अनुसंधान यानी शोध : एक सामान्य अवलोकन एवं क्रियाविधि
अनुसंधान की व्यापकता
व्यापक अर्थ में अनुसंधान (Research)
किसी भी क्षेत्र में ‘ज्ञान की खोज करना’
या ‘विधिवत गवेषणा’ करना
होता है। वैज्ञानिक अनुसंधान में वैज्ञानिक
विधि का
सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं की खोज
और पुराने वस्तुओं एवं सिधांतों का पुन: परीक्षण करना, जिससे
की नए तथ्य प्राप्त हो सके, उसे शोध कहते है। वैश्वीकरण के
वर्तमान दौर में उच्च शिक्षा की सहज उपलब्धता और उच्च शिक्षा संस्थानों को शोध से
अनिवार्य रूप से जोड़ने की नीति ने शोध की महत्ता को बढ़ा दिया है। आज शैक्षिक शोध
का क्षेत्र विस्तृत और सघन हुआ है।
शोध समस्यामूलक होते हैं। हमारे सामने
कोई आगत बौद्धिक समस्या या जिज्ञासा कुछ अन्वेषित करने को प्रेरित करती है। पफलतः
हम अनुसंधान के कार्य में आगे बढ़ते हैं। किसी विशेष ज्ञान क्षेत्र में शोध समस्या
का समाधान या जिज्ञासा की पूर्ति में किया गया कार्य उस विशेष ज्ञान क्षेत्र का
विस्तार है। शिक्षा की नयी-नयी शाखाओं का जन्म वस्तुतः इसी ज्ञान विस्तार की
स्वाभाविक परिणति है। पत्रकारिता, लोक प्रशासन, प्रबंधन आदि कुछ ऐसे विषय
हैं जो कार्य क्षेत्र की जरूरतों के आधार पर विकसित हुए हैं। ये सभी अपने-अपने
कार्य क्षेत्र या जिज्ञासा क्षेत्र की विषयवस्तु के शास्त्रीय प्रतिपादन हैं। इस प्रकार
शोधात्मक गतिविधियों से न केवल विषयों का विस्तार या समृद्ध होती है वरन् नये-नये
शैक्षिक अनुशासनों का उद्भव होता है जो अपने विषय क्षेत्र की विशेषज्ञता का
प्रतिनिधित्व करते हैं। वैश्वीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार ने पूरी
दुनिया के ज्ञान तन्त्र की सीमाओं को खोल दिया है। इससे प्रत्येक शैक्षिक अनुशासन
अपने को समृद्ध करने की स्थिति में है। इस वातावरण में शोध के माध्यम से प्रत्येक
शैक्षिक अनुशासन परस्पर संवाद की प्रक्रिया में है। पफलतः अन्तरानुशासनात्मक शोध
का महत्त्व बढ़ा है। इससे विभिन्न शैक्षिक विषयों का परस्पर आदान-प्रदान संभव हुआ
है।
पाश्चात्य शोध परंपरा विशेषज्ञता (Specialization) आधारित
है। ज्ञान मार्ग में आगे बढ़ता हुआ शोधार्थी अपने विषय क्षेत्र में विशेषज्ञता और
पुनः अति विशेषज्ञता (Super Specialization) प्राप्त करता
है। शोध समस्या के समाधान के दृष्टि से यह अत्यन्त उपादेय है। भारतीय ज्ञान
साहित्य की अविछिन्न परंपरा के प्रमाण से हम यह कह सकते हैं कि शोध की भारतीय
परंपरा, जगत के अंतिम सत्य की ओर ले जाती है। अंतिम सत्य की
ओर जाते ही तथ्य गौण होने लगते हैं और निष्कर्ष प्रमुख। तथ्य उसे समकालीन से जोड़तें
है और निष्कर्ष, देश काल की सीमा को तोड़ते हुए समाज के
अनुभव विवेक में जुड़ते जाते हैं। भारतीय वाङ्मय का सत्य एक ओर जहाँ विशिष्ट सत्य
का प्रतिपादन करता है वहीं दूसरी ओर सामान्य सत्य को भी अभिव्यक्ति करता है।
