वर्तमान
में वैकल्पिक मीडिया महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
बाल विवाह अधिनियम की बात करें या पत्नी के भरण पोषण या विधवा गुजारा भत्ते की
स्त्रियां जागरूक हो रही हैं। उन्हें महिला हिंसा कानून, समान
वेतन कानून, गोद लेने संबंधी कानून और संपत्ति में स्त्री के
अधिकार की जानकारी सहित ऐसे अनेक उपमों का ज्ञान है जो उनके जीवन को सही दिशा दे
सकते हैं। अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं को बेहतर ढंग से सुलझाने की क्षमता उनमें
निरंतर विकसित हो रही है। वे प्रारंभ से ही मेधा संपन्न रही हैं, लेकिन उनमें जागरूकता का अभाव रहा है। आत्मविश्वास की कमी भी उनकी उन्नति के
मार्ग का रोड़ा रही है। वैसे तो संचार माध्यम समाज के विकास में बहुत सहायक हैं।
परंतु महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में बात करते समय संचार के वैकल्पिक माध्यमों की
सशक्त भूमिका को सर्वोपरि मानना होगा। आज समूचे विश्व में स्त्रियों का वर्चस्व
बढ़ा है। शिक्षा, राजनीति, विज्ञान,
कला, मनोरंजन-हर क्षेत्र में स्त्रियां अपनी
प्रतिभा उजागर कर रही हैं। उनकी पारिवारिक, सामाजिक और
आर्थिक स्थिति में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई दे रहा है। नि:संदेह हाल के दो दशकों में
महिला हिंसा की घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। परंतु इसी अवधि में
महिलाओं ने विश्व में कीर्तिमान भी स्थापित किए हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
महिला के प्रति हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज
प्रताड़ना जैसी घटनाएं पहले से घटती आ रही हैं। परंतु वैकल्पिक मीडिया ने उनमें वह
चेतना जगाई है जिसके कारण अब वे अत्याचार के वैकल्पिक मीडिया मुखर हो रही हैं और
सरकार को भी उनके हित में कानून बनाने के लिए तत्पर होना पड़ रहा है।
वैकल्पिक मीडिया से आशय ऐसी मीडिया (समाचार
पत्र-पत्रिका, रेडियो, टीवी सिनेमा व इण्टरनेट आदि) से है,जो मुख्य धारा की मीडिया के संदर्भ में वैकल्पिक जानकारी
प्रदान करती है। वैकल्पिक मीडिया को मुख्य धारा मीडिया से हटकर देखा जाता है।
मुख्यधारा के मीडिया वाणिज्यिक, सार्वजनिक रूप से समर्थित या सरकार के स्वामित्व वाली हैं। “वैकल्पिक मीडिया के अंतर्गत उन खबरों को प्रसारित किया जाता
है,जिन्हें मुख्यधारा मीडिया के मीडिया में स्थान नहीं दिया
जाता और वे जन सरकारों से पूर्णतः जुड़ी होती है।”3 प्राचीन काल में डुग्गी व मुनादी के
माध्यम से खबरों का प्रसारण किया जाता था। औद्योगिक व विज्ञान के विकास ने संचार
का चेहरा बदल दिया है, जिसमें मुनादी, डुग्गी आज की शैली में पम्फ्लेट, पोस्टर व भित्ति चित्र में बदल गये है। आज ज्यों ही हम
मीडिया की बात करते है ,हमारे जेहन में त्यों ही चौबीस घंटे पोपट की तरह बोलने वाले तमाम समाचार चैनल
व अखबार घूम जाते है,जो
दिन भर एक्सक्लूसिव के नाम पर अपना राग अलापते रहते हैं । इस भागमभाग की स्थिति ने
हमें तमाम समाचारों से वंचित कर दिया है । यही आज मुख्य धारा का मीडिया कहलाता है।
वैकल्पिक मीडिया को व्यापक रूप में फैलाने में मुख्यधारा के मीडिया की अहम्
भूमिका है।
“प्रतिवाद, जागरूकता और मीडिया एक दूसरे से अंतर्गृंथित हैं। प्रतिवाद बोलकर भी होता है
और बिना बोले भी।”6 जब
मुख्य धारा की मीडिया में जन सामान्य की बात को भुलाया जाने लगा और मसालेदार,
औचित्यविहीन ख़बरें परोसी जाने लगी और साथ ही साथ जनता की अभिव्यक्ति को जन माध्यम
में रोका जाने लगा। अखबारी खबरों पर संदेह किया जाने लगा, तब शनैः शनैः वैकल्पिक मीडिया का उत्थान इस सूचना युग
में हुआ। यह वह संचार माध्यम का स्वरूप हो गया जो बार-बार मुख्य धारा की मीडिया के साथ खड़ा होने की कोशिश
करता है।
महिलाएं अपने अस्तित्व की लड़ाई लंबे समय से लड़ती आ रही हैं, लेकिन इसने अभियान का रूप नहीं लिया था। महिलाओं के पक्ष
में जमीन तैयार करने में सामुदायिक रेडियो, लघु पत्र-पत्रिकाओं
की सबसे अधिक भूमिका रही है। क्योंकि वह आम आदमी तक पहुंचने
का सर्वसुलभ सस्ता माध्यम है। 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के परिणामस्वरूप देश की ग्रामीण एवं
नगरीय स्वशासी संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था ने उन्हें अधिकार-संपन्न तो बनाया किंतु जब हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में
निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने सामाजिक बुराइयों एवं अन्याय के विरूद्ध आवाज
बुलंद कर उन पर विजय पाई, तो वैकल्पिक मीडिया ने ही समाज में यह आस जगा दी कि सभी विसंगतियों के खिलाफ
स्त्रियों की एकजुटता सचमुच क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें