोचना की थी। सिविल एण्ड मिलिटरी गजट ब्रिटिश
दाकियानूसी विचारों का पत्र था। स्टेटसमैन, टाइम्स आफ इंडिया, सिविल एंड मिलिटरी गजट, पायनियर और मद्रास मेल जैसे प्रसिद्ध पत्र अंग्रेजी सरकार और शासन की नीतियों
एवं कार्यक्रम का समर्थन करते थे।
अमृत बाजार पत्रिका, बांबे क्रानिकल, बांबे सेंटिनल, हिन्दुस्तान टाइम्स, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड, फ्री प्रेस जनरल, नेशनल हेराल्ड व नेशनल काल अंग्रेजी
में छपने वाले लक्ष्य प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी दैनिक और साप्ताहिक पत्र थे। हिन्दू
लीडर,
इंडियन सोशल रिफार्मर व माडर्न रिव्यू उदारपंथी राष्ट्रीयता
की भावना को अभिव्यक्ति देते थे।
इंडियन नेशनल कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों को
राष्ट्रीय पत्रों ने पूर्ण और उदारपंथी पत्रों ने आलोचनात्मक समर्थन दिया था। डान
मुस्लिम लीग के विचारों का पोषक था। देश के विद्यार्थी संगठनों के अपने पत्र थे
जैसे स्टूडेंट और साथी। भारत के राष्ट्रीय नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 1874 में
बंगाली ( अंग्रेजी ) पत्र का प्रकाशन व संपादन किया। इसमें छपे एक लेख के लिये उन
पर न्यायालय की अवज्ञा का अभियोग लगाया गया था। उन्हें दो महीने के कारावास की सजा
मिली थी। बंगाली ने भारतीय राजनीतिक विचारधारा के उदारवादी दल के विचारों का
प्रचार किया था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की राय पर दयाल सिंह मजीठिया ने 1877 में
लाहौर में अंग्रेजी दैनिक ट्रिब्यून की स्थापना की। पंजाब की उदारवादी राष्ट्रीय
विचारधारा का यह प्रभावशाली पत्र था।
लार्ड लिटन के प्रशासनकाल में कुछ सरकारी कामों के चलते
जनता की भावनाओं को चोट पहुंची, जिससे राजनीतिक असंतोष
बढ़ा और अखबारों की संख्या में वृद्धि हुई। 1878 में मद्रास में वीर राधवाचारी और
अन्य देशभक्त भारतीयों ने अंग्रेजी सप्ताहिक हिन्दू की स्थापना की। 1889 से यह
दैनिक हुआ। हिन्दू का दृष्टिकोण उदारवादी था। लेकिन इसने इंडियन नेशनल कांग्रेस की
राजनीति की आलोचना के साथ ही उसका समर्थन भी किया। राष्ट्रीय चेतना का समाज सुधार
के क्षेत्र में भी प्रसार हुआ। बंबई में
1890 में इंडियन सोशल रिफार्मर अंग्रेजी साप्ताहिक की स्थापना हुई। समाज सुधार ही
इसका मुख्य लक्ष्य था।
1899 में सच्चिदानंद सिन्हा ने अंग्रेजी मासिक हिन्दुस्तान
रिव्यू की स्थापना की। इस पत्र का राजनैतिक और वैचारिक दृष्टिकोण उदारवादी था।
1900 के बाद
1900 में जी ए नटेशन ने मद्रास से इंडियन रिव्यू का और 1907
में कलकत्ता से रामानन्द चटर्जी ने मॉडर्न रिव्यू का प्रकाशन शुरू किया।
मॉडर्न रिव्यू देश का सबसे अधिक विख्यात अंग्रेजी मासिक
सिद्ध हुआ। इसमें सामाजिक राजनीतिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विषयों पर लेख निकलते थे
और अंतराष्ट्रीय घटनाओं के विषय में भी काम की खबरें होती थी। इसने इंडियन नेशनल
कांग्रेस में प्रायः दक्षिणपंथियों का समर्थन किया।