सामान्य सत्य का प्रतिपादन सर्वदा भाष्य की अपेक्षा रखता है। यही कारण है कि
भारतीय वाड्मय में विवेचित अधिकांश तथ्यों की वस्तुगत सत्ता पर सदैव प्रश्नचिन्ह
लगते हैं। वे अनुभव की एक थाती हैं। तथ्यों की वस्तुगत सत्ता से दूरी उसे थोड़ी
रहस्यात्मक बनाती है, भ्रम की संभावना बनी रहती है। उसके
निहितार्थ तक पहुँचने की लिए प्रज्ञा की आवश्यकता है। सम्पूर्णता का बोध कराने
वाली यह व्यापक दृष्टि एक प्रकार की वैश्विक दृष्टि (Holistic Approach) है। यह सुखद है कि मानविकी एवं समाज विज्ञान के विषयों ही नहीं अपितु समाज
विज्ञान एवं प्राकृतिक विज्ञानों के अन्तरावलम्बन से वर्तमान ज्ञान तन्त्र में एक
प्रकार के वैश्विक दृष्टि का प्रादुर्भाव होने लगा है, जिसकी
सम्प्रति आवश्यकता प्रतीत होती रही है।
शोध क्या है? सर्वप्रथम शोध ज्ञान का विस्तार
है। शोध द्वारा हम नये तथ्यों को ढूंढ निकालते हैं। शोध को अनुसंधान, गवेषणा, ओज, अन्वेषण मीमांसा,
अनुशीलन, परिशीलन, आलोचना,
रिसर्च आदि नामों से भी अभीत किया जाता है। शोध के चार अंग होते
हैं-
1.
ज्ञान क्षेत्र की किसी समस्या को सुलझाने की प्रेरणा।
2.
विवेकपूर्ण अध्ययन।
3.
प्रासंगिक तथ्यों का संकलन।
4.
परिणाम स्वरूप निर्णय।
शोध की प्रक्रिया में समस्या के कथन के
बाद परिकल्पना की रचना की आवश्यकता होती है। परिकल्पना यानि व्यापक रूप से विस्तृत
रूप से फैल कर सोचना परिकल्पना है, जिसके आधार पर मन की भावना प्रकट करते हैं।
शोधकर्ता को ऐसी परिकल्पना बनानी चाहिए, जिसकी परीक्षा की जा
सके कि वह एक कल्पना सत्य है या असत्य। परीक्षण से उत्तम परिकल्पना का जन्म होता
है।
शोध के कुछ मुख्य प्रकार-
§ वर्णनात्मक शोध
§ विश्लेषणात्मक शोध
§ मूल शोध
§ प्रायोगिक शोध
§ मात्रात्मक शोध
§ सैद्धांतिक शोध
§ अनुभाविक शोध
§ अप्रयोगात्मक शोध
§ ऐतिहासिक शोध
§ नैदानिक शोध
शोध की रूपरेखा
§ शीर्षक
§ भूमिका
§ मुख्य भाग
§ निष्कर्ष
§ संदर्भ सूची
शोध लिखना शुरू करने से पहले शीर्षक का
चुनाव करना चाहिए। भूमिका को प्रस्तावना भी कहा जाता है। प्रस्तावना द्वारा शोध के
बारे में संक्षिप्त रूप में कहा जाता है। मुख्य भाग में विषय वस्तु के बारे में
विस्तार किया जाता है। निष्कर्ष या उपसंहार में शोध का सारांश लिखा जाता है। शोध
लिखने के लिए किन-किन किताबों, पत्रिकाओं समाचार पत्रों, शोध लेखों आदि
की मदद ली है, उनके नाम संदर्भ सूची में लिखने चाहिए।
शोध के चरण
स्लूटर ने शोध के निम्नलिखित चरण बताये
हैं;
§ शोध विषय का चुनाव
§ शोध समस्या को जानने ले लिए क्षेत्र का
सर्वेक्षण
§ सन्दर्भ ग्रन्थ सूची का निर्माण
§ समस्या को परिभाषित या निर्मित करना
§ समस्या के तत्वों का विभेदीकरण और
रूपरेखा निर्माण
§ आंकड़ों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
संबंधों के आधार पर समस्या के तत्वों का वर्गीकरण