1913 में बी जी हार्नीमन के संपादकत्व में फिरोजशाह मेहता
ने बांबे क्रानिकल निकाला।
1918 में सर्वेंटस आफ इंडिया सोसाइटी ने श्रीनिवास शास्त्री
के संपादकत्व में अपना मुखपत्र सर्वेंट आफ इंडिया निकालना शुरू किया। इसने
उदारवादी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देश की समस्याओं का विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत
किया। 1939 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
1919 में गांधी ने यंग इंडिया का संपादन किया और इसके
माध्यम से अपने राजनीतिक दर्शन कार्यक्रम और नीतियों का प्रचार किया। 1933 के बाद
उन्होंने हरिजन ( बहुत सी भाषाओं में प्रकाशित साप्ताहिक ) का भी प्रकाशन शुरू
किया।
पंडित मोतीलाल नेहरू ने 1919 में इलाहाबाद से इंडीपेंडेंट (
अंग्रेजी दैनिक ) का प्रकाशन शुरू किया।
स्वराज पार्टी के नेता ने दल के कार्यक्रम के प्रचार के
लिये 1922 में दिल्ली में के एम पन्नीकर के संपादकत्व में हिन्दुस्तान टाइम्स (
अंग्रेजी दैनिक ) का प्रकाशन शुरू किया। इसी काल में लाला लाजपत राय के फलस्वरूप
लाहौर से अंग्रेजी राष्ट्रवादी दैनिक प्यूपल का प्रकाशन शुरू किया गया।
1923 के बाद धीरे -
धीरे समाजवादी,
साम्यवादी विचार भारत में फैलने लगे। वर्कर्स एंड प्लेसंट
पार्टी आफ इंडिया का एक मुखपत्र मराठी साप्ताहिक क्रांति था। मर्ट कांसपीरेसी केस
के एम जी देसाई और लेस्टर हचिंसन के संपादकत्व में क्रमशः स्पार्क और न्यू स्पार्क
( अंग्रेजी साप्ताहिक ) प्रकाशित हुआ। मार्क्सवाद का प्रचार करना और राष्ट्रीय
स्वतंत्रता एवं किसानों मजदूरों के स्वतंत्र राजनीतिक आर्थिक संघर्षों को समर्थन
प्रदान करना इनका उद्देश्य था।
1930 और 1939 के बीच मजदूरों किसानों के आंदोलनों का
विस्तार हुआ और उनकी ताकत बढ़ी। कांग्रेस के नौजवानों के बीच समाजवादी साम्यवादी
विचार विकसित हुए। इस तरह स्थापित कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने आधिकारिक पत्र के
रूप में कांग्रेस सोशलिस्ट का प्रकाशन किया।
कम्युनिस्ट के प्रमुख पत्र नेश्नल फ्रंट और बाद में
प्युपलस् वार थे। ये दोनों अंग्रेजी सप्ताहिक पत्र थे।
एम एन रॉय के विचार अधिकारिक साम्यवाद से भिन्न थे।
उन्होंने अपना अलग दल कायम किया जिसका मुखपत्र था इंडीपेंडेंट इंडिया।
राजा राममोहन राय
राजा राममोहन राय ने सन् 1821 में बंगाली पत्र संवाद कौमुदी
को कलकत्ता से प्रकाशित किया। 1822 में फारसी भाषा का पत्र मिरात उल अखबार और
अंग्रेजी भाषा में ब्रेहेनिकल मैगजीन निकाला।
राजा राममोहन राय ने अंग्रेजी में बंगला हेराल्ड निकाला।
कलकत्ता से 1829 में बंगदूत प्रकाशित किया जो बंगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषाओं
में छपता था।
संवाद कौमुदी और मिरात उल अखबार भारत में स्पष्ट प्रगतिशील
राष्ट्रीय और जनतांत्रिक प्रवृति के सबसे पहले प्रकाशन थे। ये समाज सुधार के
प्रचार और धार्मिक-दार्शनिक समस्याओं पर आलोचनात्मक वाद-विवाद के मुख्य पत्र थे।
राजा राममोहन राय की इन सभी पत्रों के प्रकाशन के पीछे मूल