§ समस्या के तत्वों के आधार पर आंकड़ों तथा
प्रमाणों का निर्धारण
§ वांछित आंकड़ों तथा या प्रमाणों की
उपलब्धता का अनुमान लगाना
§ समस्या के समाधान की जाँच करना
§ आंकड़ों तथा सूचनाओं का संकलन
§ आंकड़ों को विश्लेषण के लिए ब्यवस्थित और
नियमित करना
§ आंकड़ों तथा प्रमाणों का विश्लेशन एवं
विबेचना
§ विवेचन प्रस्तुति के लिए आंकड़ों को
ब्यवस्थित करना
§ उद्धरणों तथा सन्दर्भों का चयन एवं
प्रयोग
§ शोध प्रस्तुतीकरण के स्वरुप और शैली को
विकसित करना
अन्य दृष्टिकोण से शोध के चरण निम्नवत होते हैं;
§ शोध समस्या को परिभाषित करना
§ शोध विषय पर प्रकाशित सामग्री की समीक्षा
करना
§ आध्ययन के विषय के ब्यापक दायरे और
इकाई को तय करना
§ प्रकल्पना का सूत्रीकरण एवं प्रवित्तियो
को बताना
§ शोध विधियों एवं तकनीकों का चयन
§ शोध का मानकीकरण
§ मार्गदर्शी अध्ययन सांख्यकीय व अन्य
विधियों का प्रयोग
§ शोध सामग्री इकठ्ठा करना
§ सामग्री का विश्लेषण
§ ब्याख्या करना और रिपोर्ट प्रस्तुत करना
राम आहूजा के अनुसार शोध के चरण निम्नवत होते हैं;
शोध के छः चरण
§ अध्ययन समस्या का निर्धारण
§ शोध प्रारूप तय करना
§ निदर्शन की योजना
§ आंकड़ा संकलन
§ आंकड़ा का विश्लेषण (संपादन, संकेतन और
सारणीकरण)
§ प्रतिवेदन तैयार करना
सी आर कोठारी के अनुसार शोध के चरण
निम्नवत होते हैं;
§ शोध समस्या का निर्धारण
§ गहन साहित्य सर्वेक्षण
§ उपकल्पना का निर्माण
§ शोध प्रारूप का निर्माण
§ निदर्शन प्रारूप निर्धारण
§ आंकड़ा संकलन
§ प्रोजेक्ट का संपादन
§ आंकड़ों का विश्लेषण
§ उपकल्पनाओं का विश्लेषण
§ सामान्यीकरण और विवेचन
§ रिपोर्ट तैयार करना या
§ परिणामों का प्रस्तुतीकरण या निष्कर्षों
का औपचारिक लेखन
रिसर्च डिज़ाइन
सामाजिक विज्ञान में सामान्यतः दो प्रकार
के प्रश्न पूछे जाते हैं क्या है? और क्यों है? या क्या हो रहा
है?और क्यों हो रहा है? क्या के प्रश्न
के साथ ही क्यों का प्रश्न भी उपजता है। शोध कार्य के लिए अनुत्तरित प्रश्न ही शोध
या अनुसन्धान की प्राविधि का निर्धारण करते हैं साथ ही शोध के अनुत्तरित प्रश्न ही
शोध या अनुसन्धान के प्रारूप का भी निर्धारण करते हैं।
Research Designs
रिसर्च डिज़ाइन क्या है ?
§ रिसर्च डिज़ाइन शोध, अनुसंधान या अध्ययन
के प्रश्न, अध्ययन की प्रक्रिया, अध्ययन की विधि को प्रदर्शित करता है।
§ रिसर्च डिज़ाइन शोध या अनुसंधान के विषय
के चरणबद्ध या क्रमबद्ध वैज्ञानिक अध्ययन की प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है।
§ रिसर्च डिज़ाइन के माध्यम से शोध की विषय वस्तु और उद्देश्य, अनुसंधान या अध्ययन से सम्बन्धित पूर्वकल्पना (हाइपोथेसिस) डाटा संग्रह करने की विधि विश्लेषण की मेथोडोलॉजी
आदि सभी चरणों को प्रस्तुत किया जाता है।
शोध, अनुसंधान या अध्ययन की
प्रक्रिया(रिसर्च डिज़ाइन) के मुख्य तत्व;
1.