भावना यह थी ... मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि जनता के सामने ऐसे बौध्दिक निबंध
उपस्थित करूं जो उनके अनुभव को बढ़ावें और सामाजिक प्रगति में सहायक सिध्द हो। मैं
अपनी शक्ति भर शासकों को उनकी प्रजा की परिस्थितियों का सही परिचय देना चाहता हूं
और प्रजा को उनके शासकों द्वारा स्थापित विधि व्यवस्था से परिचित कराना चाहता हूं
ताकि जनता को शासन अधिकाधिक सुविधा दे सके। जनता उन उपायो से अवगत हो सके जिनके
द्वारा शासकों से सुरक्षा पायी जा सके और अपनी उचित मांगें पूरी करायी जा सके।
दिसंबर 1823 में राजा राममोहन राय ने लार्ड एमहस्ट को पत्र
लिखकर अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार हेतु व्यवस्था करने का अनुरोध किया ताकि अंग्रेजी
को अपनाकर भारतवासी विश्व की गतिविधियों से अवगत हो सके और मुक्ति का महत्व समझे।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
विष्णु शास्त्री चिपलणकर और लोकमान्य तिलक ने मिलकर 1 जनवरी
1881 से मराठी में केसरी और अंग्रेजी में मराठा साप्ताहिक पत्र निकाले।
तिलक और उनके साथियों ने पत्र दृ प्रकाशन की उदघोषणा में
कहा - हमारा दृढ़ निश्चय है कि हम हर विषय पर निष्पक्ष ढंग से तथा हमारे दृष्टिकोण
से जो सत्य होगा उसका विवेचन करेंगे। निःसंदेह आज भारत में ब्रिटिश शान में
चाटुकारिता की प्रवृति बढ़ रही है। सभी ईमानदार लोग यह स्वीकार करेंगे कि यह
प्रवृति अवांछनीय तथा जनता के हितों के विरूद्ध है। इस प्रस्तावित समाचारपत्र
(केसरी) में जो लेख छपेंगे वे इनके नाम के ही अनुरूप होंगे।
केसरी और मराठा ने महाराष्ट्र में जनचेतना फैलाई तथा
राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णिम योगदान दिया। उन्होंने भारतीय
जनता को दीन दृ हीन व दब्बू पक्ष की प्रवृति से उठ कर साहसी निडर व देश के प्रति
समर्पित होने का पाठ पढ़ाया। बस एक ही बात उभर कर आती थी -स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध
अधिकार है।
सन् 1896 में भारी आकाल पड़ा जिसमें हजारों लोगों की मौत
हुई। बंबई में इसी समय प्लेग की महामारी फैली। अंग्रज सरकार ने स्थिति संभालने के
लिये सेना बुलायी। सेना घर दृ घर तलाशी लेना शुरू कर दिया जिससे जनता में क्रोध
पैदा हो गया। तिलक ने इस मनमाने व्यवहार व लापरवाही से क्षुब्ध होकर केसरी के माध्यम से सरकार
की कड़ी आलोचना की। केसरी में उनके लिखे लेख के कारण उन्हें 18 महीने कारावास की
सजा दी गयी।
महात्मा गांधी
गांधीजी ने 4 जून 1903 में इंडियन ओपिनियन साप्ताहिक पत्र
का प्रकाशन किया। जिसके एक ही अंक से अंग्रेजी हिन्दी तमिल गुजराती भाषा में छः
कॉलम प्रकाशित होते थे। उस समय गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में रहते थे।
अंग्रेजी में यंग इंडिया और जुलाई 1919 से हिन्दी - गुजराती
में नवजीवन का प्रकाशन आरंभ किया।
इन पत्रों के माध्यम से अपने विचारों को जनमानस तक
पहुंचाया। उनके व्यक्तित्व ने जनता पर जादू सा कर दिया था। उनकी आवाज पर लोग मर -
मिटने को तैयार हो गये।
इन पत्रों में प्रति सप्ताह महात्मा गांधी के विचार
प्रकाशित होते थे। ब्रिटिश शासन द्वारा पारित कानूनों के कारण जनमत के अभाव में ये
पत्र बंद हो गये। बाद में उन्होंने अंग्रेजी में हरिजन और हिन्दी में हरिजन सेवक
तथा गुजराती में हरिबन्धु का प्रकाशन किया तथा ये पत्र स्वतंत्रता तक छापते रहे।
अमृत बाजार पत्रिका
सन् 1868 में बंगाल के छोटे से गांव अमृत बाजार से
हेमेन्द्र कुमार घोष, शिशिर कुमार घोष और मोतीलाल घोष के
संयुक्त प्रयास से एक बांगला साप्ताहिक पत्र अमृत बाजार पत्रिका शुरू हुआ। बाद में
कलकत्ता से यह बांगला और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में छपने लगी।
1878 के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिये इसे
पूर्णतः अंग्रेजी साप्ताहिक बना दिया गया। सन् 1891 में अंग्रेजी दैनिक के रूप में
इसका प्रकाशन शुरु हुआ।
अमृत बाजार पत्रिका ने तगड़े राष्ट्रीय विचारों का प्रचार
किया और यह अत्याधिक लोकप्रिय राष्ट्रवादी पत्र रहा है। सरकारी नीतियों की कटू
आलोचना के कारण इस पत्र का दमन भी हुआ। इसके कई संपादकों को जेल की भी सजा भुगतनी
पड़ी।
जब ब्रिटिश सरकार ने धोखे से कश्मीर मे राजा प्रताप सिंह को
गद्दी से हटा दिया और कश्मीर को अपने कब्जे में लेना चाहा तो इस पत्रिका ने इतना
तीव्र विरोध किया कि सरकार को राजा प्रताप सिंह को राज्य लौटाना पड़ा।
पयामे आजादी
स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी
1857 को दिल्ली से पयामे आजादी पत्र प्रारंभ किया। शोले की तरह अपनी प्रखर व
तेजस्वनी वाणी से जनता में स्वतंत्रता की भावना भर दी। अल्पकाल तक जीवित रहे इस
पत्र से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने इसे बंद कराने में कोई कसर नही छोड़ी।
पयामे आजादी पत्र से अंग्रेज सरकार इतनी आतंकित हुई कि जिस
किसी के पास भी इस पत्र की कॉपी पायी जाती उसे गद्दार और विद्रोही समझ कर गोली से
उड़ा दिया गया। अन्य को सरकारी यातनायें झेलनी पड़ती थी। इसकी प्रतियां जब्त कर ली
गयी फिर भी इसने जन दृ जागृति फैलाना जारी रखा।
युगांतर
जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है - जहां तक क्रांतिकारी
आंदोलन का संबंध है भारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही
समाचारपत्रों से शुरु हुआ।
वारिन्द्र घोष का पत्र युगांतर वास्तव में युगान्तरकारी
पत्र था। कोई जान नही पाता था कि इस पत्र का संपादक कौन है। अनेक व्यक्तियों ने
ससमय अपने आपको पत्र का संपादक घोषित किया और जेल गये। दमनकारी कानून बनाकर पत्र
को बंद किया गया।
चीफ जस्टिस सर लारेंस जैनिकसन ने इस पत्र की विचारधारा के
बारे में लिखा था- इसकी हर एक पंक्ति से अंग्रेजों के विरुध्द द्वेष टपकता है।
प्रत्येक शब्द में क्रांति के लिये उत्तेजना झलकती है।
युगांतर के एक अंक में तो बम कैसे बनाया जाता है यह भी
बताया गया था। सन् 1909 में इसका जो अंतिम अंक प्रकाशित हुआ उस पर इसका मुल्य था-
फिरंगदि कांचा माथा ( फिरंगी का तुरंत कटा हुआ सिर )