परिचय (इंट्रोडक्शन) शोध, अनुसंधान या अध्ययन के विषय (विषय
वस्तु)
2.
लिटरेचर सर्वे
3.
उद्देश्य
4.
पूर्वकल्पना (हाइपोथिसिस)
5.
विधितंत्र (मेथोडोलॉजी) डेटा या आंकड़ों का संग्रह की विधि
सांख्यकीय तकनीक या अन्य तकनीक का
प्रयोग [ जिसका प्रयोग वांछित हो]
1.
विश्लेषण
2.
सारांस
स्टेप 1. सन्दर्भ ग्रंथों की खोज, शोध के विषय का संपूर्ण संदर्भ या ज्ञान, शोध
के विषय का निर्धारण, शोध के लिए अनुत्तरित प्रश्नों का
निर्धारण (आईडिया), शोध के उद्देश्य (ऑब्जेक्टिव) का
निर्धारण, शोध के उद्देश्य का तर्कपूर्ण बिवरण;
स्टेप 2. इम्पीरिकल आईडिया ज्ञात करना, स्पष्ट प्राकल्पना का चयन, पूर्व कल्पना का
निर्धारण;
स्टेप 3. शोध के एप्रोच (मेथोडोलॉजी) का
निर्धारण;
स्टेप 4. शोध के लिए वांछित समय और
संसाधन का निर्धारण;
स्टेप 5. डाटा कलेक्सन के प्रोसेज्यॉर
और प्लान तैयार करना, सैंपल का निर्धारण, डाटा कलेक्ट करना,सांख्यकीय विश्लेषण;
स्टेप 6. शोध प्रश्नो (रिसर्च क्वेश्चन)
के उत्तर प्राप्त करना, शोध प्रश्नो के उत्तर को
सैद्धांतिक आधार प्रदान करना;
स्टेप 7. निष्कर्ष निर्धारित करना;
भौगोलिक ज्ञान के क्षेत्र में शोध या
अनुसन्धान
भौगोलिक ज्ञान के अंतर्गत शोध या
अनुसन्धान का क्षेत्र काफी व्यापक है।
भौतिक भूगोल के अंतर्गत भौतिक या
प्राकृतिक तत्वों की संरचना एवं कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जाता है। भौतिक भूगोल
के अंतर्गत पर्यावरण से सम्बंधित समस्या, प्राकृतिक आपदा आदि विषयों पर शोध या
अनुसन्धान किया जाता है।
मानव भूगोल (सामाजिक एवं आर्थिक भूगोल)
के अंतर्गत सामान्यतः नगरीकरण, शिक्षा, बेरोजगारी,कृषि, औद्योगिक विकास आदि विषयों पर शोध या
अनुसन्धान किया जाता है।
कृषि, औद्योगिक विकास के सन्दर्भ में
क्षेत्रीय असमानता, विकास के असंतुलन, आदि शोध या अनुसन्धान के विषय हैं।
विधितंत्र का प्रयोग
भौगोलिक ज्ञान के क्षेत्र में विधितंत्र
का प्रयोग शोध या अनुसन्धान के विषय वस्तु और शोध या अनुसन्धान के उद्देश्य पर
निर्भर करता है ।
संचार शोध के आधारभूत अध्ययन
संचार शोध में संचार
प्रक्रिया – संचार के विभिन्न तत्वों और उनके बीच की अन्तर्क्रिया – का
वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिक अध्ययन का तात्पर्य यह है कि संचार शोध
वस्तुनिष्ठ निश्चयवादी और प्रणालीबद्ध खोज है।
संचार शोध की प्रकृति अन्तर अनुशासनिक है
और यह सिद्धांत और प्रविधि दोनों ही मामलों में समाज और व्यवहारिक विज्ञान से
निर्देशित होता है।
संचार शोध का स्वरुप
संचारक स्त्रोत विश्लेषण
1. संचारक और उसके वे गुण जो प्रभावी संचार
में महत्वपूर्ण भूमिका निबाहते हैं, संचार शोधार्थियों को आकर्षित करते रहे हैं जैसे संचारक
स्त्रोत की विश्वसनीयता, विशेषज्ञता, उद्देश्य और आकर्षण का आडियंस पर प्रभाव
पड़ता है।
2. संदेश विश्लेषण
संदेश की अंतर्वस्तु का विश्ल्षण करना और