एक से अधिक भाषा वाले भाषाई पत्र
हिन्दु मुसलमान दोनों सांप्रदायिकता के खतरे को समझते थे।
उन्हें पता था कि साम्प्रदायिकता साम्राज्यवादियों का एक कारगर हथियार है।
पत्रकारिता के माध्यम से सामप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ लड़ाई तेज की गयी थी। भाषाई
पृथकतावाद के खतरे को देखते हुए एक से अधिक भाषाओं में पत्र निकाले जाते थे।
जिसमें द्विभाषी पत्रों की संख्या अधिक थी।
हिन्दी और उर्दू पत्र
मजहरुल सरुर, भरतपुर 1850, पयामे आजादी, दिल्ली 1857, ज्ञान प्रदायिनी, लाहौर 1866, जबलपुर समाचार, प्रयाग 1868, सरिश्ते तालीम, लखनऊ 1883, रादपूताना गजट, अजमेर 1884, बुंदेलखंड अखबार, ललितपुर 1870, सर्वाहित कारक, आगरा 1865, खैर ख्वाहे हिन्द, मिर्जापुर 1865, जगत समाचार,
प्रयाग 1868, जगत आशना, आगरा 1873,
हिन्दुस्तानी, लखनऊ
1883,
परचा धर्मसभा, फर्रुखाबाद
1889,
समाचार सुधा वर्षण, हिन्दी और बांगला, कलकत्ता 1854, हिन्दी प्रकाश, हिन्दी उर्दू गुरुमुखी, अमृतसर 1873, मर्यादा परिपाटी समाचार, संस्कृत हिन्दी, आगरा 1873
1846 में कलकत्ता से प्रकाशित इंडियन सन् भी हिन्दु हेरोल्ड
की भांति पांच भाषाओं हिन्दी फारसी अंग्रेजी बांगला और उर्दू में निकलता था।
1870 में नागपुर से हिन्दी उर्दू मराठी में नागपुर गजट
प्रकाशित होता था।
बंगदूत बांगला फारसी हिन्दी अंग्रेजी भाषओं में छपता था।
गुजराती
बंबई में देशी प्रेस के प्रणेता फरदून जी मर्जबान 1822 में
गुजराती में बांबे समाचार शुरु किया जो आज भी दैनिक पत्र के रुप में निकलता है।
1851 में बंबई में गुजराती के दो और पत्रों रस्त गोफ्तार और
अखबारे सौदागर की स्थापना हुई। दादाभाई नौरोजी ने रस्त गोफ्तार का संपादन किया। यह
गुजराती भाषा का प्रभावशाली पत्र था।
1831 में बंबई से पी एम मोतीबाला ने गुजराती पत्र जामे
जमशेद शुरु किया
मराठी
सूर्याजी कृष्णजी के संपादन में 1840 में मराठी का पहला
पत्र मुंबई समाचार शुरु हुआ।
1842 में कृष्णजी तिम्बकजी रानाडे ने पूना से ज्ञान प्रकाश
पत्र प्रकाशित किया।
1879-80 में बुरहारनपुर से मराठी साप्ताहिक पत्र सुबोध
सिंधु का प्रकाशन लक्ष्मण अनन्त प्रयागी द्वारा होता था।
मध्य भारत में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का विकास मराठी पत्रों
के सहारे ही हुआ था।
हिन्दी पत्रकारिता
हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी
है। हिन्दी पत्रकारिता के आदि उन्नायक जातीय चेतना, युगबोध और अपने महत् दायित्व के प्रति पूर्ण सचेत थे। कदाचित् इसलिए विदेशी
सरकार की दमन-नीति का उन्हें शिकार होना पड़ा था, उसके नृशंस व्यवहार की यातना झेलनी पड़ी थी। उन्नीसवीं शताब्दी में हिन्दी
गद्य-निर्माण की चेष्ठा और हिन्दी-प्रचार आन्दोलन अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों
में भयंकर कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कितना तेज और पुष्ट था इसका साक्ष्य ‘भारतमित्र’
(सन् 1878 ई, में) ‘सार सुधानिधि’ (सन् 1879 ई.) और ‘उचितवक्ता’