इसका संचार के अन्य तत्वों के साथ संबंध खासकर लोगों के व्यवहार, मनोवृतियों और मुल्यों पर प्रभाव का
अध्ययन संतार शोध का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसे अंतर्वस्तु को शैली, विस्तार, पाठनीयता, प्रभाव, तर्कशीलता और अन्य विशेषताओं के आधार पर
जांचा जाता है।
चैनल विश्लेषण
विभिन्न प्रकार के चैनलों या संचार
माधायमों की विशेषताओं उनका शक्तियों और सीमाओं, उनकी पहुंच और प्रभाव का अध्ययन भी संचार शोध का एक
महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
आडियंस शोध
आडियंस की विशेषताओं जैसे उसका आकार गठन
भौगोलिक वितरण रुचियों मनोवृत्तियों विचारों और व्यवहार (प्रतिक्रिया) का अध्ययन
संचार शोध की दिलचस्पी का प्रमुख क्षेत्र रहा है।
पाठक सर्वेक्षण और कार्यक्रम की रेटिंग
जैसे टीआरपी ऐसे शोध का उदाहरण है।
प्रक्रिया और प्रभाव शोध
संचार माध्यमों के प्रभाव (विशेषकर संचार
प्रक्रिया के विभिन्न तत्वों) का विभिन्न स्तरों – पहुंच व संपर्क व्यापकता समझ या बोध स्मृति बोध स्वीकृति और
कार्रवाई पर अध्ययन संचार शोध का महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
सर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को
कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं की समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम
लेखाचित्र या मानचित्र कहलाता है। ऐसी आलेखन क्रिया की
संपन्नता और सफलता के लिए रैखिक और कोणीय, दोनों ही माप लेना
आवश्यक होता है। सिद्धांतत: आलेखन क्रिया के लिए रेखिक माप का होना ही पर्याप्त
है। मगर बहुधा ऊँची नीची भग्न भूमि पर सीधे रैखिक माप प्राप्त करना या तो असंभव
होता है, या इतना जटिल होता है कि उसकी यथार्थता संदिग्ध हो
जाती है। ऐसे क्षेत्रों में कोणीय माप रैखिक माप के सहायक अंग बन जाते हैं और
गणितीय विधियों से अज्ञात रैखिक माप ज्ञात करना संभव कर देते हैं।
इस प्रकार सर्वेक्षण में तीन कार्य
सम्मिलित होते हैं –
§ क्षेत्र अध्यन
§ मानचित्रण
§ अभिकलन
सर्वेक्षण विधियाँ
ठीक भौगोलिक स्थिति में भू आकृति के
रूपांकन के लिये मानचित्र के क्षेत्र के अंदर ऐसे प्रमुख नियंत्रण बिंदुओं के जाल
के प्रथम आवश्यकता है जिनके ग्रीनविच के सापेक्ष सही सही अक्षांश और देशांतर अथवा
औसत समुद्रतल से ऊँचाई ज्ञात हो। महान् त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण ने भारत के अधिकांश
मानचित्रों के निर्माण में यह कर लिया है। सार रूप में यह चौरस भूमि पर इन्वार (invar) धातु के तार या
फीते से सावधानी से नापी हुई लगभग 10 मील लंबी जमीन होती है
जिसे ‘आधार’ कहते हैं।
आधार की स्थापना के बाद उसपर एक के बाद
एक उपयुक्त भुजा और कोण के त्रिभुजों की माला रची जाती है। त्रिभुजों के कोणों का
निरीक्षण कर भुजा तथा बिंदुओं के नियामकों की गणना कर ली जाती है। इसे त्रिकोणीय