(सन् 1880 ई.) के जीर्ण पृष्ठों पर मुखर है। हिन्दी
पत्रकारिता में अंग्रेजी पत्रकारिता के दबदबे को खत्म कर दिया है। पहले देश-विदेश
में अंग्रेजी पत्रकारिता का दबदबा था लेकिन आज हिन्दी भाषा का परचम चंहुदिश फैल
रहा है।
हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ
हिन्दी के साप्ताहिक पत्रों में साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्म-युग,
दिनमान, रविवार एवं सहारा समय
प्रमुख हैं। हिन्दुस्तान का सम्पादन, सम्पादिका
मृणाल पाण्डेय जी ने किया एवं धर्मयुग का सर्वप्रथम सम्पादन डॉ. धर्मवीर भारती जी
ने किया। धर्मयुग ने जन सामान्य में अपनी लोकप्रियता इतनी बना रखी थी कि हर
प्रबुद्ध पाठक वर्ग के ड्राइंग रूप में इसका पाया जाना गर्व की बात माने जाने लगी
थी। कुछ दिनों तक गणेश मंत्री (बम्बई) ने भी इसका सम्पादन किया। कुछ आर्थिक एवं
आपसी कमियों के अभाव के कारण इसका सम्पादन कार्य रूक गया। दिनमान´ का सम्पादन घनश्याम पंकज जी कर रहे थे साथ ही रविवार का सम्पादन उदय शर्मा के
निर्देशन में आकर्षक ढंग से हो रहा था। इसी समय व्यंग्य के क्षेत्र में 'हिन्दी शंकर्स वीकली´ का सम्पादन हो रहा था। 'वामा´
हिन्दी की मासिक पत्रिका महिलापयोगी का सम्पादन विमला पाटिल
के निर्देशन में हो रहा था। इण्डिया टुडे´ पहले पाक्षिक थी, परन्तु आज यही साप्ताहिक रूप में अपनी
ख्याति बनाये हुये है। अन्य मासिक पत्रिकाओं में 'कल्पना´, 'अजन्ता´,
'पराग´, 'नन्दन´, 'स्पतुनिक´,
'माध्यम´, 'यूनेस्को दूत´, 'नवनीत (डाइजेस्ट)´, 'ज्ञानोदय´, 'कादम्बिनी´,
'अछूते´, 'सन्दर्भ´, 'आखिर क्यों´,
'यूथ इण्डिया´, 'जन सम्मान´, 'अम्बेडकर इन इण्डिया´, 'राष्ट्रभाषा-विवरण
पत्रिका´,
'पर्यावरण´, 'डाइजेस्ट आखिर कब
तक?´,
'वार्तावाहक´ आदि अनेक महत्वपूर्ण
पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है।
पत्रकारिता के तत्व
द एलीमेंट्स ऑफ जर्नलिज्म के अनुसार, बिल कोवाच और टॉम रोसेनस्टियल की एक पुस्तक, पत्रकारिता के नौ तत्व हैं। एक पत्रकार को लोगों को जानकारी प्रदान करने के
अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए, उन्हें स्वतंत्र और
स्व-शासन करने की आवश्यकता है। उन्हें इन दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए:
1. पत्रकारिता का पहला दायित्व सत्य का है।
2. नागरिकों के प्रति इसकी पहली निष्ठा है।
3. इसका सार सत्यापन का अनुशासन है।
4. इसके चिकित्सकों को उन लोगों से एक स्वतंत्रता बनाए रखना
चाहिए जो वे कवर करते हैं।
5. इसे सत्ता की स्वतंत्र निगरानी के रूप में काम करना
चाहिए।
6. इसे सार्वजनिक आलोचना और समझौता के लिए एक मंच प्रदान
करना चाहिए।
7. यह महत्वपूर्ण, और
प्रासंगिक बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
8. यह समाचार को व्यापक और आनुपातिक रखना चाहिए।
9. इसके चिकित्सकों को अपने व्यक्तिगत विवेक का उपयोग करने
की अनुमति दी जानी चाहिए।
10. नागरिकों के अधिकार और उत्तरदायित्व।
समाज में मीडिया की भूमिका
मीडिया हमारे समाज का प्रतिबिंब है और इसमें दर्शाया गया है
कि समाज क्या और कैसे काम करता है। मीडिया, या तो यह मुद्रित है, इलेक्ट्रॉनिक या वेब
एकमात्र माध्यम है, जो लोगों को सूचित करने में मदद करता
है। यह जनता का मनोरंजन करने, शिक्षित करने और वर्तमान
घटनाओं से लोगों को अवगत कराने में भी मदद करता है। मीडिया आज हमारे समाज की आवाज
बन गया है। मीडिया मंच की एक किस्म है जिसने युवा पीढ़ी और हमारे समाज के अन्य
वर्गों के विचारों को और अधिक स्पष्ट रूप से उत्तेजित किया है।
एक मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारियां
एक मीडिया का मुख्य कर्तव्य दुनिया भर के दुभाषिए के रूप
में कार्य करना है। पत्रकार घटनाओं को देखता है, घटना के बारे में तथ्यों को प्रसारित करता है और इन घटनाओं और घटनाओं के
दुभाषिए के रूप में कार्य करता है। एक पत्रकार / मीडिया निम्नलिखित भूमिकाएँ करता
है:
1. समकालीन दुनिया के लोगों को जागरूक करें।
2. दर्शकों को सूचित और शिक्षित करना।
3. कला और संस्कृति को बढ़ावा देना।
4. द्रव्यमान का मनोरंजन करें।
5. निर्णय लेने में लोगों की मदद करें।
6. लोगों को ज्वलंत मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाएं।
7. अच्छे नैतिक मूल्यों को स्थापित करना।
8. लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करें।
9. अतीत और वर्तमान के तुलनात्मक अध्ययन और भविष्य की
भविष्यवाणी करने में लोगों की मदद करें।
मीडिया के मुख्य कार्य
हमारे जैसे समाज में, मास मीडिया नीचे सूचीबद्ध कार्यों के माध्यम से लोकतंत्र, बहुलता और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
है।
1. सूचना और शिक्षा।
2. समाजीकरण
3. मनोरंजन
4. राजनीतिक जागरूकता
5. सांस्कृतिक संचरण
6. विकास के लिए उत्प्रेरक
सूचना और शिक्षा कार्य
मीडिया बहुत सारी जानकारी ले जाता है जो हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन के लिए
आवश्यक है। हमें बड़े मीडिया से परीक्षा परिणाम, मौसम पूर्वानुमान, करंट अफेयर्स, ट्रैफिक नियम, अलर्ट, सावधानियां,
सरकारी नीतियां आदि मिलती हैं। मीडिया के सूचना समारोह का मूल
समाचार कहे जाने वाले मीडिया सामग्री द्वारा किया जाता है। अच्छी मीडिया, पक्षपाती या अधूरी रिपोर्ट के बाद सटीक, वस्तुनिष्ठ और पूरी जानकारी रखने की कोशिश करती है, जो दर्शकों को मीडिया से दूर रखेगी।
मीडिया बड़े पैमाने पर शिक्षक भी हैं। शिक्षा
पूर्वनिर्धारित उद्देश्यों के साथ व्यवस्थित रूप से सूचना है। स्कूल और कॉलेज
हमारे समाज में औपचारिक शिक्षा के प्राथमिक स्रोत हैं। अपनी औपचारिक शिक्षा समाप्त
करने के बाद,
समाज के सदस्य जीवन भर की शिक्षा के लिए जनसंचार माध्यमों
पर निर्भर होते हैं। वे न्यूनतम लागत पर विभिन्न प्रकार के विषयों पर अद्यतन
शैक्षिक सामग्री के साथ समाज प्रदान करते हैं।
समाजीकरण
समाजीकरण के लिए एक एजेंसी के रूप में मास मीडिया कार्य
करता है। समाजीकरण का अर्थ है लोगों को समग्र रूप से समूह के अनुभवों और अनुभवों
को हासिल करना,
सांस्कृतिक सहमति और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना। यह मास