सर्वेक्षण कहते हैं। त्रिभुजों का जाल सर्वेक्षण में सर्वत्र फैला होता है। मुख्य
उपकरण काच चाप थियोडोलाइट है जिसमें ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज कोणों को चाप के एक
सेकंड अंश या इससे भी कम तक सही पढ़ने की क्षमता होती है। ये बिंदु काफी दूर दूर
होते हैं। अत: विस्तृत सर्वेक्षण संभव नहीं। इसके लिए यह आवश्यक है कि महान्
त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के बड़े त्रिभुजों को तोड़कर छोटे छोटे त्रिभुजों का जाल
बनाकर सारी जमीन को कुछ मील के अंतर पर स्थित बिंदुओं की माला में परिणत कर दिया
जाए।
पटल चित्रण (Plane tabling)
इच्छित पैमाने पर प्रेक्षप बनाया जाता
है। प्रक्षेप में नियंत्रण बिंदु अंकित किए जाते हैं। इन बिंदुओं से प्रतिच्छेदन
और स्थिति निर्धारण (inter secting
and resecting) द्वारा पटलचित्रण और दृष्टिपट्टी की सहायता से
विस्तृत सर्वेक्षण किया जाता है। इसे पटल चित्रण कहते हैं। भारतीय प्रवणतामापी (clinometers)
नामक यंत्र के अतिरिक्त ऊँचाई निश्चित की जाती है। ऊँचाई से निश्चित
ऊर्ध्वाधर अंतराल पर तलरेखा तक जिसे समोच्च रेखा कहते हैं, खींचे
जा सकते हैं, जो भूमि की धराकृति अच्छी तरह प्रदर्शित करते
हैं।
हवाई सर्वेक्षण
गत 30 वर्षो में सर्वेक्षण के क्षेत्र में
प्रविष्ट, अत्यंत प्रभावकारी विधि हवाई फोटोग्राफ की विधि
है। सैनिक और असैनिक उपयोगिता की दृष्टि से हवाई फोटोग्राफी का महत्वप्रथम
विश्वयुद्ध काल में ही अनुभव किया जाने लगा था तथा सर्वेक्षण और मानचित्र
निर्माणकार्य में इसका उपयोग सर्वप्रथम 1916 ई. में इंग्लैंड
में ऑर्डनांस सर्वे की युद्धोत्तरकालीन योजना में हुआ। तब से यूरोपीय देशों तथा
उत्तरी अमरीका में इस दिशा में आश्चर्यजनक प्रगति हुई। अब तो हवाई फोटोग्राफी या
फोटोग्राफी द्वारा सर्वेक्षण एक अनूठी वैज्ञानिक प्रविधि है। हवाई फोटोग्राफ
द्वारा सर्वेक्षण की दो विधियाँ हैं : लेखाचित्रीय और
यांत्रिकी।
लेखाचित्रीय
विधि
भारत में लेखाचित्रीय विधि का कुछ वर्षों
से अत्याधिक उपयोग हो रहा है और जहाँ तक स्थलाकृतीय मानचित्र अंकन का प्रश्न है, यह विधि लगभग पूर्णता
प्राप्त कर चुकी है। इसका आधारभूत सिद्धांत यह है वास्तविक ऊर्ध्वाधर हवाई
फोटोग्राफ में विकिरण रेखाएँ, जो फोटोग्राफ में थल बिंदु तक
फैली होती हैं, यथार्थ और स्थिर कोण बनाती हैं। आकृतियों का
उच्चता विस्थापन (height displacements) मानचित्र के समतल
में दृष्टि बिंदु से ठीक नीचे स्थित एक बिंदु से (जिसे अवलंब बिंदु (Plumb
line) कहते हैं और जो व्यवहार में वास्तविक ऊर्ध्वाधर फोटो (true
vertical photograph) का केंद्र माना जाता है) अरीय होते हैं जिससे
विवरण, मानचित्र समतल के बाहर उसकी ऊचाई और अवलंब बिंदु से
दूरी के ठीक अनुपात में वास्तविक मानचित्र स्थिति से विस्थापित हो जाता है। अभीष्ट
शक्ल फोटो प्राप्त कर लेने के बाद त्रिकोणकरण द्वारा के ठीक अनुपात में वास्तविक
मानचित्र स्थिति से विस्थापित हो जाता है। अभीष्ट शक्ल फोटो प्राप्त कर लेने के
बाद त्रिकोणकरण द्वारा निश्चित निंयत्रण बिंदुओं की सहायता और फोटो के अरीय गुण का
उपयोग कर प्रक्षिप्त पत्रों पर, जिनका जिक्र हो चुका है,
ठीक भौगोलिक स्थिति में फोटो के केंद्र अंकित किए जाते हैं। प्रत्येक
फोटो के अरीय गुण का उपयोग कर विविध विवरणों का प्रतिच्छेदन उनकी सही स्थिति
निश्चित की जाती है। लेखाचित्रीय विधि की सबसे बड़ी समस्या फोटो से परिशुद्ध
उच्चता ज्ञात करना है। इस कठिनाई के कारण प्राय: भूमि सर्वेक्षण विधियों में पूरक
उच्चता नियंत्रण का घना जाल बनाया जाता है। इस मार्गदर्शक उच्चताओं की सहायता से
त्रिविमदर्शी (stereoscope) के नीचे रखकर फोटो पर समोच्च
रेखाएँ खींचकर उन्हें मानचित्र पत्र पर लगा दिया जाता है।
यांत्रिक विधि
उद्भासन (Exposure) के समय
कैमरा के प्रकाशाक्ष के ऊर्ध्वाधर न होने के कारण उपर्युक्त लेखाचित्रीय विधि से
त्रुटिमुक्त मानचित्र नहीं बनते। यांत्रिक संकलन (mechanical compilation) त्रिविम आलेखन उपकरण (stereoscopic plotting instruments) में होता है जिससे फोटो ठीक उसी स्थिति में उलटते, झुकते
और घूम जाते हैं जिसमें उद्भासन के समय विमान था। ये उपकरण वायुसर्वेक्षण समस्याओं
का ठीक समाधान कर देते हैं जब कि लेखाचित्रीय विधियाँ सन्निकट समाधान प्रस्तुत
करती हैं। भारत में आजकल काम आनेवाले आलेखन उपकरण हैं : वाइल्ड ऑटोग्राफ 47, वाइल्ड 48, मल्टीफ्लेक्स और स्टीरोटोप।
(नोट- इस पोस्ट में वेब पर उपलब्ध विभिन्न
ब्लॉग्स से शोध संबंधी जानकारी का संकलन किया गया है। उन समस्त ब्लॉग्स का साभार जिनसे
थोड़ी भी सामग्री उद्धृत की गयी है।)
लेखक परिचय
रामशंकर
जन्म- 12 जुलाई, 1986
संप्रति- संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में ‘वैकल्पिक मीडिया और भारतीय व्यवस्था परिवर्तन’ विषय पर शोधरत एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद से ICSSR डॉक्टोरल फ़ेलो।
प्रकाशित रचनाएँ- विभिन्न चर्चित शोध जर्नल/पत्रिकाओं (कम्यूनिकेशन टुडे, अंतिम जन, सबलोग प्रौढ़ शिक्षा, शोध नवनीत, मालती, शोध अनुसंधान समाचार, प्रतियोगिता दर्पण, शोध संचयन, शांति ई जर्नल ऑफ रिसर्च आदि) एवं विभिन्न समाचार पोर्टल्स में शोध-पत्र/आलेख एवं समसामयिक समाचार आलेख प्रकाशित और दो पुस्तकों में शोध-पत्र तथा एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला एवं सेमिनारों में प्रपत्र-वाचन एवं सहभागिता ।
संपर्क- 36, गोरख पांडेय छात्रावास, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
स्थायी पता- भिटरिया, राम सनेही घाट, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश-225409
संपर्क-सूत्र- 9890631370
Email- ramshankarbarabanki@gmail.com
लेखकीय वक्तव्य- स्थापित सामाजिक व्यवस्था के विकल्प का अध्ययन एवं लेखन।