मीडिया के माध्यम से है कि हम अपने समाज में विभिन्न समूहों के सांस्कृतिक और
सामाजिक मानदंडों को जानते हैं। इस जानकारी के आधार पर, व्यक्ति दूसरों का सम्मान करते हैं और सामान्य मूल्यों के अनुसार व्यवहार करते
हैं और इस प्रकार एक एकीकृत समाज का निर्माण करते हैं।
मनोरंजन
हम सभी को अपने व्यस्त, तनावपूर्ण जीवन की एकरसता को तोड़ने और परेशानियों और तनावों से अपना ध्यान
हटाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता है। सभी मीडिया में मनोरंजन सामग्री है। समाचार
पत्र कार्टून,
कॉमिक्स, पहेलियाँ और विशेष सप्ताहांत
की खुराक प्रकाशित करते हैं। लघु कथाएँ, उपन्यास, व्यंग्य और कॉमिक्स जैसी पत्रिका सामग्री के शेर का हिस्सा भी दर्शकों का
मनोरंजन करना है। मनोरंजन के लिए फिल्में एक और बड़ा स्टॉक हैं। टेलीविजन और
रेडियो जैसे प्रसारण मीडिया मुख्य रूप से खेल, फिल्म,
धारावाहिक, संगीत, नृत्य,
कॉमेडी, एनीमेशन और फैशन शो के
आधार पर अपने कार्यक्रमों के माध्यम से मनोरंजन समारोह पर ध्यान केंद्रित करते
हैं। आजकल,
मनोरंजन एक बड़ा उद्योग बन गया है जिसमें मोशन पिक्चर
कंपनियों,
संगीत फर्मों, थिएटर
समूहों और गेम डेवलपर्स शामिल हैं।
राजनीतिक कार्य
यदि आप मास मीडिया का विश्लेषण करते हैं, तो यह टेलीविजन हो या समाचार पत्र, उनकी
अधिकांश सामग्री, विशेष रूप से समाचार, हमारे समाज में राजनीति पर केंद्रित है। हम देखते हैं कि हमारे नेता
अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं की आलोचना करते हैं और टेलीविजन पर पैनल चर्चा के
दौरान बेहतर रहने की स्थिति की वकालत करते हैं। इसी तरह, पत्रकार भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं, विकास दिखाते हैं, और उनकी खूबियों को देखते हुए राजनीतिक
गतिविधियों की निंदा या प्रशंसा करते हैं। दरअसल, मीडिया की ये हरकतें हमारे लोकतंत्र को जीवंत बनाती हैं। इस प्रकार जन मीडिया
विभिन्न मुद्दों पर जनता की राय बनाकर पूरी राजनीतिक व्यवस्था और नीति निर्माण के
एजेंडे को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रक्रिया को एजेंडा
सेटिंग फंक्शन कहा जाता है। मास मीडिया कुछ मुद्दों को उजागर करके और दूसरों से
बचकर ऐसा करता है। ऐसे उदाहरण हैं जिनमें व्यवसायी टाइकून और राजनीतिक नेता अपने
निहित स्वार्थों को रखने के लिए मीडिया की इस एजेंडा सेटिंग क्षमता का दुरुपयोग
करते हैं।
सांस्कृतिक उपचालन
मास मीडिया हमारे अतीत और वर्तमान के बीच का सेतु है। वे दिन-प्रतिदिन के
मामलों की रिपोर्ट करते हैं जो कल का इतिहास बन जाएगा। आधुनिक इतिहास के सबसे
अच्छे रिकॉर्ड्स, यस्टर वर्षों के समाचार पत्र हैं। हमें
इतिहास से हमारी सांस्कृतिक परंपरा मिलती है और हम उनमें से सर्वश्रेष्ठ का पालन
करते हैं। हमारी संस्कृति को बहते रहने में, मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हमारी संस्कृति के वास्तविक पहलुओं
पर ध्यान केंद्रित करता है और अवांछनीयता को इंगित करता है